जब सब ठीक न हो (When All is Not Well)

क्योंकि सब कुछ ठीक लग रहा है का यह अर्थ नहीं कि सब ठीक ही है। यह है मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) का सत्य।

जीवन एक संघर्ष है जिस में दृढ़ परिश्रम की आवश्यकता है। मैं आप के बिल चुकाने, ऋण-मुक्त रहने, कठिन समय के लिए बचत करने, स्वस्थ बने रहने, आप की सेवानिवृत्ति की योजनाओं अथवा संबंधों के ठीक-ठाक बने रहने की बात नहीं कर रहा। यह सब तो कुछ भी नहीं (परिहास कर रहा हूँ!)। नि:संदेह, यह सब हमारे जीवन को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं, और संभवत: जीने लायक भी। मैं वास्तव में, एक अत्यंत सरल विषय की बात कर रहा हूँ - प्रसन्न रहना। हमारे द्वारा हर काम बहुत कठिनाई व ईमानदारी के साथ करने पर भी प्रसन्नता एक क्षण-भंगुर अनुभव ही बनी रहती है, एक मायावी भावना; एक धूप भरे दिन में उस अकेले बादल की भाँति - जो केवल छोटे से अंतराल के लिए दिखाई देता है व जब तक वहाँ होता है अपना रूप बदलता रहता है।

जीवन एक बहुत कठिन कार्य हो सकता है उस व्यक्ति के लिए जिसने अपने जीवन को जीने का उद्देश्य नहीं ढूंढा हो अथवा उस व्यक्ति के लिए जो अपने कार्य के प्रति उत्साहित नहीं हो। प्रसन्नता जैसी वस्तु तो हमारे लिए स्वाभाविक होनी चाहिए चूँकि हम आनंद-प्रद प्राणी हैं, हम प्रेम से ही उपजे हैं। और तो और, वह नाभि की नाल जो हमें ९ महीने तक पोषित करती है, वह महत्त्वपूर्ण वस्तु जो हमारे व हमारी माता के बीच की कड़ी होती है, उसे भी जन्म के समय ही काट दिया जाता है - हमारी स्वतंत्रता हेतु। संभवत: यह बताने के लिए कि कहीं कोई बंधन नहीं है। हम प्रसन्नता ही हैं। हम स्वतंत्र हैं। परंतु क्या वास्तव में हम इस का अहसास कर पाते हैं? प्रसन्नता हमारे लिए उतनी ही स्वाभाविक होनी चाहिए जैसे पर्वतों में शीतल पवन - मंद मंद और निरंतर - परंतु लगभग ऐसा प्रतीत होता है कि हमें निरंतर इसके लिए प्रयत्नशील रहना पड़ता है। 

आप को पता है उदासी एक छुपी सी भावना है। जैसे यह मायने नहीं रखता कि आप अपने को कितना भी बढ़िया खिला पिला लो, कुछ ही घंटों में भूख फिर से आप के पेट में जागना आरंभ कर देती है; वैसे ही चाहे आप कितने भी प्रसन्न क्यों ना हों उदासी, अपने बंधु-बान्धवों (दु:ख, क्रोध, दोष-वृत्ति, अकेलापन, विद्वेष, भय, पश्चाताप) सहित या उनके बिना, चुपचाप आप को घेर लेती है। आप उल्लासित अनुभव करते हैं जब आप को पदोन्नति मिलती है; और अगले ही क्षण कार्य का दबाव प्रारंभ हो जाता है। आप परमसुख महसूस करते हैं जब आप एक बड़ा घर खरीदते हैं, और तब ऋण चुकाने की चिंता बीच में आ जाती है। क्या होगा यदि कल मेरे पास नौकरी न हुई, मैं अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करूँगा, मैं अपने बिल कैसे चुकता करूँगा? जैसे कि प्रसन्नता तो एक संदेशवाहक मात्र थी जो आई, अच्छा संदेश दिया, और चली गई। मैं ने सोचा था कि प्रसन्नता मेरी जीवन साथी है परंतु वह तो एक गणिका निकली।

यह मेरी नई पुस्तक 'जब सब ठीक न हो' (When All is Not Well) का एक अंश है (अध्याय ५ में से)। किंतु यह पुस्तक 'प्रसन्न कैसे रहा जाए' के विषय में नहीं है। अपितु यह उदासी के विषय में है, वह भी गहन उदासी। उन लोगों के वास्तविक जीवन की घटनाओं को उजागर करते हुए, जिन के साथ मैं ने काम किया है, यह पुस्तक सभी रोगों में से सर्वाधिक रहस्यमय रोग के विषय में है। नहीं, मैं ध्यान, साक्षात्कार, अथवा विवाह का सन्दर्भ नहीं ले रहा (इन सब के लिए कोई स्थाई उपचार नहीं है - परिहास मात्र लें !)। मैं एक ऐसी व्याधि के विषय में बात कर रहा हूँ जो आप के मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक स्वास्थ्य पर एक साथ आक्रमण करती है। तीव्र व उग्र रूप से।

'जब सब ठीक न हो' (When All is Not Well) मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) व उदासी के योगिक दृष्टिकोण पर है। और यह दर्शाती है कि कैसे डिप्रेशन गहन उदासी नहीं है। गहन उदासी मन की एक स्थिति हो सकती है जबकि मानसिक अवसाद एक रोग है। मैं रूमी की लिखी एक सुंदर कविता उद्धत कर रहा हूँ (पुस्तक में उल्लेखित है) -

तुम दिनों दिन तक यहाँ बैठे कहते हो,
यह अजीबोगरीब कारोबार है।
तुम खुद अजीबोगरीब कारोबार हो।

