क्रोध को कैसे पराजित करें?


क्रोध को वैसे ही उतार फेंकिये जैसे सर्प अपने केंचुल को। खाल निकालना केंचुल छोड़ने के सामान नहीं है, अधिक आसक्ति यानी कि अधिक पीड़ा।

आज मैं आपके लिए एक महत्त्वपूर्ण लेख लेकर आया हूँ कि क्रोध पर कैसे विजय पायें। क्रोध पर काबू पाने की एक प्रधान विधि है और कुछेक सहायक विधियां भी। सबसे पहले मैं आपको एक कहानी बताता हूँ।

एक शिष्य एक सिद्ध गुरू के पास गया। वह जानना चाहता था कि समाधि की अवस्था कैसे प्राप्त करें।

गुरू ने कहा, "जब थक जाओ तो सो जाओ और जब भूख लगे तो खा लो, मुख्या रूप से बाद इतनी की ही आवश्यकता है।"

शिष्य ने तेज स्वर में कहा, " वैसे भी क्या सभी यही नहीं करते?"

"मैं आशा करता हूँ सभी ऐसा ही करते। लोग सोने का प्रयास करते समय अनगिनत योजनायें बनाते हैं और अनगिनत भोजन करते समय। उनका मन सब तरफ बिखरा हुआ है।

तो ये कहानी कैसे प्रस्तुत विषय से सम्बंधित है? क्रोध पर विजय पाने की प्रमुख विधि इस कहानी के पीछे छुपा हुआ है। चलिए मैं आपके समक्ष तीन विधियां प्रस्तुत करता हूँ जो आपको क्रोध को समझने, नियंत्रित और पराजित करने में सहायता देगी।

१. सचेत रहने का अभ्यास

आक्रोश में छोड़े गए पीडादायक शब्दों के तीर, परिणाम की चिंता किये बिना हठात कुछ कर बैठना जिसपर बाद में पश्चाताप हो, क्रोध के अनियंत्रित प्रसंगों के दौरान अपमानजनक संकेत या भाव प्रदर्शन मानसिक चेतना के खोने का परिणाम है, नाकि असावधानी का। ठीक क्रोध फूटने के पहले की स्थिति भ्रम की स्थिति होती है जिसमे कुछ भी याद नहीं रहता, जो कि किसी को भी सही प्रतिक्रिया चुनने में असफल करती है।

सचेत रहना क्रोध ही नहीं बल्कि सभी अन्य अवांछनीय आदतों पर नियंत्रण पाने की एक सबसे महत्वपूर्ण विधि है। यदि आप सचेत हैं, आप अपने विचारों के प्रवाह का परिक्षण कर सकते हैं, अपने आप को स्मरण दिला सकते है की आप क्रोधित नहीं होना चाहते हैं। थोड़े समय पहले मैंने एक आलेख लिखा था विकर्षण पर कैसे विजय पायें, उसमें मैंने बताया था की आप अपने आप से एक प्रभावकारी प्रश्न पूछ सकते हैं, "क्या ये मेरा सबसे अच्छा कदम है?" यह आपको तुरंत वर्तमान स्थिति में ले आयेगा।

आपको बिलकुल वही करना है सचेत रहने का अभ्यास करते समय। जब आपको उर्जा आवेश की अनुभूति हो जो शब्दों और क्रियाओं के रूप में फटकर बाहर आने की प्रतीक्षा में हो, उससे बस पहले आपके पास एक क्षण है विचार करने के लिए अपने चुने हुए क्रिया के बारे में जिसका आप प्रयोग करनेवाले हैं। यदि आपको याद रहे कि आप आवेश में नहीं आनेवाले और दूसरे को अपशब्द नहीं कहना चाहते हैं, और आप क्रोध को अनुमति नहीं देंगे अपने वशीभूत करने में, यह प्रभावी होगा।

जैसे जैसे आप सचेत रहने के अभ्यास को उन्नत करते हैं, वैसे वैसे आपको अपनी प्रतिक्रया को चुनने में सहायता मिलेगी जो आपको पसंद है, किसी भी परिस्थिति में। परन्तु जब तक आप अपने क्रोध के भाव को वश में कर पाएं, जब तक आप अपने आप को पूरी तरह से बदल नहीं पायें, निम्नलिखित दो अन्य कदम आप ले सकते हैं।

