तनाव से निपटना

एक आदमी कभी भी तनावग्रस्त नहीं रहता था, और उसके सभी पड़ोसी इस बात से चकित थे। और जानने के लिए यह वार्ता पढ़ें।
हमारी दुनिया कभी कभी एक तनावपूर्ण जगह हो सकती है। हमने इसे कुछ अधिक जटिल एवं द्रुत बना दिया है। लोगों की अपेक्षा यह है कि सब कुछ तुरंत हो जाना चाहिए। मानव दक्षता को अब दिन, सप्ताह और महीनों के स्थान पर घंटे, मिनट तथा क्षणों में जांचना शुरू कर दिया गया है। क्या ऐसा करना आवश्यक है? यह हमारे शारीरिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और इसने हमारे जीवन में तनाव को और बढ़ा दिया है। आप एक झटके में अचानक पूरी दुनिया को तो नहीं बदल सकते। वास्तव में, आप स्वयं में भी एक झटके में परिवर्तन नहीं ला सकते। परंतु आप अपने जीवन, अपनी यात्रा तथा अपनी प्राथमिकताओं पर चिंतन अवश्य कर सकते हैं और अपने जीवन की गति निर्धारित कर सकते हैं। एक ऐसी गति जिस से आप को सुख एवं आंतरिक शांति प्राप्त हो। कहा जाता है कि पॉर्श ऑटोमोबाइल का मुख्य इंजीनियर एक बार उत्साहपूर्वक डॉ. फेरी पॉर्श (कंपनी के मुख्याधिकारी) के पास पहुँचा और उनसे कहा कि उसने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वाहन की रचना की है।

“वह कैसे?” डॉ. पॉर्श ने पूछा।
“क्योंकि, इस का त्वरण दुनिया के अन्य सभी वाहनों से अधिक है।”
“उस से यह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ वाहन नहीं बन जाता। जिस दिन तुम्हारा वाहन उसी गति से रुक पाता है जिस तीव्रता और त्वरण से वह आगे बढ़ता है, तब मेरे पास लौट कर आना। तीव्रता से आगे बढ़ना उत्तम है परंतु तीव्रता से गति को रोकना उस से भी बेहतर होता है।”

वास्तव में यह एक मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकता है - क्या आप सही गति से जा रहे हैं? जब आप को रुकने की आवश्यकता हो तब क्या आप स्वयं को रोक सकते हैं? आप संभवत: और तीव्र गति से जा सकते हैं, परंतु क्या आप को उस की आवश्यकता है? यदि आप अपनी गति के साथ संतुष्ट हैं, तो दुनिया की गति की आप को चिंता नहीं होनी चाहिए। जब आप दूसरों के अनुसार अपनी गति को बदलने का प्रयास करते हैं तब ही आप अपना संतुलन खो देते हैं। परंतु समाज में जीने के लिए क्या अन्य व्यक्तियों के अनुसार जीवन की गति बदलना आवश्यक नहीं है? कदापि नहीं क्योंकि वे स्वयं भी आप को देखकर अपनी गति को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। गति को धीमी करने का यह अर्थ नहीं कि आप अपने अनुशासन या आकांक्षा को त्याग दें अथवा आप नौकरी से लम्बा अवकाश ले कर दुनिया के एक दौरे पर निकल पड़ें (हाँ यदि आप की ऐसी इच्छा हो तो आप अवश्य कर सकते हैं)। गति धीमी करने का अर्थ है वर्तमान क्षण में रहना, उस पर ध्यान देना। मानसिक तनाव को दूर करने का यही सबसे निपुण प्रतिविष है। सही निर्णय करने हेतु आप का यह जानना आवश्यक है कि आप का उद्देश्य क्या है और क्यों आप उस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं। 

जब आप हर क्षण पर ध्यान देने लगते हैं तब आप स्वाभाविक रूप से वर्तमान क्षण में जीने लगते हैं। और वर्तमान में जीना ही आंतरिक शांति का आधार है। यही सत्य है। मुझे एक कहानी याद आती है -

