क्या आपने नकारात्मक भावनाओं को अपने भीतर दबा रखा है?

उग्र सुनामी के आने से पहले समुद्र शांत होता है। क्या आपने अपने शांत स्वरूप के पीछे एक तूफान को रोक रखा है?
कभी कभी क्रोध में चिल्लाने से मन को राहत मिल सकती है, हमारे भीतर जो कुंठाएं घर कर लेती हैं उन्हें निकालने की यह सहज विधि है। परन्तु जब हम क्रोधित होकर चिल्लाते हैं इससे दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचती है तथा रिश्तों में दरारें आ जाती हैं। इसीलिए यह एक व्यवहारिक विकल्प नहीं है। इसके अतिरिक्त क्योंकि यह क्रोध की भावना से जुड़ा हुआ है, इसीलिए यह हमें निर्बल एवं लज्जित कर देता है। कल्पना कीजिए कि यदि आप बिना क्रोधित हुए चिल्ला सकते। यह संभवत: आपको अभी मूर्खतापूर्ण विधि लगे परन्तु इस लेख को पढने के बाद आपकी विचारधारा अवश्य बदल जाएगी।

शालीनता एवं शिष्टाचार के नाम पर, धर्म का पर्दा कर के, हमारे समाज ने सदैव स्वतंत्र अभिव्यक्ति का बहिष्कार किया है। जब तक हमारे कार्य हमारी जीवनशैली तथा हमारे विचार, समाज के ढाँचे के अनुसार हैं तब तक ही हम इस समाज का एक सम्माननीय अंश बन के रह सकते हैं। यदि हमने इस रूढ़िवादी समाज की नीतियों का विद्रोह किया, तो यह समाज हमें बहिष्कृत कर देता है। सुकरात को इसी कारण विष का प्याला पीना पड़ा, ईसा मसीह को क्रॉस पर चढ़ा दिया गया, तथा अरस्तु को सब कुछ छोड़ के भागना पड़ा। आम जीवन में भी यदि कोई कर्मचारी अपने प्रबंधक से या कोई खिलाड़ी रेफ़री से ऊँचे स्वर में बात करे तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है या मैदान से भगा दिया जाता है। यदि कोई अभिव्यक्ति सामाजिक दायरे के अंदर नहीं आती है तो समाज उसे नष्ट कर देता है।

शारीरिक गतिवधियां जैसे की खेल, ख़रीददारी, व्यायाम या सहवास, ये सब विधियाँ होती हैं, अपने अंदर दबी हुई भावनाओं को बाहर निकालने की। आप किसी खेल के मैदान में, या किसी व्यायाम करने के स्थान पर चिल्ला सकते हैं। उसके तुरंत बाद आपको शांति की अनुभूति होती है। सब कुछ तरो ताज़ा लगता है। सभी बौधिक गतिविधियाँ एक मार्ग प्रदान करती हैं अपनी अंदरूनी भावनाओं को बाहर निकालने का। कईं व्यक्ति बड़ी बड़ी संस्थाओं एवं सरकारों को कितने ही विषयों के बारे में लिख डालते हैं। वो जानते हैं कि उनके पत्र कभी नहीं पढ़े जायेंगे परन्तु उन्हें ऐसा करने से अपनी भावनाओं को बाहर निकालने का एक मार्ग मिलता है। कितना अच्छा होता यदि आपके पास अपनी सारी नकारात्मक भावनाओं को बाहर निकालने की कोई विधि होती। आप में से कुछ लोगों के अंदर भावनाओं का एक तूफ़ान है जो अपने आप को व्यक्त करने का केवल एक मार्ग ढूंढ रहा है।

यदि हम बच्चों का उदाहरण लें तो हमें यह ज्ञात होगा कि वे आराम से चिल्ला एवं रो सकते हैं, जिनसे वो भावनाओं के बोझ से मुक्त होकर अगले ही पल फिर से खुश हो जाते हैं। समझने की बात यह है कि वे किसी पर चिल्ला नहीं रहे होते वे केवल चिल्ला रहे होते हैं। वे किसी भी सामाजिक दायरे में बंधे नहीं होते। उन्हें अपरिपक्व समझकर लोग उनकी बातों को भूल जाते हैं। जबकि एक वयस्क अपने मन की भावनाओं की उथल पुथल में ही फँस कर रह जाता है। वह केवल चिल्लाता नहीं, दूसरों पर चिल्लाता है। अब मैं इस विषय की जड़ पर आता हूँ। कोई ऐसी जगह ढूँढ़िए जहाँ जाकर आप बिना किसी डर के चिल्ला सकें, वो भी ऊँचे स्वर में। जहाँ आपको इस बात की चिंता न हो कि आपको कोई देख रहा होगा।

