शरीर के प्रति सतर्क रहना

अपने शरीर की सुनें। अग्नि के ही समान, कोई भी बीमारी इतनी लघु नहीं होती कि आप उस को अनदेखा कर दें। छोटी सी बीमारी भविष्य में असहनीय रोग बन सकती हैं।
सतर्कता एक ऐसा उत्तम एवं लाभप्रद गुण है जिस की वृद्धि के लिए आप परिश्रम कर सकते हैं। सचेत रहने और सतर्कता में एक छोटा परंतु महत्वपूर्ण अंतर है। सचेत रहने का अर्थ है सदैव एक जागरूकता की भावना बनाए रखना जिस के द्वारा आप स्वयं के विचारों एवं कार्यों को देख रहे हों। अत्यधिक अभ्यास के द्वारा आप के सचेत रहने की क्षमता इतनी तीक्ष्ण हो जाती है कि आप को फिर कोई विशेष प्रयास करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। सचेत रहना एक स्थिर जीवन और एक स्वस्थ मन का आधार है। यह ध्यान का भी मूल सार है। कुछ समय पहले मैं ने ध्यान योग पर एक प्रवचन दिया था जिसे आप मेरे ब्लॉग में  यहाँ देख सकते हैं।

मेरे इस लेख का विषय है सतर्कता, जो कि एक सुविचारित कार्य है। आप ध्यान दे रहे हैं और आप इस बात से पूर्ण रूप से अवगत हैं कि आप सतर्क होने का प्रयास कर रहे हैं। यदि आप स्वयं के प्रति, अपने कार्यों के प्रति, अपने शरीर के प्रति तथा अपनी परिस्थिति के प्रति सतर्क रहें, तो आप स्वाभाविक रूप से अपने जीवन में एक सहज एवं लाभप्रद अनुशासन को विकसित करते हैं। अंततः सतर्कता द्वारा आप सचेत रहने की ओर जाते हैं।

इस लेख में मैं शरीर के प्रति सतर्क रहने पर मुख्य रूप से चर्चा कर रहा हूँ। मेरे अनुसार स्वस्थ रहना किसी भी धार्मिक अनुष्ठान से अधिक महत्वपूर्ण है। शरीर के माध्यम से ही हम सभी सुखों का आनंद लेते हैं चाहे वे आध्यात्मिक एवं दिव्य सुख ही क्यों ना हो। आप जो कुछ भी करते हैं शरीर के माध्यम से ही उसका अनुभव करते हैं। और आप के शरीर को ही आप के सभी कार्यों के अच्छे एवं बुरे परिणामों को सहना पड़ता है।

उमंग-तरंग, सुख-दुख, आनंद एवं दर्द से भरे इस दुनिया का अस्तित्व आप के लिए तब तक ही है जब तक आप का शरीर आप के साथ है। अधिकतर व्यक्ति अपने धन, काम, रिश्तों आदि को जितना महत्व देते हैं वे अपने शरीर को उतना महत्व नहीं देते। या फिर यह प्राथमिकता का प्रश्न है। चाहे आप की आयु जितनी भी हो आप का शारीरिक स्वास्थ्य प्राथमिकता में सब से ऊपर होना चाहिए।

प्रकृति के खेल में कुछ भी तुरंत नहीं होता। आप के शरीर के साथ भी ऐसा ही है। मैं ने कईं बार देखा है कि जब छोटी परेशानी को अनदेखा कर दिया जाए तो वह गंभीर व्याधि में बदल जाती हैं। कईं बार रोग के पता चलने से पहले ही आप का शरीर लक्षण दिखाने लग जाता है। यदि आप अपने शरीर के संकेत को अनदेखा करने का निर्णय करते हैं, तो यह बाद में एक बड़े रोग के रूप में व्यक्त हो सकता है।

