एक पाठक ने निम्नलिखित टिप्पणी की:
हरि बोल प्रभु जी!
मैं बड़ी उत्सुकता से आपके अगले लेख की प्रतीक्षा कर रहा हूँ और आशा करता हूँ कि आपकी कृपा से सत्य को समझने में सफल हूँगा। मेरा आप से एक प्रश्न है। प्रश्न समाधि के विषय पर है। समाधि या विशुद्ध परमानंद का क्या अर्थ है? मेरा यह समझना है कि समाधि एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति स्वयं की वास्तविकता जान लेता है, अर्थात उसे ईश्वर और स्वयं में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। व्यक्ति को यह अहसास होता है कि वह शरीर नहीं चेतन है। जैसे राजा जनक ने सत्य को साकार करने के बाद श्री अष्टावक्र गीता में कहा "मैं अद्भुत हूँ, मैं स्वयं को नमन करता हूँ"।
कृपया आप के इस तुच्छ भक्त का मार्गदर्शन करें।
हरे कृष्ण!
अमित
["आत्म परिवर्तन का योग - मेरा दृढ़ संकल्प" नामक लेख पर यह टिप्पणी की गई ]
मेरे विचार में समाधि का अर्थ है उस एक परमात्मा के समान हो जाना, उस के बराबर हो जाना। उपाधि का अर्थ है लगभग उस जैसा हो जाना, समझ लीजिए केवल एक पद नीचे। परंतु समाधि का अर्थ है पूर्ण रूप से ईश्वर के समान होना। उस दृष्टिकोण से, आप सही हैं कि समाधि एक ऐसी स्थिति है जिसमें आप अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित हैं। परंतु केवल जानने और अनुभव करने में अंतर होता है। सुने-सुनाये ज्ञान से व्यक्ति समाधि के विषय में जानकारी अवश्य प्राप्त कर सकता है परंतु समाधि की वास्तविक स्थिति को पूर्ण रूप से समझने के लिए उसे स्वयं उस अवस्था में जाना होगा। उसे स्वयं अहसास करना होगा। समाधि का अनुभव करना होगा।
व्यक्ति परिस्थितियों एवं समाज से प्रभावित हो जाता है, इसी कारण समाधि की अवस्था की अनुभूति नहीं कर पाता है। यदि वह इस अनुभवातीत स्थिति की प्राप्ति कर ले तो उस के बाद उसे केवल स्वयं को प्रभावित ना होने की अवस्था में रखना है, तब समाधि की स्थिति बने रहेगी। इसके अतिरिक्त - अतुलनीय संवेदना एवं उत्तेजना शरीर से उभरेगी, विशेष रूप से अज्ञा चक्र और सहस्रार में। उत्तेजना इतनी गहरी होगी कि आपको बाहरी कुछ भी दिलचस्प नहीं लगेगा। बाहरी दुनिया आपके आंतरिक स्थिति से अनभिज्ञ रह सकता है, परंतु उत्तेजना और अद्वितीय आनंद आप के भीतर बहता रहेगा। जागृत अवस्था में आप लगातार ऐसी उत्तेजना महसूस करेंगे। यही समाधि की अवस्था है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है और जो भी प्रयत्न करने के लिए तैयार है वह भी अनुभव कर सकता है। जिस प्रकार जल में लहर गठित हो सकता है परंतु बर्फ में नहीं, उसी प्रकार समाधि में आप बिना चंचलता के स्थायी रूप से परमानंद का अनुभव करते हैं। क्रोध, वासना, घृणा और अन्य नकारात्मक भावनाएं आप के अंदर उभर ही नहीं सकतीं।
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हरि बोल प्रभु जी!
मैं बड़ी उत्सुकता से आपके अगले लेख की प्रतीक्षा कर रहा हूँ और आशा करता हूँ कि आपकी कृपा से सत्य को समझने में सफल हूँगा। मेरा आप से एक प्रश्न है। प्रश्न समाधि के विषय पर है। समाधि या विशुद्ध परमानंद का क्या अर्थ है? मेरा यह समझना है कि समाधि एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति स्वयं की वास्तविकता जान लेता है, अर्थात उसे ईश्वर और स्वयं में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। व्यक्ति को यह अहसास होता है कि वह शरीर नहीं चेतन है। जैसे राजा जनक ने सत्य को साकार करने के बाद श्री अष्टावक्र गीता में कहा "मैं अद्भुत हूँ, मैं स्वयं को नमन करता हूँ"।
कृपया आप के इस तुच्छ भक्त का मार्गदर्शन करें।
हरे कृष्ण!
अमित
["आत्म परिवर्तन का योग - मेरा दृढ़ संकल्प" नामक लेख पर यह टिप्पणी की गई ]
व्यक्ति परिस्थितियों एवं समाज से प्रभावित हो जाता है, इसी कारण समाधि की अवस्था की अनुभूति नहीं कर पाता है। यदि वह इस अनुभवातीत स्थिति की प्राप्ति कर ले तो उस के बाद उसे केवल स्वयं को प्रभावित ना होने की अवस्था में रखना है, तब समाधि की स्थिति बने रहेगी। इसके अतिरिक्त - अतुलनीय संवेदना एवं उत्तेजना शरीर से उभरेगी, विशेष रूप से अज्ञा चक्र और सहस्रार में। उत्तेजना इतनी गहरी होगी कि आपको बाहरी कुछ भी दिलचस्प नहीं लगेगा। बाहरी दुनिया आपके आंतरिक स्थिति से अनभिज्ञ रह सकता है, परंतु उत्तेजना और अद्वितीय आनंद आप के भीतर बहता रहेगा। जागृत अवस्था में आप लगातार ऐसी उत्तेजना महसूस करेंगे। यही समाधि की अवस्था है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है और जो भी प्रयत्न करने के लिए तैयार है वह भी अनुभव कर सकता है। जिस प्रकार जल में लहर गठित हो सकता है परंतु बर्फ में नहीं, उसी प्रकार समाधि में आप बिना चंचलता के स्थायी रूप से परमानंद का अनुभव करते हैं। क्रोध, वासना, घृणा और अन्य नकारात्मक भावनाएं आप के अंदर उभर ही नहीं सकतीं।
समाधि मात्र किसी उज्ज्वल चमक को देखना या क्षण-भंगुर ब्रह्मांड से संयोग महसूस करना नहीं है। ऐसे अनुभव का क्या लाभ? वह कैसे किसी को परिवर्तित कर सकता है? आधुनिक युग के कईं ग्रंथ आपको यह विश्वास दिलाते हैं कि ध्यान में बैठे रहो और एक दिन आपको अचानक समाधि प्राप्त हो जाएगी। यह सब निरर्थक बातें हैं। जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता या फिर से दोहराया नहीं जा सकता उसे योगी कभी नहीं मानता। समाधि में आप पूर्ण चेतना का अहसास करते हैं। निश्चित रूप से, यह चेतना इतनी तीक्ष्ण होगी कि सामान्य स्थिति से बिलकुल अलग होगी।
सही समय आने पर मैं इस श्रृंखला एवं विषय पर और लिखूँगा। मैं समाधि से जुड़े रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए उत्सुक हूँ।
हरे कृष्ण
स्वामी
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