जीवन एक संगीत उपकरण के समान है

मनुष्य के जीवन के स्वर, धुन एवं संगीत, जीवन के संगीत उपकरण पर कम और संगीतज्ञ पर अधिक निर्भर होते हैं।
जीवन एक संगीत उपकरण के समान होता है। उस की ध्वनि मधुर अथवा बेसुरी हो सकती है - वह संगीतज्ञ पर निर्भर है। कुछ उपकरणों के प्रयोग के लिए उंगलियों की स्थिरता की आवश्यकता होती है और कुछ के लिए विशेष निपुणता की। कुछ को पीटा जाता है तो कुछ में फूंक मारा जाता है। प्रत्येक उपकरण की ध्वनि अद्वितीय होती है और कुछ की तो विशिष्ट रूप से असाधारण होती है। कुछ का प्रयोग एक सहायक के रूप में अन्य संगीत उपकरण के संगत में ही किया जाता है। कुछ अत्यंत लोकप्रिय होते हैं तो कुछ अप्रसिद्ध। एक निपुण संगीतज्ञ के हाथों में उपकरण मानो जीवित हो जाता है। ऐसे में यह निश्चित करना कठिन हो जाता है कि संगीत उपकरण की सराहना की जाए कि संगीतज्ञ की।

कुछ उपकरण अत्यंत विशाल होते हैं तो कुछ एक स्टेपलर से भी छोटे। संगीतज्ञ और उनके स्वभाव भी विभिन्न प्रकार के होते हैं। आंतरिक रूप से उपकरण का कोई महत्त्व नहीं होता क्योंकि यह संगीतज्ञ पर निर्भर है कि उपकरण की ध्वनि बहती हुई नदी समान है अथवा गिरते हुए चट्टानों समान। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी भी संगीत उपकरण का प्रयोग करने हेतु आप के पास बहुत कम विकल्प होते हैं। उदाहरणार्थ एक ढोल को पीटने के लिए आप के पास एक लाठी, सात सुर तथा एक या दो सप्तक हैं - प्रश्न उठता है कि इस के साथ आप भला कितनी भिन्न ध्वनियाँ उत्पन्न कर सकते हैं। परंतु फिर भी कुशल संगीतज्ञ विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। यह कैसा चमत्कार है! इसी प्रकार, जीवन एक संगीत है जिस की धुन आप पर निर्भर है।

संगीतज्ञ सदैव नवीन, अद्भुत एवं अद्वितीय धुनों का निर्माण करता रहता है  - ऐसे मनोहर धुन जो होंठों पर हंसी ला सकते हैं अथवा आंखों में अश्रु। ऐसे धुन जिन की आप ने कभी कल्पना भी ना की हो परंतु संगीतज्ञ संसार को आश्चर्यचकित करता रहता है। और इसी कारण विश्व में लाखों गीत एवं धुन हैं। यदि आप मोज़ार्ट या बीथोवेन की रची गई प्रत्येक धुन को बजाने में समर्थ हैं तो वह सराहनीय है, परंतु संसार से सम्मान प्राप्त करने हेतु तथा इतिहास में अपना नाम अमर करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। किंतु यदि आप स्वयं धुनों की रचना करें और महान संगीतज्ञों से भी अधिक धुन अथवा श्रेष्ठतर रूप से धुन की रचना करें तो संसार आप की मौलिकता के लिए आप का आदर करेगा। प्रत्येक क्षेत्र में जो मनुष्य स्वयं के मूल दृष्टिकोण अथवा सिद्धांत प्रस्तुत करते हैं वे ही समाज की वास्तविक प्रगति में सहायता करते हैं।

जाएं और धुन बजाएं! याद रखें धुन स्वयं आप की रची हुई हो। किंतु ऐसे में अहंकार को बढ़ावा ना दें। संगीत पर स्वयं की पहचान जोड़ें। यदि आवश्यक हो तो पहले प्रशिक्षण लें ताकि आप श्रेष्ठतर बजाने की विधि जान सकें। परंतु कौन सी धुन बजानी है इस के लिए प्रशिक्षण ना लें - इस का निर्णय आप को स्वयं करना है। अपने भीतर की ध्वनि को सुनें, उसे समझें तथा उसे अपने जीवन के संगीत में समा लें। प्रशिक्षित होने के उपरान्त आप अत्यंत मोहक एवं मधुर जीवन संगीत की रचना कर सकेंगे। इस के द्वारा आप के भीतर की ध्वनि को स्वचालित रूप से एक गहरा, मूल एवं अद्वितीय अर्थ प्राप्त हो जाएगा। किसी अन्य व्यक्ति की धुन को ना बजाएं। स्वयं उपकरण चुनें, अपनी धुन बजाएं और चाहें तो स्वयं की एक भव्य एवं श्रेष्ठ ऑर्केस्ट्रा का भी आयोजन करें। किंतु यह करने हेतु आप को निश्चित रूप से मन को अपने भीतर की ओर केंद्रित करने की आवश्यकता होगी!

दूसरों की भलाई के लिए कृपया एक सार्वजनिक प्रदर्शन तभी दें जब आप बाथरूम में की गई अपनी गायकी को सुधार लें और एक श्रेष्ठ संगीतज्ञ बन जाएं।

शांति।
स्वामी

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1 टिप्पणी:

anu ने कहा…

Hari om.
Geet usi ka jo use gaana jaanta ho
Saaj usi ka jo use bajana jaanta ho
Aur
Ishwar usi ka jo use paana jaanta ho....😊

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