आत्म परिवर्तन का योग - मेरा दृढ़ संकल्प

अगले कुछ महीनों में मैं आत्म परिवर्तन पर लेख लिखूँगा। हो सकता है कि आपको मेरी लिखी बातें उन बातों के बिल्कुल विपरीत लगें जो आप आज तक पढ़ते या सुनते आएं हैं। मैं आप से आग्रह करता हूँ कि आप वो मार्ग चुनें जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे। आप स्वयं का विश्लेषण करें ताकि आप आत्म बोध के लक्ष्य तक पहुँच सकें। इससे पहले कि मैं आप सबके सामने अपने विचार प्रकट करूँ, मैं अपने दृढ़ संकल्प को आप सब के सामने प्रस्तुत करना चाहता हूँ:

मैं संकल्प लेता हूँ कि मैं आपको केवल उन्ही बातों से अवगत करूँगा जिन का मैंने स्वयं अनुभव किया है। योगिक प्रथाओं के संदर्भ में मैं संभवत: कुछ ग्रंथों या महान लेखों में कही गयी बातों पर प्रकाश डालूँ परन्तु यह केवल वही बातें होंगी जिनकी मैंने स्वयं पुष्टि की है और जिसे मैं आप के सामने प्रमाणित कर सकूं। मैं आपके सामने योगिक प्रथाओं तथा उन की शक्तियों का विवरण करूँगा।

आत्म परिवर्तन के योग के द्वारा ही मुझे समाधी की प्राप्ति हुई है। जब मैंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ की थी तब मुझे इस बात का ज्ञान नहीं था कि मुझे अपने लक्ष्य तक पहुँचने में कितना समय लगेगा या फिर मैं वहां तक पहुँच भी पाऊंगा या नहीं। इसे अनुभव करने के बाद, मैं इसके सिद्धांत एवं व्यवहार को एकत्रित करके आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ- आत्म परिवर्तन का योग।

आत्म परिवर्तन का योग ना ही कोई राम बाण है जो हमारी सारी त्रुटियाँ मिटा दे और न ही उससे हम अन्तर्यामी बन जाएँगे । परन्तु यदि हम इसका अभ्यास गंभीरता पूर्वक एवं पूर्ण निष्ठा के साथ करेंगे तो हम अपने अंदर एक सकारात्मक बदलाव देखेंगे।

क्योंकि मैंने संकल्प लिया है इसीलिए मैं समक्ष संपूर्ण रूप से सच्चाई प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। मैं किसी भी बात को बढ़ा चढ़ाकर नहीं कहूँगा अथवा आपके मस्तिष्क में किसी भी प्रकार की झूठी धारणाएं नहीं डालूँगा। इसके परिणाम स्वरूप संभवत: आप को यह सारे अध्याय आकर्षक नहीं लगें परन्तु आपको सच्चाई का ज्ञात अवश्य हो जाएगा। कोई अदीक्षित यदि योग प्रथाओं पर विभिन्न प्रकार के लेख पढने लगे तो उसके मन में भ्रम पैदा हो सकता है क्योंकि उन लेखों में जिन सिद्धिओं का उल्लेख रहता है उन्हें कठोर एवं निरंतर अभ्यास से ही प्राप्त किया जा सकता है। पुरातन एवं किताबी धारणाओं को नष्ट करके मैं इस विषय पर अपने विचार नयी तरह से प्रस्तुत करूँगा।

मैं आपसे केवल इतना ही वादा कर सकता हूँ की यदि आप मेरी लिखी गयी बातों पर अमल करेंगे तथा उन्हें अपने जीवन का एक हिस्सा बनाने का प्रयास करेंगे तो आप परिणाम अवश्य देखेंगे। यदि आप प्रयास ही नहीं करेंगे या बहुत कम प्रयास करेंगे तो आपको कोई परिणाम दिखायी नहीं देगा। सशक्त प्रयासों से ही उत्कृष्ट परिणाम मिलेंगे।

यदि आप आत्म परिवर्तन के योग में सफल हो जाते हैं तो आपको आलौकिक ज्ञान एवं आनंद की प्राप्ति होगी।

हमारे साथ जुड़े रहिए।

शांति।
स्वामी
 

आत्म परिवर्तन का योग - प्रस्तावना

Image source: cjn
आज तक मैं सभी विषयों पर कुछ खंडित रूप से लेख लिख रहा था। अपने अनुभव एवं पारस्परिक व्यवहार के आधार पर जो विषय मुख्य लगे उन पर प्रकाश डाला। अब उन सभी विषयों को एकत्रित करके एक स्त्रोत में पिरोने की आवश्यकता है। मैं इन सिद्धांतों एवं दार्शनिक विचारों को काफी समय से केन्द्रित करने की सोच रहा था। मैं चाहता हूँ कि लोग इन का लाभ उठाएं तथा अपने जीवन में इन्हें उपयोग में लाएं। यदि इस कार्य को आप पूर्ण निष्ठा के साथ करें तो आप को अमूल्य फल मिलेगा। आप अपने अंदर के वास्तविक सत्य को जानने लगेंगे और जब यह होगा तब आप के भीतर संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा जागृत होगी।

मैं योग शक्ति पर एक पुस्तक लिखने की सोच रहा हूँ। परन्तु इसे लिखने में अभी थोड़ा समय लगेगा। मैं कुछ लेख लिख रहा हूँ जो बाद में एक पुस्तक में परिवर्तित कर दिए जाएँगे। आने वाले कुछ महीनों में मैं आपको इन विषयों से अवगत कराऊंगा -