तब तक चिल्लाते रहिए जब तक आपके अंदर छुपी सारी चिंताओं एवं भावनाओं का उमड़ता तूफ़ान बाहर न निकल जाए। हो सकता है, आपके जीवन में कुछ पल ऐसे आयें हो, जब आपके साथ किसी ने गलत किया हो परन्तु आप उस समय रोने में अक्षम महसूस कर रहे थे या फिर आप ने किसी अपने को खो दिया हो परन्तु उस विषाद को आप ठीक से व्यक्त नहीं कर पाएँ हों। कुछ ऐसे पल जब आपको समाज के सामने दृढ़ बन कर रहना पड़ा हो जब आपका मन अंदर से घबरा रहा था, या आपके सपने जो आपने अपने परिवार के लिए त्याग दिए। काफी सारी भावनाएं हैं जिनके बोझ तले हम दबे हुए हैं, इन्हें बाहर निकालने की आवश्यकता है। तब तक चिल्लाते रहिये जब तक यह भावनाएं आँसू बनकर आपकी आँखों से न निकलें।

इसे महसूस की जिये, अपने अंदर झांकिए, आपके अंदर कितना भार है। इसमें बहुत सी भावनाओं को तो आप अपने अंदर नहीं रखना चाहते हैं परन्तु आपको इस बात का ज्ञात नहीं है कि इसे अपने अंदर से कैसे निकालें। लोग ध्यान करते हैं, क्रीड़ा करते हैं, व्यायाम करते हैं, अपने आप को इस भार से हल्का करने का प्रयत्न करते हैं। जब एक बच्चा सोता है तब उसका चेहरा एकदम शांत स्वभाव का होता है, क्योंकि वह स्वयं को इस बोझ से वंचित करने में सक्षम है। आप को भी अपने आप को इस बोझ से मुक्त करने की आवश्यकता है। यदि आपके अंदर सकारात्मक भावनाएं हैं तो उन्हे और बढ़ाने का रास्ता ढूंढें। कुंठाओं एवं नकारात्मक भावनाओं को बाहर निकालिए ताकी आप अपने आप को हल्का महसूस कर सकें।

यदि मेरे पास बीस लोगों का समूह होता तो हम तीन दिनों के लिए कहीं दूर चले जाते। मैं आपको अपने अंदर छुपी हुई कुंठाओं को दूर भगाने तथा अपने आप को इस बोझ से मुक्त करने के उपाय सिखाता। ध्यान करने का अर्थ किसी मृत वस्तु के समान बैठना नहीं होता, ध्यान करने का वास्तविक अर्थ है जीवन से परिपूर्ण होना। परन्तु यह सारी बातें मैं आपको किसी और दिन समझाऊंगा।

आप पवित्र हैं, अपनी जयजयकार कीजिये। जो वस्तुएँ आपको अपवित्र बनाती हैं, उनका त्याग कीजिए। इन्हें अपने अंदर भर कर मत रखिए, अपने आप को इनसे मुक्त करिए।
(Image credit: Shane Maddon)
शांति।
स्वामी







 

कैसे प्रसन्न रहें

कठिनाईयों की वर्षा हो या समस्याओं का कीचड़, प्रसन्नता का वाहन सदैव तीन पहियों पर चलता है।
 मुझे अक्सर दुनिया भर के पाठकों से ईमेल आते हैं, उनमें से अधिकतर की कोई समस्या होती है, कुछ की अनेक समस्याएं होती हैं। परंतु विषय यह नहीं कि उन की इतनी समस्याएं हैं, मुद्दा तो यह है कि वे इन समस्याओं के बीच प्रसन्न रहने में असमर्थ हैं। इसलिए यह एक आम धारणा है कि यदि हमारी समस्या दूर हो जाए, तो हमारी पीड़ा भी दूर हो जाएगी और यदि कोई पीड़ा ना हो, तो हम सुखी हो जाएंगे। कदाचित ही यह संभव है।

