क्यों लोग प्रेम या घृणा करते हैं

लोग किस से प्रेम या घृणा करते हैं? आप से या आप के व्यवहार अथवा आप के गुणों से? कहानी पढ़ें।
एक समय की बात है एक युवा बाज अपने विशाल पंखों को फैलाये एक सुंदर झील के सैंकड़ों फीट ऊपर नीले गगन में उड़ते हुए भोजन ढूंढ रहा था। उसने झील के निर्मल जल में तैरती हुई एक मछली को देखा। तुरंत ही उसने डुबकी लगाई तथा अपने तीक्ष्ण पंजों से मछली का शिकार किया। फिर उसने विचार किया कि वह कहीं उँची जगह पर शांति से बैठ कर अपने शिकार का भोजन करेगा।

तब ही बाज के एक झुंड ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया। वे उससे बड़े और शिकार करने में अधिक अनुभवी थे। युवा बाज ने बड़ी कठिनाई से मछली को पकड़े रख अपने पंख तीव्रता से फड़फड़ाते हुए दूर उड़ने का प्रयास किया। परंतु अन्य बाज उस पर लगातार क्रूरता से आक्रमण करते रहे। अपने भूख के कारण वे उस बाज को मारने के लिए भी तैयार थे। युवा बाज बुरी तरह से घायल हो गया। उसके शरीर से कुछ पंख गिर गए और कई स्थानों से रक्त बहने लगा। अन्य पक्षियों से लड़ते लड़ते वह थक गया और उसने अपना शिकार खो दिया।

तेज़ी से मछली भूमी की ओर गिरने लगी। सारे पक्षियों ने उस युवा बाज को अकेला छोड़ दिया और मछली की ओर उड़ने लगे। युवा बाज आश्चर्य चकित हो गया कि अब कोई भी उसके प्राण नहीं लेना चाहता था और उसको हानी नहीं पहुँचाना चाहता था। वह उड़ कर पास के एक पेड़ पर जा पहुँचा। पेड़ की शाखा पर बैठे जब वह अपने घाव जांच रहा था उस समय उसे यह अहसास हुआ -“मुझे लगा कि वे मुझे पसंद नहीं करते हैं और इसी कारण मुझ पर आक्रमण कर रहे हैं। मुझे वास्तव में लगा कि उन्हें मैं पसंद नहीं था और इसी लिए वे मुझे हानी पहुँचा रहे थे। किंतु सत्य यह है कि उन्हें मेरे में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन के प्रहार का मेरे से कोई संबंध नहीं था। उन्हें तो केवल मछली चाहिए थी। उनके लिए यह मुख्य नहीं था कि मैं कौन हूँ, उन के लिए तो केवल यह मुख्य था कि मेरे पास क्या है।” 

लोग आप से प्रेम या घृणा नहीं करते हैं। उनके व्यवहार का कारण वास्तव में आप नहीं हैं। प्रश्न यह नहीं कि उन्हें “कौन” चाहिए बल्कि उन्हें “क्या” चाहिए। उन्हें आप नहीं चाहिए, आप के पास जो है वह चाहिए।

जब आप उन्हें वह नहीं दे पाते जो उन्हें चाहिए अथवा आप के पास जो है उसे वे नहीं चाहते तो उनका प्रेम क्षीण होने लग जाता है। इसी कारण कुछ लोग रिश्तों को अखंडित नहीं रख पाते हैं। कईं बार पाठक यह लिखते हैं कि उनके साथी हैं तो अच्छे तथा उन्हें रिश्ते में रहने में कोई आपत्ति नहीं है परंतु कोई विशेष प्रेरणा भी नहीं है। इसका अर्थ यह है कि उनकी प्राथमिकताओं में परिवर्तन आ गया है। दुख की बात है परंतु यही सत्य है।