मेरे सिद्धांत
हम स्वयं का रूपांतरण दो विधियों द्वारा कर सकते हैं। पहली विधि यह है कि उस सिद्धांत पर गहन विचार करें, उस को पूरी तरह से समझें और फिर यदि आप उस से सहमत हैं तब उस पर अमल करें। दूसरी विधि यह कि सबसे पहले उन सिद्धांतों पर अमल करें और धीरे धीरे उनमें छुपी सच्चाई को जानें। मेरा मानना है कि मुझे आप सब को इसके कुछ आधारिक तथ्यों से अवगत करने की आवश्यकता है। तभी आप इसे पूर्ण रूप से समझ पाएंगे तथा अपने जीवन में इसका उपयोग करने में सफल हो पाएंगे।

इन गहन सिद्धांतों पर विचार करने के साथ साथ मैं अपने पुराने लेखों के भी कुछ विषयों पर प्रकाश डालूँगा। इस व्याख्यान में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की जाएगी-
१. मन का स्वरूप
२. आत्म परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है
३. आत्म परिवर्तन की विधि

मैं आत्म परिवर्तन के पथ को कुछ इस तरह से देखता हूँ -
मुझे लगता है कि हम अपने गंतव्य पर आसानी से पहुँच सकते हैं यदि हमें अपने मूल का ज्ञान हो। इसीलिए हमें आत्म परिवर्तन करने से पहले आत्म विश्लेषण करना चाहिए। आत्म विश्लेषण के बाद हमें अपने गुणों एवं अवगुणों का अच्छे से ज्ञात हो जायेगा और हमें पता चल जाएगा कि हमें और कितनी मेहनत की आवश्यकता है। उदहारणार्थ आप में से किसी किसी का शरीर पहले से स्वस्थ होगा तो उन्हें अपने शरीर को चुस्त बनाने मे अधिक समय नहीं लगेगा। मानव स्वरूप कईं तत्वों से साँचा गया है। मैं हर तत्व पर एक-एक कर के चर्चा करूंगा। यह तत्व हैं-
१. व्यक्तित्व
२. अहंभाव
३. इच्छाएं
४. भय
५. विश्वास

आत्म परिवर्तन के पथ पर अग्रसर व्यक्तियों को नैतिक, भावनात्मक, शारीरिक एवं मानसिक स्तरों पर स्वयं को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। इन पहलुओं पर अधिक ज्ञान हमें निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा मिलेगा -
१. नैतिक परिवर्तन
२. भावनात्मक परिवर्तन
३. शारीरिक परिवर्तन
४. मानसिक परिवर्तन

यदि हम इन चारों स्तरों पे अपने आप को परिवर्तित कर पाते हैं तो हम संपूर्ण आत्म परिवर्तन कर पायेंगे तथा समाधी प्राप्त करके ईश्वर में लीन हो पाएंगे।

मूल प्रथाएं
मूल प्रथाओं के तहत हम आत्म परिवर्तन के लिए शारीरिक एवं मानसिक योग प्रथाओं के बारे में जानेंगे। संक्षेप में इन प्रथाओं में शामिल होंगे-
१. शारीरिक प्रक्षालन की छह गुना प्रणाली
२. शारीरिक अनुरक्षण की पांच गुना प्रणाली
३. एकाग्रता का अभ्यास
४. ध्यान का अभ्यास
५. विश्राम का अभ्यास
६. एकांत एवं मौन का अभ्यास
७. आत्म विश्लेषण एवं प्रलेखन का अभ्यास

समाधी
इस खंड में मैं आपको समाधी की ओर बढ़ने वाले पथ से अवगत कराऊंगा तथा समाधी  प्राप्त करने पर क्या होता है, इस सत्य पर भी प्रकाश डालूँगा। आम धारणा के विपरीत समाधी एक अल्पकालिक अनुभव नहीं है। इसे प्राप्त करने में काफी समय लगता है तथा इससे भी अधिक समय इस स्थिति को बनाए रखने में लगता है। सबसे बड़ी चुनौती होती है विचलन से अपने आपको बचाना क्योंकि समाधी की अवस्था में परम आनंद में खो जाने का डर है। जब ईश्वर आप को यह परम आनंद देता है, तब आप का कर्तव्य बन जाता है कि आप अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों की सेवा में करें। सभी प्रमुख ग्रन्थ इस सत्य का उल्लेख करते हैं और मैं उन का समर्थन करता हूँ। आप का असली काम तो तब प्रारंभ होता है जब आप समाधी की अवस्था में रहना सीख जाते हैं। उस अवस्था में आप के अंदर एक मौलिक एवं नवीन दृष्टिकोण पैदा हो जाती है।

समाधी के पश्चात
इस खंड में हम जानेंगे कि हम स्वयं से किस प्रकार के परिवर्तन की आशा कर सकते हैं तथा जब हम योग के द्वारा आत्म परिवर्तन करने में सफल हो जाते हैं तब हमें कैसा अनुभव होता है। आत्म परिवर्तन के अंत में हमें स्वयं के वास्तविक स्वरूप का अनुभव होगा।

आप समाधी से केवल सात कदम ही दूर हैं। आप अपने हर कदम को या तो एक ऐसी बाधा के रूप में देख सकते हैं जिसे आप लगन से पार कर लेंगे अथवा एक गहरी खाई के रूप में जिसे आप निरंतर प्रयास करने के बाद भी पार नहीं कर पाएंगे - यह आप ही पर निर्भर है कि आप इसे कैसे देखते हैं।

हरे कृष्ण
स्वामी

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