मनुष्य के अधिकतर कार्य या व्यवसाय खुशी प्राप्त करने की इच्छा और संतुष्टि का अनुभव करने के लिए ही किए जाते हैं। किंतु सुख ही अंतिम लक्ष्य नहीं है। हाँ यह एक परिणाम हो सकता है, परंतु सर्व प्रथम यह एक मानसिक अवस्था है।

भौतिक संपत्ति, बौद्धिक कारनामे एवं सामाजिक मान्यता की सहायता से आप संतुष्टि का अनुभव तो कर सकते हैं परंतु यह प्रसन्नता सीमित और अस्थायी होगी। आपके आनंद की मौलिक अवस्था इस पर निर्भर नहीं कि आपके पास क्या है या क्या नहीं है। चलिए मैं आपको प्रसन्नता के तीन पहियों के विषय में बताता हूँ, जिनके साथ जुड़े हैं तीन अमूल्य प्रश्न। यदि आपके जीवन का वाहन इन तीन पहियों पर खड़ा हो, तब आप अपनी यात्रा सहजता और प्रसन्नतापूर्वक पूरी करेंगे।

१. स्वीकृति - क्या मैं सब कुछ स्वीकार कर सकता हूँ और क्या मैं शांति का मार्ग चुन सकता हूँ?
स्वीकृति एक दिव्य तत्व है। यदि आप दूसरों को बिना किसी अपेक्षा के स्वीकार करते हैं तो तुरंत आपके कण कण में शांति भर जाती है। अस्वीकृति प्रतिरोध करने के समान होती है - प्रवाह के विरुद्ध तैरने के समान, यह सदैव कठिन होती है।

वसंत के मौसम में चारों ओर फूल खिले होते हैं और तब कुछ व्यक्तियों के शरीर पराग को स्वीकार करते हैं और वह स्वस्थ रहते हैं। अन्य व्यक्ति के शरीर उसे ठुकरा देते हैं और उस से लड़ने का प्रयास करते हैं। इसके फल स्वरूप उन के शरीर में बलगम का गठन होता है और उन्हे बुख़ार हो जाता है। इसी प्रकार आपको केवल तभी लड़ने की या प्रतिरोध करने की आवश्यकता पड़ती है जब आप स्वीकार नहीं कर पाते। यदि कोई प्रतिरोध ही ना हो तो कोई प्रतिक्रिया भी नहीं होगी।

स्वयं को प्रसन्न करने के लिए जब तक आप दूसरों पर निर्भर हैं, तब तक अन्य व्यक्ति आपकी मानसिक स्थिति को प्रभावित और निर्धारित करते रहेंगे। यह अति आवश्यक है कि आप लोगों को स्वीकार करने और परिस्थितियों को स्वीकार करने में अंतर जानें। आप लोगों को नहीं बदल सकते हैं परंतु आपके जीवन में उनका होना या ना होना आपकी परिस्थितियों को बदल सकता है। यदि आप लोगों से खुश नहीं हैं, तो इस समस्या के समाधान के लिए आपको अपने अंदर झांक कर देखना होगा। यदि आप अपनी परिस्थितियों से खुश नहीं, तो आपको उन परिस्थितियों को बदलने पर विचार करना होगा।

स्वीकृति का यह अर्थ नहीं कि जिसे आप महत्वपूर्ण मानते हैं उसे भुला दें। इस का यह अर्थ है कि आप अपने वर्तमान परिस्थितियों या परिणामों के कारण अपनी मन की शांति को भंग ना करें।

२. प्रवृत्ति - मैं इसका सामना कैसे करना चाहता हूँ?
दूसरा पहिया है प्रवृत्ति। आप कैसे जीवन का अनुभव और सामना करते हैं ये जीवन के प्रति, दूसरों के प्रति, और अपने आप के प्रति आपके दृष्टिकोण पर निर्भर है। जब आप सदैव इस सोच में डूबे रहते हैं कि आपका जीवन कैसा होना चाहिए या कैसा हो सकता है और जब आप ख़याली पुलाव पकाते रहते हैं, तब आपके पास पहले से जो है उस का महत्व शीघ्र ही कम होने लग जाता है।

मुल्ला नसरुद्दीन एक बार जर्जर वस्त्र पहने हुए एक थके हुए व्यक्ति से मिला जिसके हाथ में एक बोरी थी। मुल्ला नसरुद्दीन से रहा नहीं गया और वह पूछा, "जीवन कुशल मंगल तो है ना?"

