प्रेम के चार स्तंभ

प्रेम का यान चार इंजनों पर उड़ता है पारस्परिक देखभाल एवं सम्मान, निर्भरता, विश्वसनीयता और त्याग।
मुझे प्राप्त होने वाले ई-मेल संदेशों में एक बड़ी संख्या अस्थिर संबंधों के विषय में होती हैं। कभी कभी संबंध से जुड़े दोनों व्यक्ति अपनी इस समस्या को सुलझाना चाहते हैं, परंतु अनेक बार एक ही व्यक्ति समस्या को सुलझाना चाहता है। और कईं बार यह एक भ्रम की स्थिति होती है। वे मुझे लिखते हैं कि वे भ्रमित हैं और यह नहीं जानते कि दूसरा व्यक्ति उनसे वास्तव में प्रेम करता है या फिर मात्र उनकी चिंता कर रहा है। वे मुझसे पूछते हैं कि ऐसा कोई संकेत है, कोई ऐसा मार्ग है जिससे यह पता चल सके। गणितज्ञ की भाषा में समझाया जाए तो प्रेम मानो एक स्पर्शरेखा है जो वृत्त को छूती तो है परंतु सदा वृत्त के बाहर ही रहती है।

महान संतकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में एक सुन्दर पंक्ति लिखी है-

प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनि नासहिं बेगि निति अस सुनी || 

भावार्थ- सम्मान के बिना प्रेम तथा अहंकार से भरे गुणवान शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। प्रेम के नियम किसी पत्थर की लकीर नहीं होते किंतु प्रेम का महल अवश्य विशिष्ट स्तंभों पर खड़ा होता है। इससे पहले कि मैं और लिखूँ आप यह जान लें कि स्त्री और पुरुष के प्रेम करने की विधि में अंतर होता है। वे प्रेम की इच्छा अलग रूप से करते हैं, और अलग प्रकार से उसे व्यक्त करते हैं। अभी के लिए इन विभिन्नताओं का विचार करे बिना मुझे प्रेम के चार स्तंभ बताने दें-

१) पारस्परिक देखभाल एवं सम्मान
यह प्रेम का प्रथम, सर्वोपरि और सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक स्तंभ है। जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो हम उन को सकुशल देखना चाहते हैं, प्रसन्न देखना चाहते हैं। हम वह ही करते हैं जो उन्हें प्रसन्नता और सुख दे। किसी भी रिश्ते में जहाँ प्रेम का अत्यंत महत्व हो, वहाँ देखभाल और सम्मान इस बात का अचूक संकेत है कि दोनों व्यक्तियों में प्रेम हैं। आप का साथी आप के पसंदीदा विधि से चाहे प्रेम न व्यक्त कर पाएं उन के हाव-भाव से यदि सम्मान और देखभाल व्यक्त होता है तो आप प्रेममय संबंध में हैं। ऐसा सम्मान और ऐसी देखभाल केवल उस व्यक्ति तक सीमित नहीं होती अपितु उन कार्यों में भी होती है जो वे करते हैं। यदि आप इस बात को समझ नहीं पाते कि दूसरा व्यक्ति क्या और क्यों कुछ कर रहा है इसका अर्थ यह नहीं कि आप बुद्धिहीन हैं या वह मूर्ख है। परवाह करने और उनके प्रयत्नों का सम्मान करने से प्रेम की भावना विकसित होती है।