तुम्हारे अंदर सूरज का तेज है,
पर तुम उसे रीढ़ के आख़िरी छोर पर
फँसाए रखते हो।

तुम कुछ अजीब से स्वर्ण हो
जो पिघल कर भी भट्टी में ही रहना चाहता है,
कि कहीं तुम्हे सिक्का न बनना पड़ जाए।

डिप्रेशन का रोगी ऐसा ही अनुभव करता है - पिघला हुआ सोना जो भट्टी में ही पड़ा रहना चाहता है। 

मेरे विचार में मानसिक अवसाद हमारे समय की सबसे कम समझ आने वाली व सबसे अधिक अशक्त कर देने वाली अवस्थाओं में से एक है। यह किसी को भी, कभी भी, उनके जीवन की किसी भी अवस्था में, प्रभावित कर सकता है। आप की जीवन-शैली, आप की मानसिक बनावट या भावनात्मक रचना की परवाह किए बिना, कोई भी इस विकार से स्थाई रूप से प्रतिरक्षित नहीं है। जो बात डिप्रेशन के सन्दर्भ में विशेष रूप से परेशान करने वाली है वह है कि यह आप को हर उस विषय व व्यक्ति से दूर कर देता है जिस को आप जानते हों। आप अपने ही शरीर में, अपनी ही दुनिया में एक अजनबी सा महसूस करते हो। उससे भी बदतर यह कि डिप्रेशन के लिए कोई निश्चित उपचार नहीं है। मानसिक अवसाद दूर करने की दवाइयाँ बहुत सारे रोगियों पर तो काम करती हैं, वहीं बहुत से दूसरों की अवस्था में उनसे रत्ती मात्र भी परिवर्तन नहीं होता। कुछ व्यक्तियों को ध्यान व योग से सहायता मिलती है, वहीं बहुत से अन्य इससे कोई लाभ प्राप्त नहीं कर पाते। संज्ञानात्मक व्यवहारिक चिकित्सा कुछ रोगियों पर तो काम करती है, वहीं बहुत से इसे समय की बर्बादी पाते हैं। क्यों? 

सत्य यह है कि मानसिक अवसाद का उपचार पूर्ण रूप से आप के डिप्रेशन के स्वरूप पर निर्भर करता है। और, यदि आप मानसिक अवसाद से पीड़ित हैं तो अकेले आप ही अपने डिप्रेशन की गंभीरता का पता लगाने में सबसे सही स्थिति में हैं। नि:संदेह, एक विशेशग्य सही निदान बताने में आप का सहायक हो सकता है, किंतु, अंत में अपने मनोभावों के आप ही सही निर्णायक हैं। 'मनोभाव' शब्द का प्रयोग करके मैं यह संकेत नहीं दे रहा कि डिप्रेशन मात्र एक मानसिक विकार व मनोदशा है। अपितु यह एक बहुत वास्तविक स्थिति है और अन्य रोगों के समान ही, इसे भी डाक्टरी विचार-विमर्श व उपचार की आवश्यकता हो सकती है।

लगभग चार वर्ष पूर्व, मैं ने डिप्रेशन पर संक्षेप में लिखा था और तभी से मुझे इस विषय पर अपने विचार विस्तार से लिखने के लिए अनेकों बार कहा जाता रहा है। इस कारण मैं ने “जब सब ठीक न हो” पुस्तक लिखी और मुझे घोषित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हार्पर कौलिंस इंडिया ने पुस्तक के प्रकाशन की सहमति दे दी है। भारत में यह पेपरबैक के रूप में फ़रवरी २०१६ में आएगी। किंतु यह केवल भारत उपमहाद्वीप के पाठकों के लिए है।

विश्व के अन्य पाठकों के लिए मेरे पास इससे भी सुखद समाचार है। अमेज़ॉन.कॉम पर मुद्रितई-बुक दोनों संस्करण अभी से उपलब्ध हैं। आप पुस्तक को यहाँ से मंगवा सकते हैं। 

यदि आप इस समय अपने जीवन में गहरा विषाद अनुभव कर रहे हैं, या डिप्रेशन से जूझ रहे हैं, अथवा कभी अतीत में इसे भुगत चुके हों या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हों जो पीड़ित है, तो मैं यह अपेक्षा रखूँगा की आप इसे पढ़ें। ऐसा ना समझें कि आप ने जीवन में सब कुछ खो दिया है। अभी आशा है। और मैं यहाँ कहना चाहूँगा कि आशा ही मात्र एक संभालने लायक वस्तु है, जब बात डिप्रेशन की हो। क्योंकि, किसी भी दूसरी बात से पहले, डिप्रेशन रूपी राक्षस अपने शिकार में से आशा को निचोड़ बाहर करता है। ऐसा प्रतीत होने लगता है कि यह आप को कभी भी नहीं छोड़ेगा। किंतु, अभी आशा है। वास्तव में है। और इसी आशा के साथ ही मैं ने यह पुस्तक लिखी है।

शांति।
स्वामी

अनुलेख: मेरी पहली पुस्तकों “इफ़ ट्रूथ बी टोल्ड” (यहाँ) और “द वेलनेस सेन्स” (यहाँ) के पेपर-बैक संस्करण भी अब संपूर्ण विश्व में उपलब्ध हैं।


मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) - योगिक दृष्टिकोण

अवसाद के विषय में योगिक दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहीं अधिक गहन है। जहाँ विज्ञान मस्तिष्क का उपचार करता है, योग शास्त्र  का ध्यान मन की ओर है। 
आज मुझे किसी व्यक्ति के विषय में ज्ञात हुआ जो मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित हैं। मेरी हार्दिक इच्छा थी कि मैं उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलता, और इस दशा से निकल पाने में उनका सहायक होता। क्योंकि मेरी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह नहीं हो पाएगा, मैं इस लेख के माध्यम से अपना संदेश भेज रहा हूँ। मैं ऐसे बहुत से लोगों से परिचित हूँ जो अवसाद से पीड़ित रह चुके हैं; उनमें से कुछ इतने गंभीर रूप से प्रभावित थे कि उन्होंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी व वास्तव में अपने को घर के अंदर बंद कर लिया, बिल्कुल निर्जन काल कोठरी के समान। अन्य कुछ के साथ मैंने कई कई घंटे बिताए, कई महीनों की अवधि में, उन्हें इस स्थिति से बाहर लाने की सहायता करने में।

जब कोई अवसाद से प्रभावित होता है तो उसके परिचित व संबंधी भी इस का अनुभव करते हैं। तथापि परिवार के अन्य जनों को इसे ढाकना पड़ता है। क्योंकि यदि वे भी अपनी निराशाजनक स्थिति को अभिव्यक्त करना आरंभ कर देंगे तो रोगी को और अधिक कष्ट होगा। यह लेख अवसाद की परिभाषा, इस के कारण एवं उपचार पर केंद्रित हैं। इस विषय को लेख रूप में पूर्ण करना चुनौतीपूर्ण है, फिर भी मुझे प्रयास तो करना ही चाहिए। एक विस्तृत लेख पढ़ने के लिए तैयार रहें।

अपना दृष्टिकोण आप के सम्मुख प्रस्तुत करने से पूर्व मैं आप का ध्यान कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर ले जाना चाहता हूँ, जो निम्नलिखित हैं -

कृपया स्मरण रखें कि मैं चिकित्सा-शास्त्र नहीं बल्कि ध्यान का विशेषज्ञ हूँ। मेरा दृष्टिकोण मेरी वर्षों की योगिक क्रियाओं, ध्यान एवं कई महीनों की अत्यंत गहन साधना पर आधारित है। इस ध्यान-साधना का केवल एक ही प्रयोजन था - मन के वास्तविक स्वरूप का अनुभव करना; वह स्वाभाविक स्थिति पाना जो मन रूपी गुत्थी (ग्रंथि) को सुलझा देती है; मस्तिष्क नहीं, शरीर नहीं, केवल मन।

इस लेख में दी गई जानकारी प्रमुखतः व प्रत्यक्षतः उस ज्ञान पर आधारित है जो मेरे गहन ध्यान की साम्यावस्था के क्षणों में प्रस्फुटित होता है। अपनी बात को और स्पष्ट करने हेतु मैंने वेदों द्वारा प्रतिपादित ज्ञान का सहारा लिया है; इसलिए संस्कृत शब्दावली का प्रयोग किया है। इस के साथ साथ मेरे वह अनुभव भी आधार बने हैं जो उन सब व्यक्तियों की, जो अपने व्यक्तिगत जीवन के समय अवसाद से गुज़रे हैं, सहायता के समय मैंने अर्जित किए। यदि आप संसार को मेरी दृष्टि से देख पायें, तो दृश्य उसी क्षण रूपांतरित हो जाएगा। और मेरा दृष्टिकोण पाने के लिए आप को भी वही करना होगा जो मैं करता हूँ; अन्य सब तो घुटनों के बल पीछे पीछे चला आएगा। कृपया इस लेख के संदेश को समझने हेतु इसे कई बार पढ़ें।


अवसाद क्या है?

अवसाद मन की एक अवस्था है। यह एक शारीरिक व्याधि नहीं है; यह एक स्नायु विज्ञान (न्यूरोलॉजिकल) की अव्यवस्था नहीं है और यह बहुत विरले ही मस्तिष्क का ठीक कार्य न करना होता है। यह निश्चित रूप से मन की एक स्थिति ही है। और मन, संपूर्ण शरीर व उससे परे तक व्याप्त है। यही कारण है कि मन की संतुष्टि संपूर्ण शरीर को उसी प्रकार शांत कर देती है जैसे इस की बेचैनी पूरे तंत्र को अस्त व्यस्त कर देती है। रोगी के लक्षणों द्वारा अवसाद की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है। हालाँकि मैं रोगी शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ, वास्तव में यह एक विरोधाभास है। अवसाद का कोई रोगी हो नहीं सकता क्योंकि यह एक रोग नहीं है जिससे कोई प्रभावित हो सकता हो। यह परस्पर टकराती वासनाओं का बेमेल होना मात्र है जिसे मन की प्रवृत्तियाँ कह कर भी जाना जाता है। मन ग़लत विधि से कार्य नहीं कर सकता चूँकि मन की वास्तविक अवस्था निर्मल आनंद है जो सभी प्रकार के व्यक्तिनिष्ठ चित्रांकन व द्वन्दों से परे है। अच्छा-बुरा, सही-ग़लत, सच-झूठ इत्यादि ऐसे मनोनयन व द्वन्दों के उदाहरण हैं।

अवसाद की गंभीरता को सही रूप से जाँचने के लिए कृपया निम्नलिखित भाग ध्यान से व धैर्यपूर्वक पढ़ें। मैं सरल बनाने का प्रयास करूँगा, किंतु हम एक जटिल विषय से जूझ रहे हैं। अतः इस के आशय को पूर्णतः आत्मसात करने हेतु जितना आवश्यक लगे उतनी बार इसे पढ़ें।