प्रकृति आवश्यकताओं के आधार पर विकसित हुई है। अक्सर क्या संबंध बने रहेंगे इस पर निर्भर करता है कि लोगों के पास एक दूसरों को देने के लिए क्या है। प्रकृति में यह देखा गया है कि कई प्रजाति जीवित रह पाए क्योंकि उन्होंने एक दूसरों को संभाला। यह सिद्ध एवं सुस्थापित है। यदि आप चाहते हैं कि कोई आप से सदा ही प्रेम करते रहे तो आप को उनकी चाहतों की पूर्ती करते रहनी होगी। आप को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार बदलते रहना होगा। मैं केवल देख रेख या रिश्तेदारी की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं प्रेम के बारे में बात कर रहा हूँ। विशेष रूप से यदि उनका प्रेम उनकी इच्छाओं या आवश्यकताओं की पूर्ति पर निर्भर करता है तो वे आप से तब तक प्रेम करते रहेंगे जब तक आप उन की इच्छाओं को पूरा करने की क्षमता रखते हैं।

जब आप उन से ऐसा व्यवहार करते हैं अथवा ऐसी वस्तु देते हैं जिन में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं हो, तो वे आप के प्रति उदासीन हो जाते हैं। यदि आप सोने के ढेर पर बैठे हों और उसे एक बंदर को भेंट करें या आप किसी शेर को घास प्रदान करें तो उसे देख कर वे भला कैसे उत्सुक होंगे। उसी प्रकार जब अन्य लोगों को आपके पास जो है उसमें कोई रुचि नहीं रह जाती तो वे आप को छोड़ कर चले जाते हैं। उन की रुचि एवं पसंद के अनुसार उनकी प्राथमिकता बदल जाती है। ठीक वैसे ही जिस प्रकार व्यक्ति जब भर पेट भोजन कर ले और उस के तुरन्त बाद आप उसे और भोजन प्रदान करते हैं तो वह उसे ठुकरा देता है। उसे तब भोजन में कोई दिलचस्पी नहीं होती। क्या निस्वार्थ प्रेम कहीं होता है? हाँ। किंतु वह असामान्य होता है। ऐसे व्यक्ति आप अवश्य पा सकते हैं जो निस्वार्थ भाव से देख रेख करते हैं, किंतु निस्वार्थ प्रेम असामान्य है। यदि आप चाहते हैं कि आप जिस प्रकार किसी को प्रेम करते हैं उसी प्रकार वे भी आप को प्रेम करें तो आप बहुत अधिक माँग रहें हैं। क्योंकि आप से उसी प्रकार प्रेम करने के लिए तो उन्हें आप ही के समान होना पड़ेगा। आप जो चाहते हैं उन्हें भी वही चाहना होगा, अर्थात उन्हें अपनी पहचान ही खोनी होगी।

एक युवा एवं धनवान विधवा मुल्ला से पूछती है - “क्या आप मुझे सदैव इतना ही प्रेम करेंगे?”
मुल्ला ने कहा “सूर्य पश्चिम से उदय हो सकता है परंतु तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम कभी कम नहीं होगा।”
“मेरे ससुराल वालों ने मेरे विरुद्ध एक मुकदमा दायर किया है और मेरी सारी संपत्ति हाथ से निकल जाने की संभावना है।”
मुल्ला ने विश्वास सहित कहा - “उससे मुझे कोई परेशानी नहीं है। संभव है मैं तुम्हें फिर कभी नहीं देखूँगा किंतु तुम्हें प्रेम करना कभी नहीं छोडूंगा।”

प्रेम के शब्द कहना सरल है। सत्य यह है कि अत्यधिक सांसारिक रिश्ते स्वार्थ से ही बंधे हैं। इस प्रकार का स्वार्थ सदैव भौतिक ही नहीं बल्कि भावनात्मक या नैतिक समर्थन इत्यादि भी होता है। मैं इसे अच्छा या बुरा अथवा उचित या अनुचित की छाप नहीं दे रहा हूँ। केवल एक तथ्य बता रहा हूँ।

जब कोई आप से घृणा करता है तब यह जान लें कि वह आप के उस पहलू से घृणा करता है जिसे वह समझता नहीं है। चाहे कोई अन्य व्यक्ति हो अथवा कोई धर्म या विचारधारा, आप केवल उसी से घृणा कर सकते हैं जिस को आप समझते नहीं हों। जैसे ही आप कुछ समझ जाते हैं आप में उसके प्रति प्रेम या करुणा जागृत हो जाती है। एक बालक हरी सब्जियों से घृणा क्यों करता है? वही बालक जब बड़ा हो जाता है तो खुशी से स्वादहीन वीटग्रास अथवा घास का रस पीता है या स्वेच्छा से अरुचिकर कच्चा साग खाता है। क्यों? रुचि? आवश्यकता? समझ? क्या मुझे और कुछ कहने की आवश्यकता है?