२) पारस्परिक निर्भरता
यदि आप अपने साथी पर, उनकी बातों पर तथा उनके वादों पर निर्भर कर सकते हैं और वह भी आप पर निर्भर करते हैं इस का अर्थ है कि आप के संबंध में प्रेम जीवित एवं उज्ज्वल है। यदि केवल चिकनी चुपड़ी बातें हों और निर्भरता न हो तो ऐसा प्रेम दृढ़ नहीं होता है। आकर्षण पर अंततः निर्भरता की विजय होती है। आकर्षक होने मात्र से आप के बिल अदा नहीं होते, भोजन प्राप्त नहीं होता। किसी एक को या दोनों को आजीविका अर्जन करनी होती है एक दूसरे का सहयोग करने के लिए। निर्भरता किसी वाहन के पहियों के समान होती है। दोनों व्यक्तियों को एक लय में कार्य करना होता है, यदि एक व्यक्ति कार्य नहीं करता तो पूरा चक्र ठहर जाता है। यदि आप भरोसेमंद नहीं हैं और अपने साथी से भरोसे की आशा करते हैं तो इस का अर्थ है कि आप व्यावहारिक नहीं हैं और यह आप के चरित्र की दुर्बलता है, नैतिक तौर पर नहीं भावनात्मक रूप से। क्यों? प्रेम करने के लिए आन्तरिक शक्ति आवश्यक है। जितनी अधिक ऐसी शक्ति प्रबल होगी उतनी ही अधिक प्रेम की क्षमता होगी। दुर्बल सदा लगाव चाहता है और उसे ही प्रेम समझने की भूल करता है। स्वयं को जीवित रखने के लिए जो बेल पेड़ पर लिपटी होती है परंतु पेड़ की दयालुता को नकारती है वह अपना अज्ञान ही दर्शाती है।

३) पारस्परिक विश्वसनीयता

जहाँ पारस्परिक देखभाल और सम्मान हो, निर्भरता भी हो परंतु पारस्परिक विश्वसनीयता न हो तो वह संबंध भी सम्पूर्ण नहीं है। विश्वसनीयता का अर्थ यह है कि आप के संबंध ऐसे हों कि आप अपने साथी से कुछ भी और सब कुछ बाँट सकते हैं। अर्थात आप को स्वयं पर, अपने साथी पर और अपने संबंध पर विश्वास है। इस का अर्थ यह है कि आप का संबंध दृढ़ है तथा समस्याओं का सामना कर सकता है। भूल करना मनुष्य का स्वभाव है। यह स्वाभाविक है कि आप के जीवन में उतार-चढ़ाव, भ्रम और संदेह के क्षण होंगे। यदि आप विश्वसनीय हैं, आप के संबंध दृढ हैं, और आप आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से बलशाली है तो विजेता के रूप में उभरेंगे। आप शांति से सो सकेंगे, स्वयं को दर्पण में देख कर मुस्कुरा सकेंगे और अपना सर अच्छे आचरण एवं गर्व से ऊँचा रख सकेंगे। विश्वास को तोड़ने का अर्थ है कि आप उस प्रेम को सराहना नहीं जानते। बारम्बार ऐसे करने का अर्थ है कि प्रेम केवल आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन और अन्य विकल्पों के अभाव का प्रतीक बन कर जाता है। यह स्थिति उस के विपरीत है जहाँ प्रेम सुखद एवं मनोहर है।

४) पारस्परिक त्याग
प्रेम पारस्परिक त्याग से पल्लवित होता है, और यदि यह सही अर्थ में पारस्परिक है तो आप वास्तव में साथी के कुछ करने में प्रसन्नता और शांति अनुभव करेंगे। परंतु यदि केवल एक व्यक्ति यह महसूस करता है कि वह ही ऐसा कर रहा है और दूसरा नहीं कर रहा तो यह पारस्परिक नहीं है। यह एक संकटपूर्ण स्थिति है और अक्सर ऐसा संबंध टूट जाता है। अक्सर यह आम बात होती है कि दोनों ही ऐसा सोचते हैं कि केवल वह अकेला ही ऐसा है जो त्याग करता है और दूसरा ऐसा नहीं कर रहा। ऐसे में बैठें और समझदारी से यथार्थ रूप से इस पर विचार करें। एक समय किसी ने मुझसे सम्पर्क किया कि उनके पति उनके साथ अधिक समय नहीं बिताते। अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं और उनके प्रति प्रेम प्रकट नहीं करते। मैं ने उनसे पूछा क्या वह चाहेंगी कि उनके पति काम छोड़ कर उनके पास ही बैठें। और मैं ने उनके पति को लिखा कि क्या वह अपनी पत्नी और परिवार से भी अधिक अपनी नौकरी को पसंद करते हैं। दोनों ने इस पर विचार किया और यही बुद्धिमानी का काम है।

