सबसे महत्वपूर्ण तीन प्रश्न

जीवन वर्तमान क्षणों की एक श्रृंखला है। क्षणों की इस लहर से समय उत्पन्न होता है और जीवन भिन्न प्रकार के रंगों से भर जाता है।
 सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है? सबसे महत्वपूर्ण समय क्या है? सबसे महत्वपूर्ण कर्म क्या है? एक समय की बात है एक राजा जब सुबह जागे उनके मन में ये तीन प्रश्न उठे। राजदरबार में उन्होंने अपने मंत्रियों एवं अन्य दरबारियों से ये प्रश्न पूछे। कुछ व्यक्ति यह बोले कि राजा सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, मृत्यु की घड़ी सबसे महत्वपूर्ण समय है, तथा अपने धर्म का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण कर्म है। अन्य लोगों का यह मानना था कि जनम का समय सबसे महत्वपूर्ण समय होता है, दान सबसे महत्वपूर्ण कर्म होता है तथा संतान अथवा माता पिता सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होते हैं। कुछ लोगों का यह मानना था कि ईश्वर सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं और कुछ यह कहने लगे कि किसान अथवा सैनिक सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।

इस प्रकार राजा को अनेक उत्तर मिले। परंतु वे किसी से भी संतुष्ट ना थे। ये तीन प्रश्न प्रजा से भी पूछे गए परंतु कोई भी संतोषजनक उत्तर ना दे सका। अंत में मुख्यमंत्री ने राजा को यह सुझाव दिया कि वे पहाड़ की चोटी पर बसे एक ऋषि से सम्पर्क करें। तुरंत राजा अपने समूह के साथ ऋषि से मिलने निकल पड़े। कुछ समय बाद एक खड़ी चढ़ाई पार कर के वे योगी की गुफा के बाहर पहुँचे। रीति अनुसार उन्होंने अपनी तलवार गुफे के बाहर रखी, ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और फिर उनसे अपने प्रश्न पूछे। ऋषि राजा को एक चट्टान के सिरे पर ले गए जहाँ से पूरा राज्य दिखाई दे रहा था। राजा अपने विशाल साम्राज्य को देख अति प्रसन्न हुए और उन्हें अपना जीवन आनंदमय लगा। अचानक उन्हें पीछे से किसी ने “पीछे मुड़ें” कह कर पुकारा।
जैसे ही वे मुड़े उन्होंने देखा कि ऋषि ने राजा की छाती पर तलवार रखी हुई थी।
“हे राजन!” ऋषि बोले, “क्या अब आप को समझ में आया कि सबसे महत्वपूर्ण समय क्या है, सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है और सबसे महत्वपूर्ण कर्म क्या है?”
राजा चौंक गए। कुछ क्षण बाद उनका भय दूर हो गया और उनके ह्रदय में असीम शांति भर गई। अपनी सहमति दिखाते हुए राजा ने श्रद्धा और आदर से ऋषि को नमन किया। ऋषि ने उनकी तलवार उन्हें वापस कर दी। राजा ने अपनी कृतज्ञता व्यक्त की और अपने महल लौट गए।
अगले दिन दरबारियों ने उत्सुकता से उनसे पूछा कि क्या उन्हें कोई संतोषजनक उत्तर मिला।
“हाँ”, राजा ने कहा। “साधु ने एक ही पल में सभी प्रश्नों का उत्तर दे दिया। जब विस्मयपूर्वक मैं अपने विशाल साम्राज्य को देख रहा था तब मुझे यह अहसास हुआ कि मेरे लिए सबसे सार्थक कर्म है अपनी प्रजा की देखभाल करना, उन्हें प्रेम करना। मुझे अहसास हुआ कि मैं केवल अपनी प्रजा के कारण ही राजा हूँ। और फिर ऋषि मेरी तलवार लिए मेरे सामने आ गए। मैं मृत्यु से कुछ ही पल दूर था। तब मुझे अहसास हुआ कि सबसे महत्वपूर्ण समय है ‘अब’। उस क्षण मेरे अतीत का कोई महत्व नहीं था और ना ही मेरा कोई भविष्य था। मेरे पास केवल वह एक क्षण था। इसी प्रकार अब भी यह एक क्षण ही है मेरे पास। सदैव मेरे पास वर्तमान का यह समय ही होगा। यह समय ही सब से महत्वपूर्ण है।”
राजा कुछ देर शांत हो गए और चिंतन करने लगे। कुछ समय बाद उनके मंत्री ने कहा “और, महाराज सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन है?”
“तुम।”
“मैं?”
“हाँ, तुम। परंतु तुम नहीं।”
“आप के शब्द मेरी समझ से बाहर हैं नरेश।”
“सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वह है जिस की संगत में आप इस क्षण हैं, जिस के साथ आप संवाद कर रहे हैं”, राजा बोले। “इसलिए, आप ही अभी सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं।”