उस व्यक्ति ने कहा, "कैसे हो सकता है? मेरे पास ना कोई घर है ना भोजन, ना कोई नौकरी ना कोई धन। जो कुछ भी है वह इस बदबूदार छोटी बोरी में है।"

बिना कुछ कहे, मुल्ला ने उसकी बोरी छीन ली और तुरंत भाग गया। उस व्यक्ति ने उसका पीछा किया परंतु उस को पकड़ नहीं पाया। कुछ देर बाद, मुल्ला ने सड़क के बीच उसकी बोरी रख दी और एक दुकान के पीछे जा कर छिप गया।

वह आदमी तेजी से आया, अपने पैरों पर गिरा, अपनी बोरी को पकड़ा और खुशी के आँसू बहाते हुए बोला, "आह मेरी बोरी ! मुझे अपनी बोरी वापस मिल गयी। मुझे लगा कि मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देख सकूंगा! धन्यवाद ईश्वर! मुझे अपनी बोरी वापस मिल गयी।"

मुल्ला खुद से बोला "चलो, यह हुआ ना रास्ता किसी को खुश करने का!"

दुखी लोग अपना समय उसे पाने की चिंता में बिताते हैं जो उन के पास नहीं है। जीवन में जैसी भी परिस्थितियों का सामना करना पड़े स्वयं से यह पूछिए - मैं इसका सामना कैसे करना चाहता हूँ?

अपने आप को याद दिलाएं कि आप के पास दो रास्ते हैं, एक सकारात्मक रवैया अपनाने का या फिर नकारात्मकता का रास्ता। आपको चुनना होगा।

३. जागरूकता - क्या मैं प्रसन्नता की ओर बढ़ रहा हूँ या उस से दूर जा रहा हूँ?
इससे पहले कि आप किसी भी स्थिति में एक प्रतिक्रिया चुनें, आप के पास कुछ क्षण होते हैं जिस में आप को अपना अंतिम निर्णय करना होता है। सही निर्णय और प्रतिक्रिया के लिए जागरूकता की आवश्यकता है। यदि आपकी कोई आदत हो, अच्छी या बुरी, तब जागरूकता दुर्बल हो जाती है और आपकी प्रतिक्रिया एक स्वत: कार्य हो जाता है। उदाहरणार्थ, समझ लें कि कोई ऐसा व्यक्ति हो जो आसानी से क्रोधित हो जाए, और हर प्रतिकूल स्थिति में उसकी अभिक्रिया क्रोध ही हो। क्योंकि यह उसकी आदत है, शीघ्र ही वह बिना जाने ही अपने आप को क्रुद्ध पाएगा। जब उस का क्रोध शांत हो जाए उस के बाद ही उसे यह अहसास होगा कि वह क्रोधित हुआ था और संभवतः वह क्षमा भी मांगे। इसी प्रकार कईं लोग किसी विशेष कारण से नहीं, केवल अपनी आदत और प्रवृत्ति के कारण दुखी होते हैं।

जागरूकता विकसित करने के लिए अभ्यास एवं सतर्कता की आवश्यकता है। जागरूकता द्वारा आप सही मार्ग पर चलने लगेंगे। आप के कर्म या तो आप को प्रसन्नता की ओर या उस से दूर ले जा सकते हैं। इससे पहले कि आप किसी भी स्थिति में एक प्रतिक्रिया चुनें, स्वयं से पूछें -  क्या मैं प्रसन्नता की ओर बढ़ रहा हूँ या उस से दूर जा रहा हूँ? बड़ी सावधानी से अपनी प्रतिक्रिया का चयन करें - बहुत कुछ इसी पर निर्भर है।

यदि आप अपने आप को, दूसरों को और परिस्थितियों को वैसे के वैसे रहने दें और केवल शांति का मार्ग चुनें, तो आप प्रसन्नता को स्वत: आकर्षित करेंगे। खुशी आप का दृष्टिकोण है, इस को स्वयं से दूर ना होने दें। शेक्सपियर ने सही ही कहा है, "दूसरे व्यक्ति की आँखों  से देखो तो प्रसन्नता भी कितनी कड़वी लगती है।"

क्या आप सदैव प्रसन्न रह सकते हैं? हाँ। कैसे? प्रसन्न रहने की कामना को त्याग दें। खुश होने की इच्छा से ना बंधें। और जिस से आप बंधे ही नहीं उसे आप खो कैसे सकते हैं!
(Image credit: Ruth Burrows)
शांति।
स्वामी

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