जितना अधिक आप एक दूसरों को स्वीकारते हैं आप के संबंध की गुणवत्ता उतनी ही बढ़ जाती है। प्रेम आप को यह स्वतंत्रता देता है कि आप अपने साथी के साथ निर्भयता से रह सकें, परंतु यदि आप उस रिश्ते को सराहना नहीं जानते तो वही प्रेम आप को दंडित भी कर सकता है। प्रेम का अर्थ है अपनी कमियों को जानना, साथी की कमियों को स्वीकारना तथा एक दूसरे के साथ और एक दूजे के लिए जीना।

कभी सोचा है कि यदि लगाव और स्वार्थ यदि प्यार के रूप में किसी संबंध में हों तो उस संबंध के स्तंभ क्या होंगे? मैं, मेरा, अपना और स्वयं के लिए।

शांति।
स्वामी


वजन कम करने के उपाय

क्या आप मोटे हैं? जानने के लिए यह सरल सीढ़ी परीक्षण लें।
पिछले कईं वर्षों में, मैं ने कईं विषयों पर इस ब्लॉग पर २०० से भी अधिक लेख लिखें हैं (उदाहरणार्थ रिश्ते, भावनाएं, ध्यान, आध्यात्मिकता आदि)। अब शारीरिक स्वास्थ्य के विषय पर लिखने का समय आ गया है। इसका प्रारंभ मैं वजन कम करने के विषय से करता हूँ। मैं आप को यह याद दिलाना चाहूँगा कि मैं कोई चिकित्सक नहीं हूँ। परंतु, मैं यहाँ किसी भी दवा या आहार योजना का सुझाव अथवा प्रस्ताव नहीं कर रहा हूँ। मैं तो केवल वजन घटाने के विषय में अपने विचार प्रकट करूँगा। आप को कुछ सरल विधियाँ बताउंगा जिस की सहायता से आप अपनी जीवन शैली में कोई उग्र परिवर्तन करे बिना ही वजन को घटा सकते हैं। मैं आप को शाकाहारी बनने की सलाह नहीं दे रहा हूँ (हालांकि यदि आप ऐसा करते हैं तो आप के लिए लाभदायक हो सकता है), या आप को प्रतिदिन मैराथोन दौड़ने को नहीं कहूँगा (हालांकि विचार बुरा नहीं है), या कुछ विशेष आहार परिशिष्ट करने वाला पदार्थ लेने को नहीं कह रहा हूँ (कभी कभी वे लाभदायक हो सकते हैं)।

क्या कसरत तथा अपने आहार में परिवर्तन करे बिना वजन कम करना वास्तव में संभव है? इससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या यह विधि स्थायी रूप से वजन को कम कर सकती है? इसका उत्तर है हाँ! निस्संदेह अच्छा आहार, शारीरिक व्यायाम या एक स्वस्थ जीवन शैली ही शरीर के लिए सबसे लाभदायक होते हैं। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि अन्य कोई विकल्प ही नहीं है। इस लेख में मेरे सुझाव आयुर्वेद के सिद्ध एवं परीक्षित ज्ञान पर आधारित हैं, जो कि आधुनिक विज्ञान द्वारा मान्य किए जा चुके हैं। मैं यह भी कहना चाहूँगा कि ऐसा कोई प्रमुख शास्त्रीय आयुर्वेदिक पाठ नहीं जो कि मैं ने पढ़ा ना हो, इसलिए यह केवल मेरी राय ही नहीं, परंतु विश्वसनीय निर्देशन है जो कि स्वास्थ्य की प्राचीन पद्धति पर तथा जिन लोगों ने इसे अपनाया उनकी सफलता पर आधारित है।