आप के पास तीन शरीर हैं - स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर व कारण शरीर। आप का स्थूल शरीर आप का वह दिखने वाला शरीर है जो हांड-माँस, अस्थि आदि का बना है। आप का सूक्ष्म शरीर आप की चेतन अवस्था है व भावनाओं का सम्मिश्रण है। आप का कारण शरीर आप की जीवात्मा (स्व) का रूप है। कारण शरीर पर स्थूल व सूक्ष्म दोनों शरीर निर्भर करते हैं। यह तीनों शरीर पाँच कोषों के साथ मिल कर कार्य करते हैं - अन्नमय कोष, मनोमय कोष, प्राणमय कोष, विज्ञानमय कोष एवं आनंदमय कोष। ये सब समग्र रूप से शरीर में उपस्थित पाँच मूलभूत उर्जातत्वों (वायु) को प्रभावित करते हैं - प्राणवायु, अपानवायु, उद्दानवायु, समानवायु, व व्यानवायु।

ऊर्जाओं (वायु) का परिचालन, कोषों की स्थिति व तीनों शरीरों को प्रभावित कर सकता है तथा तीनों शरीर विभिन्न वायु व कोषों को। आप के शरीर में जो भी होता है वह पूर्णतः उपरोक्त बातों से सीधा संबंधित है। इस लेख में मैं विभिन्न ऊर्जाओं व कोषों की व्याख्या नहीं करूँगा, अन्यथा ऐसा न हो कि यह एक पुस्तक बन जाए। तथापि मैं तीन शरीर व उनका सभी शारीरिक व मानसिक अवस्थाओं से क्या सम्बन्ध है जिसके उपचार के लिए ओषधि की आवश्यकता होती है, इस का संक्षिप्त में वर्णन करूँगा।


स्थूल शरीर (भौतिक शरीर)

आयुर्वेद व अन्य कई योगिक ग्रंथों के अनुसार आप का भौतिक शरीर सात मूल तत्वों से निर्मित हुआ है, ये हैं - रस, रक्त, माँस, मेदा, अस्थि, मज्जा व शुक्र। वात, पित्त और कफ - इन तीनों द्रव्यों की संरचना यह सुनिश्चित करती है कि आप का शरीर ग्रहण किए गये भोजन का क्या करता है, वह भोजन जिसमें साँस द्वारा ली गयी हवा से लेकर वे सब वसा युक्त मीठे व्यंजन शामिल हैं जिस का आप आनंद लेते हुए भोजन करते हैं। पाँच ऊर्जा (वायु) पाचन व चयापचय जैसी प्रक्रियाओं को प्रभावित करती हैं। यह विशुद्ध रूप से स्थूल शरीर के दृष्टिकोण से है। एक बार जब स्थूल शरीर भोजन को संसाधित कर लेता है तब सूक्ष्म शरीर (चेतना) अपनी अवस्था अनुसार निर्धारित करता है कि कितना भोजन आप के भौतिक शरीर को प्रभावित करे। यही कारण है कि कुछ व्यक्ति बहुत कम मात्रा में भोजन करते हैं परंतु अधिक मोटापा (वसा) एकत्रित कर लेते हैं व कुछ अन्य भोजन तो अधिक करते हैं परंतु उनका वजन नहीं बढ़ता।


सूक्ष्म शरीर (चेतना)

सरल शब्दों में कहें तो आप की चेतन अवस्था का ही दूसरा नाम सूक्ष्म शरीर है। किसी भी एक समय में आप की चेतना इन पाँचों में से किसी भी एक अवस्था में हो सकती है - चैतन्य, उपचैतन्य, अनाचैतन्य, अचैतन्य और पराचैतन्य। इस के साथ साथ आप स्वप्न, जागृत, सुषुप्त अथवा तुरीय - किसी भी अवस्था में हो सकते हैं। एक बार फिर, लेख को संक्षिप्त रखने कि दृष्टि से, मैं इस शब्दावली की व्याख्या फिर कभी करूँगा। अभी के लिया मैं चाहता हूँ कि आप इन शब्दों से परिचित हों ताकि आप एक व्यापक दृष्टिकोण रख पाएँ। यही वह स्थान है जहाँ आप की सभी भावनाएँ रहती हैं, वह है सूक्ष्म शरीर। शरीर की सभी स्वाभाविक क्रियाएं जैसे ह्रदय की धड़कन, नाड़ी-चालन, रक्तचाप आदि पर सूक्ष्म शरीर का प्रभाव होता है। सूक्ष्म शरीर पर नियंत्रण आप को शरीर की सभी स्वाभाविक क्रियाओं पर नियंत्रण करवा सकता है। मैं यह तथ्य अपने स्वयं के अनुभव से कह रहा हूँ जिसे मैं प्रयोगशाला की व्यवस्था के अंतर्गत प्रमाणित कर सकता हूँ।


कारण शरीर (जीवात्मा)

आप की जीवात्मा पर ही आप के भौतिक अस्तित्व व चेतन अवस्था का सीधा उत्तरदायित्व है। बहुत से योगिक ग्रंथ प्रतिपादित करते हैं कि मृत्योपरांत जीवात्मा एक शरीर से दूसरे शरीर की ओर प्रस्थान करती है, बिल्कुल उसी प्रकार जिस प्रकार हम मैले वस्त्र त्याग कर नये धारण करते हैं। परंतु बात यहीं समाप्त नहीं होती; जीवात्मा अकेले ही यात्रा नहीं करती है। चित्तवृत्तियाँ भी इस के साथ ही जाती हैं। वह चित्तवृत्तियाँ जो शब्द, स्पर्श, रस, रूप, व गंध का आस्वादन कान, त्वचा, जिह्वा, नेत्र व नासिका के माध्यम से करते हुए - बाह्य जगत का अनुभव करते समय बलशाली हो चुकी हैं। एक तरह से कारण शरीर आप का असली स्वभाव है। यह आप की निर्मल आत्मा है, आप के मन की सहज अवस्था है। परंतु जिस प्रकार जंग लगा लोहा विद्युत का प्रतिरोधक होता है, ठीक उसी प्रकार प्रतिबंधित-आत्मा आनंद की प्रतिरोधक है। मन की सभी वृत्तियाँ आप के कारण शरीर में विद्यमान रहती हैं।


