टकराव के तीन सिद्धांत

टकराव का लक्ष्य अन्य व्यक्ति को नीचा दिखाना अथवा व्याकुल करना नहीं है।
किसी का सामना करना कठिन होता है, क्योंकि कई बार इस का परिणाम यह होता है कि व्यक्ति संताप में डूब जाता है। आप जिस से टकराव कर रहे हैं वह व्यक्ति असहमति प्रकट कर सकता है, विरोध कर सकता है, अथवा यदि वह ईमानदार हो तो क्षमा भी मांग सकता है। परंतु यह संवाद कभी भी इतना सरल एवं सुखद नहीं होता। यह संवाद दो दलों या सरकारों के बीच हो सकता है, या फिर पती-पत्नी, माता-पिता और संतान, दो मित्र या एक प्रबंधक एवं कार्यकर्ता के बीच हो सकता है। कभी कभी सकारात्मक एवं रचनात्मक रूप से आमना सामना करना ही असहमति को दूर करने का एक मात्र मार्ग होता है। किसी से टकराव करना एक प्रकार का संवाद है - एक अवांछनीय संवाद जिस से व्यक्ति अपने को दोषी, लज्जित एवं क्रोधित महसूस कर सकता है। तो लीजिए मैं आप के सामने प्रस्तुत करता हूँ टकराव के तीन अमूल्य सिद्धांत।

ऊँचे स्वर में बात न करें
यदि आप किसी भी सकारात्मक परिणाम की आशा कर रहे हैं तो यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आप चिल्लायें नहीं। इस विषय पर विचार करें - हम किसी का सामना इसलिए करते हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि वह हमारी बात सुने तथा अपनी लापरवाही को स्वीकार करे अथवा यह स्वीकार करे कि उस के कारण हमे पीड़ा पहुँची है। इस का एक मात्र मार्ग है कि आप ऊँचे स्वर में बात न करें। क्यों? मानव मन सुखद वार्तालाप करने के लिए स्वाभाविक रूप से उत्सुक है। जब आप धीमे स्वर में बात करेंगे तो हो सकता है कि वे आप से सहमत ना हों, परंतु उनका मस्तिष्क उन्हें आप की उपेक्षा करने की अनुमति नहीं देगा। वार्तालाप करने और विवाद करने में प्राथमिक अंतर स्वर की ध्वनि एवं प्रबलता है। वार्तालाप एवं विवाद दोनों करते समय असहमति हो सकती है परंतु बहस के समय दोनों व्यक्ति केवल स्वयं बात करने में मग्न रहते हैं, दूसरों की सुन ने में नहीं। जब आप किसी पर चिल्लाते हैं, वे तुरंत ही मानसिक रूप से स्वयं को आप से दूर कर देते हैं। उनका मन वार्तालाप को छोड़ विषय से दूर हट जाता है अथवा आत्मरक्षात्मक हो जाता है। परंतु यदि आप सामान्य स्वर में बात करें, हो सकता है कि आप को लगे वे स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं, किंतु अवश्य ही आप के शब्द उन के मन में घुस जाएंगे। हाँ इस का यह अर्थ नहीं कि वे अपना व्यवहार अवश्य ही बदल देंगे।

आक्रामक रूप से बात न करें
याद रखें कि किसी का सामना करने का लक्ष्य यह है कि वह व्यक्ति आप के दृष्टिकोण को समझ सके तथा वह अपना व्यवहार बदले। आक्रामक रूप से बात कर के या उनकी निंदा कर के आप इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उन्हें प्रायश्चित करने का अवसर दें। आप यह मान कर चलें कि उन से एक भूल हो गई। फिर वार्तालाप को इस विषय पर केंद्रित रखें कि कैसे उनका व्यवहार आप को या आप दोनों के रिश्ते को हानी पहुँचा रहा है अथवा कैसे यह उनके हित में नहीं है। ऐसा करने पर वह आप की बात और ध्यान से सुनेंगे। किंतु यदि हम उनकी आक्रामक रूप की आलोचना करें, उन्हें दोषी ठहरायें तब हम स्वतः दोनों के बीच एक विशाल बाधा खड़ा कर देते हैं। वे आत्मरक्षात्मक हो जाते हैं तथा अपनी सुरक्षा के लिए प्रत्याक्रमण करते हैं। इस कारण दोनों व्यक्तियों में दूरी और बढ़ जाती है, वे क्रोधित हो जाते हैं और टकराव करने के उद्देश्य की पूर्ती ही नहीं हो पाती।