तो, कैसे अपना वजन कम किया जाए? इस का उत्तर जानने के पहले आप यह जानने का प्रयास करें कि वास्तव में क्या आप को वजन घटाने की आवश्यकता है। हम कैसे यह जान पाते हैं कि किसी को वजन घटाने की आवश्यकता है कि नहीं? हम बॉडी मास इंडेक्स (बी.एम.आई) या कमर की परिधि जैसी संख्या को देखते हैं। यदि किसी के आँकड़े औसत सीमा के भीतर नहीं हों, तो इस तरह के व्यक्ति के वजन को अधिक माना जाता है। परंतु यह विधि लगभग पूरी तरह से एक व्यक्ति के व्यक्तित्व को अनदेखा कर देती है। इसके अलावा मीड़िया के माध्यम से आज कल स्वस्थ शरीर एवं रूप के विषय पर एक अवास्तविक अपेक्षा हो गई है। हालांकि अभिनेता की सुंदर बनाई हुई परिवर्तित चित्रों को देखकर प्रेरित होने में कोई बुराई नहीं है, वे सुधारी हुई चित्र किसी भी समझदार व्यक्ति के लिए मानदंड नहीं होनी चाहिए। यदि आप जानना चाहते हैं कि आप को वजन घटाने की आवश्यकता है या नहीं, तो यह सरल परीक्षण कीजिए -

सामान्य गति से सीढ़ियों को चढ़ें। नीचे उतरें। फिर चढ़ें। क्या आप हांफ रहे हैं? यदि नहीं तो आप ठीक हैं। आप को वजन घटाने के विषय में चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। मोटापे के साथ जुड़े शारीरिक व्याधियों से आप के ग्रस्त होने की संभावना कम है। एक सामान्य पौष्टिक आहार का ग्रहण करें, नियमित रूप से व्यायाम करें और अपने जीवन का आनंद लें। यदि शारीरिक व्यायाम पहले से ही आप के दिनचर्या का एक हिस्सा है और फिर भी आप सीढ़ियों को चढ़ते समय हांफते हैं तो संभवत: आप को अपने वजन को घटाने की आवश्यकता है। आगे चलकर मैं कुछ और ऐसे लेख लिखूँगा जिसमें मैं वजन को कम करने के कुछ अन्य उपाय लिखूँगा। चलिए आरंभ करते हैं सबसे सरल एवं प्रभावी प्राकृतिक विधि से। एक पतला व्यक्ति भी इस अभ्यास द्वारा बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य का अनुभव करेगा। यह रही विधि -

अपने भोजन को अच्छी तरह चबाएं। हाँ, मात्र इतना ही! आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर के रोगों में से पंचानवे प्रतिशत पेट से उत्पन्न होते हैं और उनमें अधिकतर रोग भोजन को ठीक से चबाने से रोके जा सकते हैं। यदि आप पौष्टिक पदार्थ भी नहीं खा रहे हैं, फिर भी जब तक आप पूरी तरह अपने भोजन को चबा रहे हों आप को भोजन के बाद सुस्ती का अनुभव नहीं होगा। भोजन शीघ्र ही पच जाएगा और आप का मोटापा भी कम हो जाएगा। और तो और, फिर से आप का वजन बढ़ेगा भी नहीं (जब तक आप ठीक से भोजन चबाना बंद न कर दें)। क्या यह असत्य लगता है? केवल मेरे शब्दों पर विश्वास ना करें - आप स्वयं प्रयास करें और स्वयं परिणाम देख लें। इस विधि को जिन व्यक्तियों ने अपनाया उन्होंने पाया कि कुछ ही सप्ताहों में उन का वजन कम हो गया। औसत अवधि छह सप्ताह थी। उन सभी ने मुझे बताया कि वे पहले से कहीं अधिक ओजस्वी एवं स्वस्थ महसूस कर रहे हैं।