रोग का जीवन चक्र

सामान्यत: सभी शारीरिक रोग लक्षण मात्र होते हैं, न कि कारण। वे उस प्रतिबंधित चेतना के लक्षण हैं जो अब प्रदूषित है। जब सूक्ष्म शरीर तनाव में होगा तब रोग के चिन्ह भौतिक शरीर पर प्रकट होंगे। पर उपचार व चिकित्सा द्वारा भौतिक शरीर के कुछ रोगों का नियंत्रण संभव है, किंतु संपूर्ण आरोग्यता तभी आती है जब सूक्ष्म शरीर से मूल कारण जड़ से समाप्त कर दिया जाता है। एक ऐसे कैंसर के रोगी के विषय में सोचें जिसके पेट के ट्यूमर का ऑपरेशन हुआ हो। उसका ट्यूमर चाहे किसी भी प्रकार का हो, यदि वह अपनी जीवनशैली में परिवर्तन नहीं लाता, जो उसके भौतिक शरीर पर सीधा प्रभाव डालती है, और जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को नहीं बदलता - जो उसके सूक्ष्म शरीर पर सीधा प्रभाव डालता है, तो उसके ट्यूमर के फिर से उत्पन्न होने की संभावना बन जाती है। यदि वह अपने कारण शरीर से संबंध स्थापित कर पाता है - ध्यान के द्वारा या फिर गहन समर्पण के महाभाव द्वारा - तो वह रोग को अपने तंत्र में से बाहर निकाल फेंक सकता है, वह भी सदैव के लिए।

कुछ रोग भौतिक शरीर में उत्पन्न होते हैं व सूक्ष्म शरीर (अंतःकरण) से गुज़रते हुए कारण शरीर (आत्मा) को प्रभावित करते हैं। ऐसे रोग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इनको ठीक करना कुछ सहज व शीघ्र होता है, उनके मुकाबले जिनका कारण होता है एक रुग्ण कारण शरीर। ऐसे रोग जो विकृत मानसिकता के कारण सीधे सूक्ष्म शरीर में होते हैं, वे भौतिक शरीर की स्थाई व्याधियाँ बन जाते हैं। एक भावनात्मक असंतुलन व उससे पनपा रुग्ण सूक्ष्म शरीर - यही सभी चिरकालिक रोगों का मूल कारण होता है। कारण शरीर से उत्पन्न रोगों का निवारण सबसे अधिक समय लेता है, और प्रायः ये भौतिक शरीर को उसकी अंतिम अवस्था तक पहुँचा देते हैं।

आप की प्रतिबंधित आत्मा की अवस्था का आप के अंतःकरण (चेतना) पर सीधा प्रभाव पड़ता है जो परिणामस्वरूप आप के भौतिक शरीर पर असर करता है। जो व्यक्ति एक तनावरहित जीवन जीते हैं वे अक्सर स्वस्थ शरीर के साथ लंबी अवधि तक जीने का आनंद लेते हैं। भौतिक शरीर की क्रियाएँ अंतःकरण एवं आत्मा की अवस्था से प्रभावित होती हैं। उदाहरणस्वरूप, जो रोगी दवाओं की बेहोशी के प्रभाव में होता है वह हिल भी नहीं सकता क्योंकि उसका अंतःकरण (सूक्ष्म शरीर) मूर्च्छा के प्रभाव में है। और अन्य कोई जिसे मृत घोषित कर दिया गया है, अर्थात वह आत्मरहित है, वह कभी भी अपनी चेतन अवस्था में लौट नहीं पाता, कभी भी शरीर को हिला नहीं पाता।


अवसाद के कारण

एक प्रासंगिक प्रश्न - अवसाद किस कारण से होता है? अवसाद मन की एक स्थिति है। यह कारण शरीर में उत्पन्न होता है। मन अपनी ही अव्यक्त मनोवृत्तियों का शिकार बन गया है। यह अपनी इच्छाओं को दबाने या एक अतृप्त जीवन के कारण हो सकता है, यह दोनों ही अंतःकरण में व्याप्त अज्ञानवश होते है। बहुत से लोग एक अतृप्त जीवन जीते हैं; कुछ अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना करना बेहतर समझते हैं जबकि अन्य कई इसे सांसारिक क्रिया-कलापों में डुबो देते हैं। परंतु एक दिन यह बाहर आ ही जाती है।

रुग्ण कारण शरीर के लिए कोई बाह्य औषधि नहीं हो सकती। अवसाद का उपचार जानने से पूर्व यह महत्वपूर्ण है कि अवसाद के प्रकार जान लिए जाएँ।