२. एक डायरी लिखिए

हर बार जब आप क्रोधित हों, और आप वापस शांत मन से हों, चार छोटे अनुच्छेद निम्न विषयों पर -

क. प्रसंग: वास्तव में क्या हुआ?
ख. कारण: किस चीज से शुरू हुआ?
ग. श्रेणी: क्या आपके क्रोध का परिमाण उचित था?
घ. भविष्य: यदि ये परिस्थिति फिर से आती है, क्या आप बिलकुल पिछले बार की तरह प्रतिक्रया देंगे और अलग?

यदि आप अपने अभ्यास को और भी सशक्त करना चाहते हैं, आप जितनी बार अपने क्रोध को वश में कर पाए उसे भी लिखिए। डायरी में लिखने और बाद में समीक्षा करना आपके लिए अपने आप का अन्वेषण करने और समझने में सहायक होगा।

३. अपने शब्दों को अंकित (रिकार्ड) कीजिये

यह बहुत ही प्रभावकारी और आसानी से करने लायक अभ्यास है। अगली बार जब आप क्रोधित हों, देखिये यदि आप रिकार्ड कर पायें, बाद में उसे बजाइए। संभावना है कि आपको अपनी ही प्रतिक्रया हास्यास्पद लगे। इससे आपको अभिज्ञता या जागरूकता हूगी। अभिज्ञता सचेत रहने का पर्यायवाची है।

कुछ लोगों ने मुझसे पूछा क्या सदैव शांत रहना संभव है? उत्तर है हाँ। उसके लिए अभ्यास और जागरूकता चाहिए। आप एक निष्पक्ष दर्शक भी हो सकते हैं। यदि आपको वर्तमान का भाव हमेशा रहे, यदि आप अपने आंतरिक शान्ति के प्रति प्रतिबद्ध हों तो कुछ भी आपको उत्तेजित नहीं कर सकता। यद्यपि आप दर्शक की तरह हों लेकिन बहुत पास खड़े हों तो लहर आपके पैरों को गीला कर सकती है। मुख्या बात है ठीक दूरी बना कर रखना, जब ज्वार उंचा हो तो थोड़ी और दूर चले जाएँ और यदि समुद्र शांत हो तो पास चले जाएँ। क्रोध केवल एक भावना नहीं है परन्तु भावात्मक प्रतिक्रया है। जीवन में और सारी परिस्थितियों के लिए जो प्रतिक्रया होती है, यह भी चयन की बात है।

"मेरी पत्नी मुझे बहुत परेशान करती है" वृद्ध मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा. "हर बार स्नान करते समय वो कुछ घंटे प्लास्टिक के बत्तक और जहार से खेलती है।"

"यदि उसे खुशी मिलाती है तो आप क्यों दुखी होते हैं?" मनोचिकित्सक ने पूछा, "मुझे नहीं दिखाई दे रहा है कि इससे आप परेशान क्यों होते हैं।"

"आप भी होते यदि वो आपके होते" मुल्ला ने कहा।

आपकी जितनी आसक्ति होगी, उतना अधिक क्रोध होगा। आप किसी चीज से कितने आसक्त हैं उसके ही अनुपात में आपको दुःख या चोट की अनुभूति होगी। उदाहरण के तौर पर यदि आपको अपने संपत्ति से जितनी अधिक आसक्ति होगी, कभी भी, कुछ भी गड़बड़ होने पर आपको दुःख पहुँचने की संभावना है। जितना अधिक लगाव, उतना अधिक दु:ख, उतनी ही पीड़ा और क्रोध भी होगा। और फिर क्या होगा यदि वास्तव में आप झूठ में अपने आप से जुड़े हैं? वो एक अहंकार को उत्पन्न करता है। इस तरह का अहंकार फुले हुए बैलून के जैसा होता है, एक पिन के चुभते ही फट जाएगा।

न आसक्ति, ना दुःख!
(Image credit: Gerald Kelley)
शांति।
स्वामी
Print this post

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Share