जब मैं ने सबसे पहले लियो टालस्टॉय की यह कहानी सुनी, तो मैं ने सोचा कि यदि लोग इन बातों को याद रख सकते तो उनके जीवन के प्रमुख पहलुओं में स्वत: एक परिवर्तन आ जाएगा। आप के साथ जो व्यक्ति ‘अभी’ उपस्थित है वही सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है। यदि आप उस व्यक्ति को एकाग्रता से अपना पूरा ध्यान दें, तो आप उनके आत्मसम्मान को बढ़ा देते हैं, वे सम्मानित एवं विशिष्ट महसूस करते हैं। अन्य सभी सकारात्मक भावनाओं का भी स्वाभाविक रूप से बढ़ावा होगा। और निस्संदेह, ‘अभी’ ही सबसे महत्वपूर्ण समय है, सबसे महत्वपूर्ण क्षण। संक्षेप में यही वर्तमान में रहने का सिद्धांत है - वर्तमान क्षण को अपना सम्पूर्ण ध्यान देना। दूसरों के साथ प्रेम एवं करुणा से व्यवहार करना, उनकी देखभाल करना - यही सबसे महत्वपूर्ण कर्म है। अपने आप के साथ, अपने जीवन के साथ, अपने समय के साथ और अन्य लोगों के साथ आप यही सबसे महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं। जब आप अपने आप के साथ हों, तो अपने आप को स्नेह दें; और जब किसी और के साथ हों, तब उन्हें अपना पूरा ध्यान दें। आप बहुत कुछ बहुत कम समय में हासिल कर पाएंगे।

और, सबसे महत्वपूर्ण भावना क्या है? सफलता? शासन करने की अनुभूति? किसी के प्रति प्रेम की भावना? या दूसरे आप के प्रति प्रेम जतायें वह भावना? विशिष्ट होने की भावना?  नहीं, मेरे विचार में ऐसा नहीं है। मेरे विचार में सबसे महत्वपूर्ण भावना संतुष्टि है। जब आप संतुष्ट हों, आप के सभी दुख मिट जाते हैं, आप अति प्रसन्न हो जाते हैं, शांति से सोते हैं, खुशी खुशी जागते हैं, आप के ह्रदय में प्रेम और करुणा भरी रहती है और आप को असीम शांति का अहसास होता है। शेक्सपियर के शब्दों में:

और हमारा यह जीवन, सार्वजनिक पारस्परिक क्रियाओं से दूर,
पेड़ो की बोली सुन पाता है, नदी को पुस्तक समान पढ़ पाता है,
पत्थरों का उपदेश सुन पाता है, और हर वस्तु में अच्छाई देख पाता है


जब आप स्वयं के साथ हों, याद रखें कि तब आप ही सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। बेकार की द्वेष भावना या पुरानी बातों के विषय में सोच कर अपनी मानसिक शक्ति व्यर्थ ना करें। नकारात्मक विचारों से किसी का भला नहीं हुआ है। अब जागें! आप जिस के साथ भी हैं उस के साथ सम्पूर्ण रूप से रहें और सबसे महत्वपूर्ण कर्म करें।
(Image credit: Cuded)
शांति।
स्वामी