गंभीर अवसाद

यदि अवसाद के कारण आप का शरीर अस्वस्थ है व आप को उच्च रक्तचाप, भूख न लगना अथवा अनियमित रूप से भूख लगना आदि इसी प्रकार की अन्य समस्याएं उत्पन्न हो चुकी हैं तो आप का अवसाद आप के भौतिक शरीर तक पहुँच चुका है। हो सकता है आप कब्ज से भी पीड़ित हों। आप के अवसाद को 'गंभीर' तभी कहा जाएगा यदि उपरोक्त शारीरिक लक्षणों के साथ आप में 'हल्का अवसाद' व 'अवास्तविक अवसाद' के भी सभी चिन्ह उपस्थित हों। आप इस स्थिति में तनावपूर्ण जीवनशैली व भावनात्मक उठापटक के कारण हैं, व आप की आत्मा एक लंबी भुखमरी से गुज़री है; बस जैसे तैसे अपने को इस आध्यात्मिक अकाल में जीवित रखे हुए। इस का यह अर्थ कदापि नहीं है कि आप का अवसाद ठीक नहीं हो सकता। यह केवल इस बात का संकेत है कि आप को सभी तीनों स्तरों पर कार्य करना होगा। नीचे 'उपचार' खंड के अंतर्गत मैं इसे कुछ विस्तार से वर्णित करूँगा।


हल्का अवसाद

यदि आप का शरीर ठीक है किंतु आप जिन वस्तुओं का पहले आनंद लेते थे, अब अधिकतर पसंद नहीं आतीं, और आप अपने को अनिश्चित व उदासीन सा पाते हैं तो संभव है कि आप का अवसाद सूक्ष्म शरीर तक बढ़ गया है, परंतु अभी आप के शरीर को नहीं छू पाया। यह अभी अंतःकरण के स्तर पर ही है। इस को अनुशासन व प्रयास द्वारा ठीक किया जा सकता है।


काल्पनिक अवसाद

यदि आप के अवसाद के संकेत अत्याधिक ऊब जाना, आलस्य, उदासीनता, भावशून्यता , अनिद्रा, दुर्भीति व बेचैनी तक सीमित हैं, तो आप का अवसाद अभी प्रारंभिक स्तर पर है। आप अब भी स्वस्थ (हरे) निशान में हैं व एक अल्पावधि में ही अपना मौलिक मानसिक स्वस्थता फिर से पा सकते हैं।


अवसाद का उपचार

उपचार को असरदार बनाने के लिए आप का मेरे उपरोक्त शोध से तारतम्य रखना आवश्यक है। उपर लिखे भाग को पढ़ने के उपरांत यदि आप उससे सहमत हों तो आगे पढ़ें।

असली उपचार पर पहुँचने से पूर्व कृपया समझ लें कि आप का अवसाद केवल एक दिन के कृत्यों का परिणाम नहीं है, अतः रातों रात ठीक भी नहीं किया जा सकता। आप इस बात से उदास न हों कि आप शीघ्र अपने अवसाद से छुटकारा नहीं पा रहे। कृपया धैर्य रखें। आप निश्चित रूप से इस से उतनी ही आसानी से बाहर आ सकते हैं जिस आसानी से आप अवसाद की स्थिति में पहुँचे थे। किंतु इसे लेकर धैर्य बनाए रखें व शांत रहें। यह जान लें कि यह आप का मन ही है जो खेल खेल रहा है और यदि आप इसे रंगे हाथों पकड़ पायें तो यह रुक जाएगा।

अब उपचार की ओर चलते हैं -
यदि आप इस समय अवसाद से निकलने की दवा का सेवन नहीं कर रहे तो आधा कार्य तो हो ही गया। कृपया ऐसी गोलियाँ लेना आरंभ न करें। ये निद्राजनक पदार्थ हैं जिनकी रचना आप के मस्तिष्क को नकली शांति प्रदान करने के लिए हुई है जिससे आभास हो कि आप का मन शांत है। धीरे धीरे इनकी मात्रा बढ़ानी पड़ती है क्योंकि आप का मस्तिष्क इनका आदी हो जाता है।

न केवल अवसाद से पूर्ण रूप से छुटकारा पाने हेतु वरन पहले से अधिक स्वस्थ महसूस करने के लिए आप को तीनों स्तरों पर कार्य करना होगा - शरीर, अंतःकरण एवं आत्मा।


स्थूल शरीर (भौतिक)

अपने शरीर का स्वास्थ्य पुनः पाने के लिए निम्नलिखित, अथवा इसमें से कुछ सूत्र अपनायें -

१. अपने शरीर को थोड़ा थकाएं। जाएँ व जिम में व्यायाम करें या कोई खेल खेलें।
२. वह शाकाहारी पदार्थ खायें जो क्षारीय प्रवृत्ति के होते हैं। अम्लीय प्रवृत्ति के भोजन से परहेज करें। संपूर्ण आहार की मात्रा बढ़ायें। मिर्च मसालेदार व शुष्क पदार्थ न लें।
३. प्रतिदिन केवल एक नियत समय पर ही खायें। दो भोजन काल के मध्य अधिक दूरी न रखें। इस से शरीर अपने अंदर एकत्रित ऊर्जा का उपयोग करने के लिए उत्तेजित होता है जिससे इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाती है।
४. प्रतिदिन एक नियत समय पर ही सोने जायें। नींद न आ पाने को तनाव का कारण न बनायें। अनुशासन समझ कर ही इस का पालन करें।
५. प्रत्येक दिन सुबह नियत समय पर ही उठें।
६. टी. वी. से दूर रहें। यह शरीर व मन को सुस्त करता है।

सूक्ष्म शरीर (चेतना)

