पीड़ा अनिवार्य है, दुःखी होना ऐच्छिक


यह आत्म परिवर्तन के योग की श्रृंखला में सातवाँ लेख है।
 
जाने देने की कला
मानसिक परिवर्तन।

एक प्रसिद्ध कहावत है जो माना जाता है कि गौतम बुद्ध के वचन थे - "पीड़ा अनिवार्य है किंतु दुःखी होना ऐच्छिक"। कितनी गहरी बात है!

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यदि आप पीड़ा को छोड़ दें, उसे जाने दें, उस से चिंतित ना हों तो आप को कोई दु:ख ही नहीं होगा। दु:ख के अभाव में पीड़ा महत्वहीन हो जाती है। मुझे एक कहानी याद आ गई जो मैंने कुछ समय पहले सुनी थी।

सूर्यास्त का समय था। दिन के उपदेश और भिक्षा के उपरांत दो युवा संन्यासी मठ को लौट रहे थे। दोनों लगभग एक ही आयु के थे - एक और वरिष्ठ। वे दृढ़ता से अपने आचरण का पालन करते हुए अपने सिर को झुकाये ध्यानपूर्वक चल रहे थे। बरसात के दिन थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वरुण देव बहुत प्रसन्न थे क्योंकि उस दिन भी बहुत वर्षा हुई थी। वादी हरी-भरी लग रही थी और जगह जगह सड़क पर पानी की लहरें ऐसे दौड़ रहीं थीं मानो एक सुंदर चित्र पर रंग बिखरे हों। खूबसूरत पहाड़ियों के बीचोबीच उनका मठ स्थित था। मठ के निकट एक सुंदर नदी बहती थी जो मात्र छह फीट चौड़ी थी परंतु वर्षा ऋतु में पानी का प्रवाह अत्यंत तीव्र था।

मठ तक पहुँचने के लिए भिक्षुकों को नदी पार करनी पड़ती थी। उस दिन नदी के तट पर पहुँचने पर उन्हें वहाँ एक अत्यंत सुंदर नारी दिखी। नवयुवती कुछ चिंतित खड़ी थी। उसे देखकर वरिष्ठ भिक्षुक समझ गए कि वह नदी को पार करने से भयभीत थी।

बिना कुछ कहे संन्यासी नवयुवती के पास गए और धीरे से उसे अपनी बाहों में उठा लिया। नदी को पार करने पर संन्यासी ने सावधानी से उसे दूसरे तट पर उतार दिया। युवती ने कृतज्ञता और सम्मानपूर्वक संन्यासी को नमस्कार किया और फिर अपने घर की ओर चल दी।

वरिष्ठ संन्यासी के व्यवहार से कनिष्ठ भिक्षुक अशांत एवं विचलित हो गया। किंतु उनके प्रती आदर के कारण वह मौन रहा। दोनों भिक्षुक मठ की ओर चलने लगे। कुछ घंटों की निस्तब्धता के पश्चात कनिष्ठ भिक्षुक बोला -  “यदि आप को कोई आपत्ति ना हो तो क्या मैं आप से एक प्रश्न पूछ सकता हूँ?”

“हाँ, अवश्य पूछो”, वरिष्ठ संन्यासी ने कहा।

“संन्यासी आचरण नियमानुसार, हमें किसी स्त्री को छूने की अनुमति नहीं है।”

“हाँ, निःसंदेह।”

कुछ क्षण मौन रहने के पश्चात कनिष्ठ भिक्षुक ने पूछा “तो आप ने कैसे उस नवयुवती को उठाया?”

वरिष्ठ संन्यासी ने कहा “मैं ने नवयुवती को नहीं उठाया, केवल एक ज़रूरतमंद की सहायता की। इसके अतिरिक्त, मैं ने तो उसे नदी के किनारे छोड़ दिया परंतु तुम ने अभी भी उसका विचार अपने मन से नहीं छोड़ा।”

अधिकतर व्यक्ति पीड़ा को जाने नहीं देते, और बहुत तो यह जानते ही नहीं कि पीड़ा को कैसे जाने दें। आत्म परिवर्तन की यात्रा पर, मानसिक परिवर्तन की श्रृंखला में मैं आगे जाकर इस विषय पर लिखूंगा।

हरे कृष्ण।
स्वामी

 

नववर्ष का संकल्प - बाल योगी

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एक और वर्ष बीत गया और नया वर्ष आरंभ हो गया। यह तो मात्र कैलेंडर के अनुसार है। वास्तव में कुछ भी पूर्ण या आरंभ नहीं हुआ। यह केवल एक दृष्टिकोण है। परंतु सदियों से मानव जाति संसाधनों का बेहतर उपयोग करने के लक्ष्य से खंडित और संगठित करता आया है। इस से मनुष्य को एक संरचना एवं प्रणाली मिली है। परंतु इस के फलस्वरूप मानव मन एक प्रकार से इस प्रणाली पर निर्भर हो गया है। उदाहरणार्थ आप स्वतः रात के आते ही विश्राम की अवस्था महसूस करने लगते हैं। आप निद्रा के लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि घड़ी संकेत कर रही है कि रात हो गई।

मुझे गीता का एक श्लोक याद आ गया। श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं -
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जाग्रति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ।। ( गीता , २.६९ )

जब सब के लिए रात हो, तब योगी जागता है। जब सभी पूरी तरह से जगे हुए हों, तब योगी के लिए रात है।