जब आप अच्छी तरह से अपने भोजन को चबाते हैं, तो यह केवल पाचन के लिए ही लाभदायक नहीं। दो और कहीं अधिक महत्वपूर्ण विषयों से भी इस का संबंध है। सर्वप्रथम, आप अपने भोजन के प्रति और जागरूक हो जाते हैं तथा आप और धीरे खाते हैं। इस के फलस्वरूप, आप का शरीर एवं मन और अनुरूप एवं अनुकूल हो जाते हैं। आप का शरीर भोजन को और बेहतर अवशोषित करता है, भोजन पौष्टिक ना भी हो फिर भी। दूसरी बात, आप की लार में एंज़ाइम नामक सशक्त जैविक अणुएं हैं। एंज़ाइम अच्छी पाचन के लिए उत्प्रेरक होते हैं। आप जितना अधिक चबाते हैं उतना ही बेहतर आप अपने भोजन को अपने लार के साथ मिलाते हैं। और आप भोजन को जितना अधिक चबाते हैं उतने ही अधिक एंज़ाइम आपके पेट तक पहुँच पाते हैं। यदि आप एक चॉकलेट को पिघला कर पीते हैं तो आप उसे खाने की तुलना में और अधिक भारी महसूस करते हैं। पिघला हुए चॉकलेट को पचने में और अधिक समय लगता है। ऐसा क्यों? इसका कारण यह है कि जब आप चॉकलेट को पिघला कर पीते हैं तब आप सीधे उसे अपने पेट में डाल देते हैं, लार के एंज़ाइमों के बिना। आपके पेट में जितनी लंबी अवधि तक ठोस आहार रहता है , वसा जमा होने की उतनी ही अधिक संभावना है। परंतु लंबी अवधि के लिए अपने पेट को खाली रखने या भोजन में बड़ा अंतराल होना भी अच्छा नहीं है। मैं इस विषय पर विस्तार से कभी और लिखूँगा। अभी के लिए, इस लेख का मुख्य विषय है वजन कम करने हेतु अपने भोजन को अच्छे से चबाना।

प्रश्न यह उठता है कि भोजन को कितनी बार चबाना चाहिए तथा आप यह कैसे जान पाएंगे कि भोजन को अच्छी तरह से चबाया है कि नहीं? इस का वैसे तो कोई निश्चित नियम नहीं है परंतु आप लगभग बत्तीस   बार चबा सकते हैं, अथवा आपके पास जितने दांत हैं उतनी बार चबाएं, अथवा भोजन जब तक लगभग तरल ना हो जाये आप उतनी बार चबाएं। दूसरे शब्दों में, चाहे कुछ भी हो जाये, शीघ्रता से ना खायें। भोजन को निगलें नहीं। एक एक निवाले का स्वाद लें। आप क्यों इतनी कड़ी मेहनत करते हैं? ताकि आप सुखपूर्वक भोजन कर सकें तथा प्रसन्नतापूर्वक जी सकें, है ना? तो हम भला कैसे अपने भोजन को जल्दबाज़ी में कर सकते हैं? याद रखें कि आप इतनी मेहनत करते हैं ताकि आप एक आनंदमय भोजन कर सकें, एक सुखद जीवन का आनंद ले सकें।

धीरे धीरे खाएं और अपने भोजन को अच्छी तरह चबाएं और शीघ्र ही आप का वजन कम होना शुरू हो जाएगा। मैं दोहराना चाहूँगा कि यह विधि शारीरिक व्यायाम और पौष्टिक आहार की जगह नहीं ले सकती। परंतु यह आप के वजन को घटाने में आप की मदद अवश्य करेगा। और आप चबाने में किए गए श्रम को व्यायाम नहीं कह सकते! भविष्य में मैं अत्याधिक वजन को घटाने की अन्य विधियों के विषय में लिखूँगा।

शांति।
स्वामी


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