सूक्ष्म शरीर को शुद्ध करने व अपने भावनात्मक स्वास्थ्य हेतु, निम्नलिखित अपनायें -

१. कुछ निष्काम कर्म करें अथवा किसी भावनात्मक संतुष्टि देने वाले सामाजिक या आध्यात्मिक उद्देश्य से जुड़ें।
२. जिससे आप को प्रसन्नता मिले, वह करें। यदि आप को घूमने जाना पसंद है, चित्रकला, भोजन बनाना, पढ़ना अथवा ऐसा कोई भी कार्य करना अच्छा लगता है, वह करें। अवसाद पर लिखे विभिन्न लेख व अन्य लोगों की कहानियाँ न पढ़ें।
३. उन लोगों से बात न करें जो आप को भावनात्मक रूप से शुष्क बना देते हैं। टेलीफोन पर बातचीत व तथ्यहीन वार्तालाप कम कर दें।
४. किसी को भी न बतायें कि आप अवसाद में हैं। अधिकतर लोग यही कहेंगे कि चिंता की कोई बात नहीं है, आप केवल तनाव में हो; और अन्य सब आप के लिए कुछ नहीं कर सकते।
५. और तो और, चिकित्सक भी, जब आप उनके पास कुछ एक बार जा चुके हो फिर भी अवसाद की शिकायत करते रहो, तो आप को अवसाद का शिकार घोषित कर के आप को किसी बेतुके दवाओं के नुस्खे पर डाल देंगे। मैं तो यह कहूँगा कि हो न हो यह अवसाद दवा बनाने वाली कंपनियों द्वारा बनाया गया एक षड्यंत्र मात्र है, जो उनके लिए लाभदायक है।

अवसाद भय का एक रूप नहीं है जिसे समाप्त करने के लिए आप को उसका सामना करना ही होगा। यह मन की एक अवस्था मात्र है, यद्यपि इच्छित अवस्था नहीं। जिस तरह आप आइसक्रीम के विषय में सोचें तो सही परंतु वह लें न, ठीक उसी प्रकार आप अवसाद को भी भगा सकते हैं। यह असंभव है कि आप यह जानें या अनुभव करें कि आप को अवसाद है, यदि आप इस के होने के विचार को वास्तव में मन में जगह न दें।


कारण शरीर (आत्मा)

प्रतिदिन अपने समय में से कम से कम ३० मिनिट निम्नलिखित करने में दें व देखें कि कैसे देखते ही देखते अवसाद चमत्कारिक रूप से गायब हो जाता है -

१. सुबह १५ मिनिट ध्यान में बैठें व १५ मिनिट सोने से पूर्व। अधिक समय तक बैठना और अधिक अच्छा होगा। इस से पहले कि आप ध्यान कर पायें, आप को एकाग्रता बनानी होगी। ऐसा करने के लिए एक मोमबत्ती जलायें, इसे अपनी आँखों के स्तर पर अपने से लगभग दो फुट की दूरी पर रखें व बिना पलकें झपकाए इसे देखें। पलकों को झपकने से रोकने में कुछ मेहनत लगेगी किंतु जितनी देर आराम से हो सके यह करें। यह त्राटक द्वारा एकाग्रता सिद्ध करने की उस मानक विधि से थोड़ा भिन्न है जिसमें आँखों को बिल्कुल भी झपकाया नहीं जाता।
२. अपने मन को सांसारिक विचारों से हटाने के लिए कोई भजन अथवा सुखद प्रतीत होने वाला संगीत सुनें।
३. जितना संभव हो अपनी दाईं करवट सोया करें। यह इडा नाड़ी व बाईं नासिका का संचालन तीव्र करता है व शरीर के तापमान को नीचे लाता है। इस के पीछे एक कारण है कि क्यों ध्यान की विधियाँ सर्द स्थानों पर फलती फूलती हैं। सर्दी में, व बाईं नासिका से श्वास लेने से मन की विभेदकारी क्षमता उल्लेखनीय रूप से शांत हो जाती है।
४. सदैव प्रसन्न मुद्रा बनाए रखने का प्रयास करें। यह जान लें कि आप ईश्वर के हाथ की कठपुतली हैं और वह आप का सदैव ध्यान रख रहे हैं। जो कोई भी उनकी शरणागति की आस लगाता है, वह निश्चित ही ईश्वर का कृपापात्र बन जाता है। इस विषय में संशय को मन में बिल्कुल भी स्थान न दें।
५. और सदैव मुस्कुरायें! प्रयास करें। उस मुस्कान को चेहरे से हटने न दें।

ध्यान पाँचों ऊर्जाओं को व्यवस्थित करता है व पाँचों कोषों का भेदन करता है।

इसे और साधारण तरह से कहा जाए तो आप तीन शरीर, पाँच कोष व पाँच ऊर्जाओं के सिवा और कुछ नहीं हैं। यदि आप तीन पहलुओं पर काम करते हैं - शरीर, अंतःकरण व आत्मा - तो आप २८ दिन के भीतर ठोस परिणाम देखेंगे।

इसे लगातार ४० दिन करना ऊर्जाओं को संतुलित करता है। अधिकतर योगिक क्रियायें अपना संपूर्ण प्रभाव दिखाने में ६ मास का समय लेती हैं। अतः इसे ६ महीने लगातार करना आप का अवसाद पूरी तरह दूर कर देगा, इस के साथ साथ आप के अंतःकरण की अवस्था एवं आप के चक्रों के घुमाव को रूपांतरित कर देगा। आप पूरी तरह से ठीक हो जायेंगे। छः महीने। कोई दवा नहीं।

जैसा कि रॉबर्ट फ़्रॉस्ट ने कहा है 'कार्य अभी बहुत बाकी है...समय बीतता जा रहा है ...' मैं इस विषय पर और बहुत कुछ लिखना व बाँटना चाहता हूँ, परंतु यह लेख पहले ही भयंकर रूप से लंबा हो चुका है। मैं आशा करता हूँ कि आप प्रयत्न करेंगे व उपरोक्त बातों को अपना कर बेहतर महसूस करेंगे।