कल्पना करें कि आप एक घंटे के लिए एक तीव्र गति से चलने वाली ट्रेडमिल पर दौड़ रहें हों और फिर गति धीमी करे बिना अचानक उतर जाते हैं। इस से आप के शरीर को अत्यंत हानि पहुँच सकती है। इसी प्रकार, यदि आप के जीवन की गति बहुत तीव्र है और यदि आप उस गति को कम करना चाहते हैं तो आप को धीरे से अपनी गति कम करनी चाहिए ताकि आप आहिस्ता आहिस्ता स्थिर हो सकें। जीवन भर आप एक ही तीव्र गति से नहीं दौड़ सकते।

कईं युगों और जन्मों के विकास द्वारा आप के शरीर ने जीवित रहने का एक जटिल तंत्र विकसित किया है। जब आप एक पौष्टिक भोजन कर रहें हो, चाहे आहार कितना भी स्वादिष्ट हो, आप का शरीर आप को संकेत देता है कि कब आप को खाना बंद कर देना चाहिए। जब आप के शरीर को आराम की आवश्यकता हो आप को नींद आने लगती है, और जब आप के शरीर को पर्याप्त आराम मिल जाए तो आप का शरीर आप को उठा देता है। इसी प्रकार जब आप के शरीर को पानी चाहिए तो आप को प्यास लगने लगती है, और जब आप को भोजन की आवश्यकता है तब आप को भूख लगने लगती है। अपने शरीर को निरोग रखने की सबसे सहज प्रणाली है कि आप उस के प्रति सतर्क रहें - आप उस की सुनें। यदि आप अपने स्वास्थ्य को अनदेखा ना करें और नियमित रूप से व्यायाम करें, तो शरीर को स्वस्थ रखने की संभावना बहुत अधिक हो जाती है।

जब मानव शरीर युवा अवस्था में होता है तो वह बहुत कुछ सह सकता है। परंतु इस का यह अर्थ नहीं कि आप उस का दुरुपयोग करें। अक्सर इस तरह के व्यवहार का परिणाम कईं वर्षों बाद दिखाई देता है। यदि कोई बहुत धूम्रपान करता है, बहुत अधिक तली हुई वस्तुएं खाता है, भोजन पर कोई नियंत्रण नहीं रखता, तो हो सकता है कि युवा अवस्था में वह स्वस्थ रहे परंतु बाद में इस प्रकार का जीवन जीने का हानिकारक परिणाम उसे अवश्य पता चलता है। यह मात्र संयोग नहीं कि सभी योग शास्त्र सही आहार और शारीरिक व्यायाम को बहुत महत्व देते हैं।

रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनीये ना छोटा करि।।
एक शत्रु, रोग, अग्नि, पाप, गुरु अथवा साँप को अनदेखा नहीं करना चाहिए, चाहे वे जितने भी तुच्छ अथवा लघु क्यों ना प्रतीत हों। कोई भी संकेत मिलते ही उन पर ध्यान दें।
(रामचरितमानस, अरण्यकाण्ड, २१)


अब भी समय है - आप एक स्वस्थ जीवन शैली अपना सकते हैं। और एक स्वस्थ जीवन शैली क्या है? एक संतुलित जीवन एक स्वस्थ जीवन होता है - संतुलित आहार, कार्य एवं व्यायाम। आप का शरीर जीवन को जीने का और अनुभव करने का एक यंत्र है। यह आप की आत्मा को बन्दी बनाने का कोई पिंजरा नहीं है - यह तो ज्ञान और अंतर्दृष्टि का एक तेजस्वी वाहन है। ज्ञान की प्राप्ति इंद्रियों के माध्यम से ही होती है। और शरीर ही नहीं हो तो इंद्रियाँ भी नहीं होंगी। शरीर को अपने मित्र के रूप में देखें तथा प्रेम से उस की देखभाल करें। अपने आप को स्नेह दें।