विषय से न भटकें
तीनों सिद्धांतों में यही सबसे कठिन है। कई बार जब हम किसी से टकराव करते हैं वे उस विषय को टालना या उस से दूर रहना चाहते हैं। किसी प्रकार के स्पष्टीकरण, क्षमा याचना या परिणामों से बचने के लिए, वास्तविक मुद्दे से भटकने की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। यदि दोनों व्यक्ति भावनात्मक हो कर विषय से भटकने लगें  तो वार्तालाप में किसी प्रकार की संवेदनशीलता बनाए रखना असंभव हो जाता है। शीघ्र ही ऐसा वार्तालाप एक बहस अथवा एक कटुतापूर्ण असहमति बन जाएगा। जब अन्य व्यक्ति विषय से भटकने लगते हैं, तो आप सम रहकर उन्हें बात पूरी कर लेने दें, फिर विनम्रता से वार्तालाप को प्राथमिक विषय पर ले आएं। यदि आप भी विषय से भटकते हैं तो यह केवल एक व्यर्थ वाद विवाद बन कर रह जाएगी जिसका कोई सफल परिणाम नहीं होगा। यह अति आवश्यक है कि आप केवल मुद्दे पर ही केंद्रित रहें तथा संक्षिप्त रूप से बात करें। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी से उन के देर से आने के विषय में बात करना चाहते हैं, तो केवल वर्तमान उदाहरण के विषय में ही बात करें। यह ना कहें कि वे सदैव देर से आते हैं, या वे कुशल या सक्षम नहीं हैं।

याद रखें कि किसी से टकराव करने का उद्देश्य यह है कि आप उस व्यक्ति को यह अहसास दिला सकें कि आप उसके कुछ कार्यों से असहमत हैं तथा उन कार्यों को नापसंद करते हैं। उद्देश्य उन को नीचा दिखाना नहीं है। इसलिए परिणाम इस पर निर्भर है कि आप किन शब्दों का प्रयोग करते हैं, किस स्वर में बात करते हैं, ठीक किस समय बात करते हैं तथा आप के शरीर के हाव-भाव कैसे हैं। किंतु यदि आप को बार बार एक ही विषय पर किसी का सामना करना पड़े, फिर तो उन में परिवर्तन लाने की आशा बहुत कम है, क्योंकि बुद्धिमान के लिए तो संकेत ही पर्याप्त है। यदि वह व्यक्ति स्वयं की भूल को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं, तो किसी भी प्रकार के संवाद का कोई परिणाम नहीं निकल सकता।

मुल्ला नसरुद्दीन से उसका गधा उधार लेने के लिए उस का एक मित्र उस के पास आया।
“मेरा गधा तो कल रात को ही भाग गया। और अब मुझे वह मिल नहीं रहा है”, मुल्ला ने कहा।
संशयपूर्ण ढंग से उसके मित्र ने उसे देखा। मुल्ला ने अविचलित एवं शांत चेहरा बनाए रखा। तभी उसका गधा चिल्लाने लगा।
“मुल्ला! तुम्हारे घर से मुझे तुम्हारे गधे की आवाज़ सुनाई दे रही है। तुमने मुझसे झूठ बोला! मैं समझता था कि तुम मेरे सच्चे मित्र हो।”
“निस्संदेह! क्या तुम्हे अपने मित्र के शब्दों से अधिक एक गधे की आवाज़ पर विश्वास है।”

जीवन रंगीन एवं आकर्षक इसलिए है क्योंकि इस में विभिन्न रंग हैं; सभी रंग केवल श्वेत नहीं हो सकते, ना ही केवल लाल या केवल काला। उसी प्रकार सभी संवाद सुखद नहीं हो सकते हैं। व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत रिश्तों में सफलता इस पर निर्भर है कि आप अप्रिय संवाद तथा मतभेद से कैसे निपटते हैं।
(Image credit: David Smith)
शांति।
स्वामी


Print this post

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Share