ईश्वर करे कि सभी सचेतन प्राणी आनंद का अनुभव करें एवं रोग, निर्धनता व भूख से मुक्त जीवन व्यतीत करें।


शांति।
स्वामी

जीवन एक संगीत उपकरण के समान है

मनुष्य के जीवन के स्वर, धुन एवं संगीत, जीवन के संगीत उपकरण पर कम और संगीतज्ञ पर अधिक निर्भर होते हैं।
जीवन एक संगीत उपकरण के समान होता है। उस की ध्वनि मधुर अथवा बेसुरी हो सकती है - वह संगीतज्ञ पर निर्भर है। कुछ उपकरणों के प्रयोग के लिए उंगलियों की स्थिरता की आवश्यकता होती है और कुछ के लिए विशेष निपुणता की। कुछ को पीटा जाता है तो कुछ में फूंक मारा जाता है। प्रत्येक उपकरण की ध्वनि अद्वितीय होती है और कुछ की तो विशिष्ट रूप से असाधारण होती है। कुछ का प्रयोग एक सहायक के रूप में अन्य संगीत उपकरण के संगत में ही किया जाता है। कुछ अत्यंत लोकप्रिय होते हैं तो कुछ अप्रसिद्ध। एक निपुण संगीतज्ञ के हाथों में उपकरण मानो जीवित हो जाता है। ऐसे में यह निश्चित करना कठिन हो जाता है कि संगीत उपकरण की सराहना की जाए कि संगीतज्ञ की।

कुछ उपकरण अत्यंत विशाल होते हैं तो कुछ एक स्टेपलर से भी छोटे। संगीतज्ञ और उनके स्वभाव भी विभिन्न प्रकार के होते हैं। आंतरिक रूप से उपकरण का कोई महत्त्व नहीं होता क्योंकि यह संगीतज्ञ पर निर्भर है कि उपकरण की ध्वनि बहती हुई नदी समान है अथवा गिरते हुए चट्टानों समान। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी भी संगीत उपकरण का प्रयोग करने हेतु आप के पास बहुत कम विकल्प होते हैं। उदाहरणार्थ एक ढोल को पीटने के लिए आप के पास एक लाठी, सात सुर तथा एक या दो सप्तक हैं - प्रश्न उठता है कि इस के साथ आप भला कितनी भिन्न ध्वनियाँ उत्पन्न कर सकते हैं। परंतु फिर भी कुशल संगीतज्ञ विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। यह कैसा चमत्कार है! इसी प्रकार, जीवन एक संगीत है जिस की धुन आप पर निर्भर है।

संगीतज्ञ सदैव नवीन, अद्भुत एवं अद्वितीय धुनों का निर्माण करता रहता है  - ऐसे मनोहर धुन जो होंठों पर हंसी ला सकते हैं अथवा आंखों में अश्रु। ऐसे धुन जिन की आप ने कभी कल्पना भी ना की हो परंतु संगीतज्ञ संसार को आश्चर्यचकित करता रहता है। और इसी कारण विश्व में लाखों गीत एवं धुन हैं। यदि आप मोज़ार्ट या बीथोवेन की रची गई प्रत्येक धुन को बजाने में समर्थ हैं तो वह सराहनीय है, परंतु संसार से सम्मान प्राप्त करने हेतु तथा इतिहास में अपना नाम अमर करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। किंतु यदि आप स्वयं धुनों की रचना करें और महान संगीतज्ञों से भी अधिक धुन अथवा श्रेष्ठतर रूप से धुन की रचना करें तो संसार आप की मौलिकता के लिए आप का आदर करेगा। प्रत्येक क्षेत्र में जो मनुष्य स्वयं के मूल दृष्टिकोण अथवा सिद्धांत प्रस्तुत करते हैं वे ही समाज की वास्तविक प्रगति में सहायता करते हैं।

जाएं और धुन बजाएं! याद रखें धुन स्वयं आप की रची हुई हो। किंतु ऐसे में अहंकार को बढ़ावा ना दें। संगीत पर स्वयं की पहचान जोड़ें। यदि आवश्यक हो तो पहले प्रशिक्षण लें ताकि आप श्रेष्ठतर बजाने की विधि जान सकें। परंतु कौन सी धुन बजानी है इस के लिए प्रशिक्षण ना लें - इस का निर्णय आप को स्वयं करना है। अपने भीतर की ध्वनि को सुनें, उसे समझें तथा उसे अपने जीवन के संगीत में समा लें। प्रशिक्षित होने के उपरान्त आप अत्यंत मोहक एवं मधुर जीवन संगीत की रचना कर सकेंगे। इस के द्वारा आप के भीतर की ध्वनि को स्वचालित रूप से एक गहरा, मूल एवं अद्वितीय अर्थ प्राप्त हो जाएगा। किसी अन्य व्यक्ति की धुन को ना बजाएं। स्वयं उपकरण चुनें, अपनी धुन बजाएं और चाहें तो स्वयं की एक भव्य एवं श्रेष्ठ ऑर्केस्ट्रा का भी आयोजन करें। किंतु यह करने हेतु आप को निश्चित रूप से मन को अपने भीतर की ओर केंद्रित करने की आवश्यकता होगी!

दूसरों की भलाई के लिए कृपया एक सार्वजनिक प्रदर्शन तभी दें जब आप बाथरूम में की गई अपनी गायकी को सुधार लें और एक श्रेष्ठ संगीतज्ञ बन जाएं।

शांति।
स्वामी

Share