तो आप के पास दो विकल्प हैं। एक यह कि सदैव नेक एवं सही कर्म करते रहें, जितना भी प्रेम मिले स्वीकार करके प्रसन्न रहें और अपनी पहचान बनाये रखें। दूसरा यह कि अपने आप को निरन्तर बदलते रहें तथा और अधिक माँगते रहें। पहला स्वयं के भीतर की ओर जाने के समान है। दूसरा अतृप्य मार्ग है - एक अथाह गड्ढे के समान अंतहीन तलाश।

शांति।
स्वामी


जीवन एक संघर्ष

जीवन वास्तव में एक संघर्ष है या यह केवल दृष्टिकोण पर निर्भर है? कहानी पढ़ें।
हर महीने मैं दो-तीन हज़ार ईमेल पढ़ता हूँ। इन में नब्बे प्रतिशत ईमेल ऐसे व्यक्तियों से होते हैं जो किसी ना किसी समस्या से परेशान हैं और संघर्ष कर रहे हैं। उनमें से कुछ जीवन के उस चौराहे पर हैं जहाँ वे समस्याओं से जूझते जूझते थक गए हैं और आगे क्या करना है उन्हें पता नहीं, वे ऐसा कहते हैं। कई व्यक्ति यह लिखते हैं कि जीवन उन पर अत्यंत निर्दयी रहा है। जीवन एक संघर्ष है और उन के लिए जीवन सदैव ऐसा ही रहा है, वे ऐसा कहते हैं।

हाँ, जीवन कठिन हो सकता है, जीवन एक संघर्ष हो सकता है। परंतु क्या अन्य व्यक्तियों से यह भिन्न है? जिन व्यक्तियों के पास अधिक धन नहीं है वे समझते हैं कि धनवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं। और धनवान उद्योगपति जो तनावपूर्ण व्यवसाय संभाल रहे हैं उन्हें यह प्रतीत होता है कि जो व्यक्ति साधारण नौ से पाँच की नौकरी कर रहे हैं वे अत्यंत प्रसन्न होते हैं। स्वस्थ व्यक्ति समझता हैं धनवान प्रसन्न है, धनवान व्यक्ति समझता है स्वस्थ लोग और प्रसन्न हैं। परंतु अनेक व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिन के पास स्वास्थ्य, धन तथा आप जो कल्पना कर सकते हैं वह सब है, किंतु वे तब भी उदास हैं, और उन के लिए जीवन एक संघर्ष है।

सत्य तो यह है कि जीवन ऐसा ही होता है। हर किसी के लिए। व्यक्ति जब तक किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कर्म कर रहा हो, उसे बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। कुछ व्यक्ति इन बाधाओं को चुनौती समझ कर उनका सामना करते हैं, परंतु कुछ उन्हें संघर्ष के रूप में देखते हैं। लोग बदल सकते हैं, परिस्थितियां अधिक अनुकूल बन सकती हैं, परंतु इस का यह अर्थ नहीं कि चुनौतियां समाप्त हो जायेंगी। बाधाएं सदैव रहेंगी। मैं यह जान गया हूँ कि लोग जब संघर्ष के विषय में बात करते हैं, वे अधिकतर चुनौतियों की बात कर रहे हैं। हम किसी समस्या को अवसर समझते हैं या बाधा, यह तो हमारे मानसिकता तथा व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर है। चलिए आप को एक दिलचस्प कहानी बताता हूँ -

एक व्यक्ति ने अपने घर के आँगन में एक पेड़ पर एक तितली का कोया (कोकून) देखा। उसने अगले कुछ दिनों तक प्रतिदिन उसे परखा। एक दिन उस ने कोया के भीतर एक सुंदर इल्ली को देखा। वह डिम्ब में थी। व्यक्ति ने बहुत समय के लिए इल्ली को डिम्ब में संघर्ष करते हुए देखा। प्रतिदिन उसने यह संघर्ष देखा, परंतु जैसे जैसे दिन बीतने लगे इल्ली थोड़ा थोड़ा बाहर आने लगी और उसके शरीर पर पंख आने लगे। कोया बढ़ते हुए डिम्ब के लिए छोटा लगने लगा।