शांति।
स्वामी


२०१४ पर एक नज़र

हर क्षण आकर चला जाता है, हर ऋतु बीत जाती है और अगली ऋतु को मार्ग मिलता है। यही काल का सत्य है।
एक और वर्ष व्यतीत हो गया, ५२ सप्ताह या फिर ३६५ दिन, ८७६० घंटे या ५२५६०० मिनट। जैसे भी गणना करो, बहुत समय व्यतीत हो गया। समय, जो लौट कर नहीं आयेगा। एक दिन मुझे कुछ लोगों ने नए वर्ष के लिए वीड़ियो सन्देश देने को कहा। कुछ क्षण सोच कर मैंने अवसर को जाने दिया क्योंकि मैं आश्वस्त नहीं था कि मेरे पास कुछ नया था कहने को। मैं आपसे क्या कहूँ? कि हमें अपने क्रोध या नकारात्मकता का त्याग करना चाहिए, या अपने प्रयासों में निरंतरता लाएं, स्वयं को करुणामय बनायें? या अपने सत्य को स्वयं खोजें? आप यह सब कुछ या इससे से भी अधिक जानते हैं।

हम अपने जीवन में स्वयं के लिए एक मानदंड रखते हैं, और अपनी इच्छाओं और लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करते हैं। मैंने यह पाया है कि आप किसी को अपनी बात नहीं सुना सकते, किसी को अपना दृष्टिकोण नहीं बता सकते जब तक कि वह देखना न चाहें। अधिकांश लोग अपनी सुविधा के अनुसार आपके जीवन में आयेंगे, आप के समीप आयेंगे, आपके साथ चलेंगे या फिर आपके जीवन से चले भी जायेंगे। बहुत कम लोग आपकी परवाह करेंगे। यदि हम स्वयं को दूसरों को बदलने के संघर्ष से बचा लें तो हमारे जीवन की नब्बे प्रतिशत समस्याएं उसी क्षण सुलझ जाएँगी।

दूसरों को बदलना कभी कभी आवश्यक होता है, ऐसा लोग मुझे कहते हैं। चलो मान लिया। यदि कोई ऐसी बात करे जिससे आपको या फिर जो आपके लिए महत्वपूर्ण है उन्हें हानि हो सकति है तो क्या किया जाए? वहाँ से दूर हट जायें मेरा उत्तर है। और यदि आप दूर न हो सके तो? तो अस्वीकार करें। अस्वीकार न कर सकें तो? अनदेखा करें। और यदि अनदेखा न कर सकें तो? स्वीकार कर लें। और यदि स्वीकार भी न कर सकें तो? पीड़ा झेलें। यदि हम स्वयं को दूर नहीं कर सकते, अनदेखा नहीं कर सकते, स्वीकार या अस्वीकार नहीं कर सकते तो केवल पीड़ा झेलने के सिवा कोई विकल्प ही नहीं है। और पीड़ा झेलने से मुक्ति पाई जा सकती है? हाँ; अपने मूल स्वरूप आनंद पर ध्यान लगाएं। आप का अस्तित्व अनंत और शाश्वत है, यह उस से परे है कि लोग आपके साथ कैसा व्यवहार करते हैं। यह केवल स्वयं अनुभव से जाना जा सकता है, कुछ सुन कर या पढ़ कर समझा नहीं जा सकता।

तो यही है मेरा नए वर्ष का सन्देश। हम पीड़ा से ऊपर उठ सकते हैं और उसके लिए हमें अपने चुनावों का उत्तरदायित्व उठाना होगा। हमारे लिए जो मायने रखता है उसको प्राथमिकता देनी होगी। हम यह आशा नहीं कर सकते (वास्तव में नहीं करनी चाहिए) कि दूसरा व्यक्ति जो हम करें, उसे सराहें, समझें और उसका समर्थन करे। पिछले तीन वर्षों में मुझे मिले असंख्य इमेल संदेशों से मैंने यह एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाला है। आज मेरे पास कहने को कोई कहानी या हास्यकर कथा नहीं है। इसके बदले में मैं आपको कुछ महत्वपूर्ण बातें साझा करूँगा और कुछ लोगों के प्रति आभार व्यक्त करूँगा। क्योंकि हम मेल के विषय पर हैं तो मैं इससे ही शुरू करता हूँ।