ऐसा प्रतीत होता है कि यह श्लोक केवल योग प्रथाओं के लिए रात के महत्व का वर्णन कर रहा है। परंतु श्री कृष्ण के कहे गए अन्य वचनों के समान, इसका भी एक गहरा अर्थ है। जो दृढ़ता से आत्म परिवर्तन के पथ पर चलते हैं, वे सबसे पहले मन की शुद्धीकरण आरंभ करते हैं। जब सम्पूर्ण संसार सोता है, तब वे शारीरिक संतुष्टि या बाहरी दुनिया की गतिविधियों से दूर रहते हैं। मानव मन के लिए दिन तब होता है जब वह अपनी बाहरी दुनिया के निर्माण, पूर्ती तथा सुरक्षा में व्यस्त रहता है। ऐसे व्यक्ति पूरे दिन क्या करते हैं? वे सांसारिक गतिविधियों एवं भौतिकवादी कार्यों में व्यस्त रहते हैं। योगी को ऐसे “सांसारिक दिन” में कोई दिलचस्पी नहीं। वह सभी पारंपरिक ज्ञान को चुनौती देता है। हर सूर्योदय में वह एक नये वर्ष को उभरते हुए देखता है। वास्तव में हर उभरते क्षण के साथ एक नया साल आता है। उदाहरणार्थ चीनी नव वर्ष का आरंभ किसी अन्य समय होता है, हिंदुओं का किसी अन्य समय, और इसी प्रकार अन्य संस्कृतियों और धर्मों के लिए नव वर्ष कभी और प्रारंभ होता है। अर्थात आप जिसे अपना नव वर्ष मान कर मनाते हैं वास्तव में वह भी समाज से प्रभावित आप के मन की एक रचना है। अब जब हम एक नये वर्ष में हैं क्या आप ने कोई नववर्ष का संकल्प लिया है? कुछ ऐसा जो आप करना चाहते हों! क्यों ना कुछ ऐसा करें जो अलग, नया एवं अद्वितीय हो? एक ऐसा लक्ष्य जो सामान्य वित्तीय, सामाजिक, पेशेवर, व्यक्तिगत या पारिवारिक लक्ष्यों से अलग हो…….क्यों ना एक बालक के समान जीएं? मैं यह नहीं कह रहा कि आप हर तीन घंटे उठें और दूध के लिए रोने लगें, या आप डायपर पहन कर चलने लगें। मेरा सुझाव यह है कि आप एक बाल भक्त या बाल योगी बनें।

एक नन्हा शिशु जिसने अभी अभी चलना सीखा हो सदैव वर्तमान क्षण में जीता है। वह ना भविष्य की योजना बनाता है ना अतीत की चिंता करता है। बालक रोता है जब उसे दर्द हो, हंसता है जब वह प्रसन्न हो, मन्द-मन्द हंसता है जब कोई उसे गुदगुदी करे और खेलता है जब वह जगा हुआ हो। वह जिज्ञासु होता है परंतु संपत्ति के विषय में नहीं सोचता। वह समर्पण की भावना से जीता है। अर्थात उसके माता-पिता ही उसका संसार होते हैं। चाहे आग हो या एक सुंदर खिलौना वह दोनों को एक ही प्रकार के विस्मय से देखता है। वह स्वयं कोई भेदभाव नहीं करता और हर निर्णय के लिए अपनी मां पर निर्भर करता है। वह खेलने में व्यस्त रहता है, चिंता और गणना में नहीं। एक बाल भक्त बनने का अर्थ है समर्पण की भावना से जीना और एक बाल योगी बनने का अर्थ है वर्तमान क्षण में जीना।

नववर्ष के लिए कुछ विचार -

१. वर्तमान क्षण में जीएं
अर्थात अतीत में हुई बातों से उदास ना हों और आने वाले भविष्य से भयभीत ना हों। अनुशासित रहें परंतु अपनी चिंताओं को त्यागें। चिंता द्वारा कुछ भी पूर्ण नहीं किया जा सकता।

२. क्रोध को त्यागें
लोगों को क्षमा करें। आप की अनुमति के बिना कोई भी आप को परेशान नहीं कर सकता। हर मनुष्य मानो एक डाकिया या एक दूत है। वह केवल आप के कर्म फल का पार्सल वितरित कर रहा है। उस दूत को कोसने का कोई लाभ नहीं।

३. सही और गलत से ऊपर उठें
सदैव इस की चिंता ना करें कि कौन सही है और कौन गलत। जिस प्रकार विजय या पराजय ही सब कुछ नहीं, महत्वपूर्ण विषय तो खेलना है। इसलिए खेलने का आनंद लें।

४. प्रसन्न रहना सीखें
यदि आप का कोई लक्ष्य है तो उस में कोई बुराई नहीं। परंतु आप के पास जितना है उस में संतुष्ट रहना सीखें। यदि आप उतने में संतुष्ट नहीं हो पाते तो भले ही आप को बहुत कुछ मिल जाए आप कभी संतुष्टि प्राप्त नहीं कर पायेंगे।

५. इस वर्ष को स्मरणीय बनायें
इस वर्ष कुछ ऐसा महत्वपूर्ण कार्य करें जो आप ने अब तक नहीं किया हो। बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी अपेक्षा के आप कुछ देने का प्रयास करें। यदि आप ऐसा करें तो यह आप में एक परिवर्तन ले आयेगा।

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं  :)

शांति।
स्वामी

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