उस व्यक्ति से यह संघर्ष देखा ना गया और उसने तितली की सहायता करने का निर्णय किया। उसने कोये को काट कर खोल दिया और तितली आसानी से बाहर आ गई। परंतु वह सीधे भूमि पर गिर गयी। उसके शरीर में सूजन हो गयी और उसके पंख सूख गए। व्यक्ति वहाँ बैठे तितली को देखने लगा और यह आशा करने लगा कि वह उड़ने लगेगी, परंतु ऐसा कभी नहीं हुआ। वह अपने फूले हुए शरीर के साथ असहाय होकर चारों ओर रेंगने लगी। उस के पंख पूरी तरह से विकसित नहीं हुए थे और इस लिए वह कभी उड़ नहीं सकी। कुछ समय के उपरांत उस की मृत्यु हो गयी। उस व्यक्ति ने जिसे संघर्ष समझा वह वास्तव में तितली को तैयार करने का प्रकृति का मार्ग था।

हमारे संघर्ष ही हमारे व्यक्तित्व को रूप प्रदान करते हैं। मैं यह नहीं कह रहा कि सभी संघर्ष अच्छे होते हैं, परंतु क्या यह वास्तव में ही संघर्ष हैं? एक पहलवान अपने शरीर को कैसे सशक्त करता है? भार उठा कर ही वह अपने मांसपेशियों को सशक्त करता है। वह वजन उठाने को एक संघर्ष मान सकता है या एक लाभप्रद कार्य समझ सकता है। उस की मन की स्थिति उस के दृष्टिकोण पर ही निर्भर है। और अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि परिणाम उसकी मानसिकता पर ही निर्भर है।

प्रकृति का विकास चुनौतियों द्वारा हुआ है। प्रकृति आप को भी आप की क्षमता के आधार पर लगातार चुनौतियां देगी। आप उन चुनौतियों के परिमाण को कम नहीं कर सकते हैं। यदि आप में कोई क्षमता है तो प्रकृति उसे बाहर लेकर ही आयेगी। हम ब्रह्मांड के सबसे मुख्य व्यक्ति नहीं हैं, केवल प्रकृति की भव्य योजना के एक छोटे से तत्व हैं। परंतु हाँ उन चुनौतियों की प्रबलता, आवृत्ति एवं संख्या को कम कर सकते हैं। कैसे? अपने जीवन को सरल बनाएं। जीवन की अव्यवस्था को कम करें। यदि सरलता का जीवन जिएंगे तो प्रतिकूल परिस्थितियों को संघर्ष कभी नहीं मानेंगे। मैं यह नहीं कह रहा कि आप हर चुनौती को एक अवसर मान कर स्वीकार करेंगे। परंतु आप चुनौती  द्वारा विचलित भी नहीं होंगे।

जीवन एक सीधी सड़क हो सकती है, परंतु बिना ऊबड़ खाबड़ के नहीं। यात्रा के कुछ पहलू सहज हो सकते हैं, परंतु आप को जागरूक एवं सतर्क रखने के लिए यह अस्त व्यस्त भी होगी। आप यात्रा का आनंद लें। कल्पना करें कि आप सड़क के किनारे खड़े हैं और जीवन के क्षण तीव्र यातायात के समान गुज़र रहे हैं। जीवन किसी के लिए रुकता नहीं है, यह किसी की आलोचना या प्रशंसा सुनने के लिए ठहरता नहीं है। हमारी पृथ्वी या अन्य ग्रह एक पल के लिए भी घूर्णन या परिभ्रमण करना रोकते नहीं हैं अथवा उनका अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है। प्रकृति की यह जटिल, अन्योन्याश्रित एवं आकर्षक प्रणाली कभी रुकती नहीं है। जीवन कभी ठहर जाए यह संभव ही नहीं। यदि आप इस का आनंद लेना चाहते हैं, तो आप को इसके उतार चढ़ाव का साहसपूर्वक सामना करना होगा।

जीवन बुलबुले के समान है - वास्तविक एवं अनित्य। इस से पहले कि यह नष्ट हो जाए, इस का सम्पूर्ण आनंद लें।
(Image credit: Allison J. Bratt)
शांति।
स्वामी


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