पिछले तीन वर्षों में मैंने लगभग चार हज़ार से अधिक घंटे सिर्फ इ-मेल के लिए समर्पित किये, नब्बे हज़ार से अधिक मेल पढ़े, चालीस हज़ार से अधिक का उत्तर दिया। अधिकतर यह सब अप्रबंधनीय हो रहा था। मैंने बहुत से उपाय किये, जैसे उत्तर देने में विलम्ब, मेल में स्वचालित उत्तर, कुछ विशेष संदेशों को फ़्लेग करना, या संदेशों के आकार को नियंत्रित करने के लिए फॉर्म बनाना, परन्तु वास्तव में कोई भी विधि काम ना आई। मुझे आपको उत्तर देना प्रिय है परन्तु मेरे पास इतना समय नहीं है।

अतः पहली जनवरी २०१५ से मैं अपने वर्तमान इ मेल का निरीक्षण नहीं करूँगा और न ही अपने मेल को स्वयं पढूंगा। मुझसे संपर्क करने की दो विधियाँ होंगी - यहाँ पे फॉर्म भरें।  या फिर केवल आपके इन्बोक्स में आने वाली पोस्ट का उत्तर दें। परंतु यह जान लें कि आपके मेल दो-तीन अन्य स्वयंसेवकों द्वारा पढ़े जायेंगे जो मुझे इस कार्य में सहायता करेंगे। इसीलिये कोई गोपनीय बात न लिखें। यदि आपके इ मेल के प्रश्न दूसरों के काम भी आ सकें तो मैं प्रयास करूँगा कि अपने साप्ताहिक पोस्ट में उसके विषय पर लिखूं। यदि कोई व्यक्तिगत प्रश्न हो तो आपको मुझसे मिलने व्यक्तिगत रूप से आश्रम आना होगा।

२०१४ के प्रारंभ में मैंने कहा था कि मैं तीन पुस्तकें प्रकाशित करूँगा। पिछले एक महीने में मैंने अपने मेमोइर (जीवन वृतांत) को प्रकाशित किया, जो केवल भारत में उपलब्ध है। और आरोग्यता पर एक पुस्तक लिखी जो सर्वत्र उपलब्ध है। मैंने यह चाहा था कि अवसाद पर अपनी लिखी पुस्तक का पुनरवलोकन और प्रकाशन करूँ परन्तु बहुत बड़ी संख्या में भारत के बाहर रहने वाले पाठक मेमोइर (जीवन वृतांत) की मांग कर रहे थे तो, तीसरी पुस्तक के रूप में मैंने अपने मेमोइर की पांडुलिपि विश्वव्यापी वितरण हेतु तैयार की है। और मुझे बताते हुए संतुष्टि है कि अब अमेज़ान.कॉम पर यह इ-पुस्तक के रूप में उपलब्ध है (यहाँ)। यदि आप के पास किंडल नहीं तो अमेज़ान से आप किंडल एप डाउनलोड कर सकते हैं और अपने लैपटॉप, टेबलेट या स्मार्टफोन पे पढ़ सकते हैं।

उनका धन्यवाद जिन्होंने मेरे मेमोइर के विषय में लोगों को बताया। मुझसे कहा गया कि आप में से कुछ लोगों ने पुस्तक के कवर को अपने फेसबुक पेज का कवर पेज भी बनाया। और सच में यह मेरे ह्रदय को छु गया। (अब क्योंकि पुस्तक का विमोचन हो गया है आप फेसबुक से कवर हटा सकते हैं।) मैं हर एक को धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्होंने समय निकाल कर मेमोइर पढ़ा तथा फ्लिप्कार्ट और अमेज़न पर समीक्षा भी लिखी। बहुतों ने मुझे सीधे भी लिखा और मैं आपका धन्यवद करता हूँ। यह बताने के पश्चात, कृपया नोट करें कि जब आपने मुझे समीक्षा की मेल भेजी तो मैंने उसे सराहा, किन्तु यह किसी की सहायता नहीं कर रहा। यदि आप अपना मत जनता के सामने प्रस्तुत करना ठीक समझें तो आगे बढ़ें और अमेज़न या फ्लिप्कार्ट या दोनों पर अपनी समीक्षा लिखें। केवल समीक्षा के आधार पर बड़ी संख्या में पाठक एक पुस्तक को चुनते हैं।