चलचित्र के समान जीवन

जीवन एक चलचित्र के समान है। वह अच्छा है या बुरा, लंबा है या छोटा, यह तो व्यक्तिगत पसंद पर ही निर्भर है। कुछ फ़िल्म दुःखान्वित फ़िल्मों की श्रेणी में आती हैं जबकि कईं अन्य हास्यप्रधान फ़िल्म कहलाती हैं। कुछ क्रियाकलाप एवं उत्तेजना से भरपूर होती हैं तो कुछ धीमी गती से चलती हैं। कुछ डरावनी होती हैं तो कुछ में आतंक ही आतंक होता है। एक बार आप सिनेमा हाल में चले गए तो ऐसा लगता है कि आप के पास और कोई विकल्प ही नहीं हैं। फ़िल्म जितनी भी बेकार हो संभवतः आप उसे देख ही लेते हैं। आप को लगता है कि पैसा खर्च किया है तो इसे बैठ कर देख ही लेते हैं। हाँ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो फ़िल्म को आधे में छोड़ कर चले जाने का चुनाव करते हैं। कभी कभी फ़िल्म बहुत अच्छी होती है। ओह! परंतु कुछ असभ्य व्यक्ति फ़िल्म के समय निरंतर टिप्पणी करते रहते हैं तथा अपने पैरों से लगातार आप के सीट को लात मारते रहते हैं। आप के निकटवर्ती सीट पर बैठे व्यक्ति के विषय में तो पूछिए भी मत। ऐसा प्रतीत होता है कि उस ने संसार के सारे चिप्स भंडार को समाप्त करने की ठान ली है। चिप्स को वह ऐसे कोलाहल पूर्वक चबाता है मानो कोई प्रलय आ गया हो। आप के सामने वाले सीट में कुछ शिष्ट व्यक्ति भी होते हैं। परंतु वह अपने कोका कोला को ऐसे चूसते हुए पीते हैं जैसे कोई अजगर फुफकार रहा हो। आप बेबस, लाचार एवं कुंठित हो जाते हैं। इन व्यक्तियों को अनदेखा करने के आप के सारे प्रयत्न असफल हो जाते हैं।

जीवन भी कुछ इस प्रकार ही होता है। कुछ पहलू आप के वश में होते हैं परंतु कुछ पूरी तरह से आप के वश के बाहर होते हैं। आप कुछ पहलुओं के साथ आसानी से जीना सीख लेते हैं और कुछ दूसरे विषयों पर संघर्ष करते रहते हैं। मैं आप को एक रहस्य बताता हूँ - आप जब भी चाहें इस फ़िल्म को बदल सकते हैं। वह भी आप की इच्छा अनुसार। फ़िल्म में परिवर्तन आते ही आप के चारों ओर बैठे हुए दर्शकों में भी परिवर्तन आ जाएगा। उदाहरणार्थ आप अपने छोटे बच्चों को वयस्कों के लिए बनी एक डरावनी फ़िल्म के लिए तो नहीं लेकर जाएंगे। उसी प्रकार आप शोर मचाने वाले लोगों को एक भावुकताजनक फ़िल्म में संभवतः नहीं पाएंगे।

बाहर एक बड़े पर्दे पर प्रदर्शित आप के जीवन की फ़िल्म निस्संदेह आप के स्वयं के हाथ में ही है। आप का मन आप के विचारों की रील को पेश करने वाली शक्तिशाली प्रोजेक्टर है। और यह प्रोजेक्टर आप के सांस में उपस्थित महत्वपूर्ण जीवन शक्ति (प्राण) द्वारा संचालित है। आप का मन नियंत्रित है तो आप अपने पसंद के अनुसार रील बदल सकते हैं। और आप की सांस नियंत्रित हो तो आप इस प्रोजेक्टर को रोक सकते हैं या पूरी तरह बंद भी कर सकते हैं। मैं ने अभी आप को न केवल एक महत्वपूर्ण रहस्य बताया है परंतु संक्षेप में योग के सबसे महत्वपूर्ण रहस्य को प्रकट किया है।

जाइए और फ़िल्मों का आनंद ली जिए! किंतु किसी और के फ़िल्म को छोड़िए। अपनी स्वयं की फ़िल्म देखिए जो आप को पसंद हो, जो आप को प्रसन्न करे और जो आप को प्रगति की ओर ले जाए। इस को अपनी शर्तों पर पेश करिए। अपने पसंदीदा माहौल में पेश कीजिए। इस को अपने वैयक्तिक सिनेमा हाल में देखिए। आप के पसंद अनुसार व्यवस्थित और सेवित। मैं ऐसे ही देखता हूँ!

क्या आप भी मेरे साथ देखना चाहेंगे?

शांति।
स्वामी

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