मैं ह्रदय से आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने ऑनलाइन समीक्षा लिखी। पाँच सितारा, चार सितारा या एक सितारा कोई मायने नहीं रखता। जब आप अपनी समीक्षा ऑनलाइन करते हों तो यह मेरी सहायता करता है, दूसरों की करता है और हमारे कार्य में सहायक होता है।

२०१४ में मैंने व्यापक रूप से भारत और कईं देशों में भ्रमण किया। १८० से अधिक घंटे बोला, मैंने ७० से अधिक प्रवचन दिए। ये प्रवचन  आश्रम में, भारत की कईं स्थानों पर और यु.एस.ए, केनेडा, आस्ट्रेलिया और सिंगापुर में दिए गए। इसके अलावा मैंने ३०० से अधिक घंटे एक १००० से अधिक लोगों के साथ व्यक्तिगत मुलाकातों में बिताए। मैंने २५० घंटे से अधिक समय सड़क पर बिताया, १५० से अधिक घंटे हवाई अड्डों पर, और लगभग १०० घंटे प्लेन में बिताए। हालाँकि यह सब काफी थकाऊ था, मैं जहाँ भी गया मुझे आपार प्रेम मिला और यह ही मुझे आगे बढ़ने को प्रेरित करता था। और यह उन व्यक्तियों और निमन्त्रकों के बिना संभव न था जिन्होंने असीम और सहृदय सहायता की। आप सभी का धन्यवाद जिन्होंने मेरे सोचने के पहले मेरी हर एक वस्तु की देखभाल की, और इस साल की सफलता के लिए बिना थके हुए और निःस्वार्थ कार्य किया।

मैंने इस सब का प्रतिदान देने की विधियों के विषय में सोचना छोड़ दिया है, क्योंकि जो आपने किया उसे किसी भी तरह चुकाया नहीं जा सकता। वह टीम जो मेरे लेखों का अन्य भाषाओं में अनुवाद करती है, वह जो मेरे वीडियो प्रकाशित करते हैं, वह टीम जो सोशियल मीडिया में नियमित अपडेट करती है, वह जो मेरी उक्तियों पर सुंदर पोस्टर बनाती है, वे लोग जो मेरी पांडुलिपियों को पढ़ने के लिए सदैव प्रस्तुत रहते हैं, मेरे पास उनके लिए आभार प्रकट करने के शब्द कम पड़ रहे हैं।

२०१५ में मेरी योजना अपने पुस्तकों के पुनरावलोकन में अधिक समय देने की है, (ध्यान और चक्रों पर कथेतर रचना एवं कुछ काल्पनिक साहित्य) जो मैंने पिछले साल लिखी थी। आप अगले वर्ष मुझसे एक काल्पनिक और एक कथेतर रचना की आशा कर सकते है। मैं अधिक यात्राएं बिलकुल नहीं करूँगा, और मेरे ब्लॉग पर दिए हुए समय के अनुरूप मिलने को प्रस्तुत रहूँगा। मैं इसी बीच अपनी साप्ताहिक पोस्ट लिखता रहूँगा।

नए वर्ष की शुभ कामनाएं और फिर से धन्यवाद। प्रार्थना है ब्रह्माण्ड आप को आपकी दयालुता को अनेक रूपों में वापिस दे, जो वह सदैव करता है।

शांति।
स्वामी






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