एक छोटे से गांव में एक सुखी परिवार रहा करता था। वह परिवार एक ऐसे पुरुष का था जो ना कोई धनी व्यापारी था ना ज़मीनदार, केवल एक साधारण लोहार जो अन्य गृहस्थियों के समान कईं चुनौतियों का सामना करता था। उसके पड़ोसी इस बात से चकित थे कि उस घर में कभी कोई लड़ता नहीं था अथवा बहस नहीं करता था। जब लोहार घर पहुँचता था तो सबसे पहले घर के आँगन में एक वृक्ष की एक शाखा को पकड़ कर उस की पूजा करता था फिर घर में प्रवेश कर के अपने बच्चों के साथ प्रसन्नता से खेलता था। चाहे वह जितना भी तनावग्रस्त घर आता शाखाओं को छूते ही ऐसा खिल उठता मानो उसने कोई दूसरा रूप धारण कर लिया हो। कईं पड़ोसियों ने अपने घरों के बाहर भी वैसा ही एक वृक्ष लगाया तथा उस लोहार की शैली को भी अपनाया परंतु उनके हालात ना बदले। एक दिन, उनसे और रहा ना गया और उन्होंने उस से पूछा -
“आप किस प्रकार सदैव घर के अंदर प्रसन्न रहते हैं? आप तो पर्याप्त धन भी नहीं कमाते हैं फिर भी आप घर में बहस भी नहीं करते। उस वृक्ष को छूते ही आप अति प्रसन्न एवं उज्ज्वल हो जाते हैं। कृपया हमें वृक्ष का रहस्य बताएं।”
लोहार हँसने लगा। “वृक्ष का कोई रहस्य नहीं है,” उसने कहा। “घर में प्रवेश करने से पहले, मैं वृक्ष की एक शाखा को पकड़ कर अपने सभी दैनिक समस्याओं का एक काल्पनिक थैला उस शाखे पर लटका देता हूँ। मैं यह कभी नहीं भूलता कि मैं पूरे दिन बाहर था ताकि मैं अपने घर के अंदर प्रसन्न रह सकूँ। मैं कभी अपनी बाहरी समस्याओं को घर के अंदर नहीं ले जाता हूँ। इसलिए प्रतिदिन मैं थैले को बाहर लटका कर ही घर में प्रवेश करता हूँ। इतना ही नहीं हर दिन सुबह मैं उस थैले को अपने साथ काम पर लेकर जाता हूँ।”
“आप ऐसा क्यों करते हैं?”
“क्योंकि बाहरी दुनिया में मुझे अब भी उन समस्याओं का सामना तो करना ही होगा। परंतु दिलचस्प बात यह है कि सुबह सदैव मेरा थैला स्वयं ही और हलका लगता है। अधिकतर समस्याएं रात के अंधेरे में खो जाती हैं।”

आप बाहर जाकर नौकरी क्यों करते हैं? ताकि आप घर में एक आरामदायक एवं शांतिपूर्ण जीवन जी सकें, है ना? माना कि कभी कभी घर में भी जीवन जटिल हो सकता है परंतु फिर भी आप बाहर की समस्याएं बाहर ही छोड़ सकते हैं। यह है वर्तमान में जीना। क्या अधिकतर ऐसा नहीं होता कि मनुष्य की अधिक पाने की तथा अधिक सम्पत्ती प्राप्त करने की इच्छा बाहरी वस्तुओं को देखने से प्रभावित होती है? और तो और इन महत्वाकांक्षाओं एवं इच्छाओं के कारण आप ना तो अपने भोजन का आनंद ले पाते हैं ना अपने प्रियजनों के साथ चैन से समय बिता पाते हैं। जब आप अपने साथी के साथ समय बिताने का प्रयास करते हैं, तब आप या तो नौकरी के विषय में सोचने लगते हैं अथवा यह सोचने लगते हैं कि आप के पास क्या वस्तु एवं सम्पत्ति होनी चाहिए। नौकरी पर आप उत्तम रूप से काम करना चाहते हैं ताकि आप और धन अर्जित कर सकें तथा आप अपने और अपने परिवार के साथ और अधिक आनंदमय समय बिता सकें। परंतु जब परिवार के साथ आनंदमय समय बिताने का समय आता है तब नौकरी के विषय में विचार उन क्षणों को नष्ट कर देते हैं।

परंतु क्या आप इस से बच सकते हैं? अवश्य। अपनी प्राथमिकताओं को लिख लें और उन की नियमित रूप से समीक्षा करें। हो सकता है कि आप की बाहरी दुनिया ना बदले। लोग आप को भावनात्मक रूप से थकाते रहेंगे, नौकरी पर तनाव अत्याधिक रहेगा, टीवी पर बुरी खबरें आती रहेंगी, दुनिया के पतन का कोई अंत नहीं दिखाई देगा, महँगाई कभी कम नहीं होगी - परंतु यदि ऐसे में आप शांति का अनुभव करना चाहते हैं तो आप को अपनी सोच तथा अपने विचारों पर ध्यान देना होगा। आप के जीवन में, आप के मन में, आप को एक ऐसा स्थान बनाना होगा जिस में केवल आप निश्चित करते हैं कि क्या और कौन उस में प्रवेश करता है। इस प्रकार अपने आप को बुरे विचारों से सुरक्षित रखें। यह एक कला है। तनाव एक प्रतिक्रिया है एक भावना नहीं। किसी समस्या का सामना करने के लिए आप स्वयं इस प्रतिक्रिया को चुनते हैं।

यदि आप के पास कोई बोझ है, इस का यह अर्थ नहीं कि उसे सर पर उठाए चारों ओर ले कर चलना आवश्यक है। बोझ को नीचे उतार कर भी रखा जा सकता है। जीवन में आप को जो बोझ दुख पहुँचा रहा है उस को उतार कर नीचे रख दें। वास्तव में मनुष्य स्वत: तनाव का शिकार नहीं बन जाता, वह स्वयं ही तनाव का चयन करता है।

शांति।
स्वामी


क्या हम बुरे माता पिता हैं?


बच्चों की परवरिश की निश्चित रूप से कोई उचित अथवा अनुचित विधि नहीं होती है। निश्चिंत रहें।
मैंने कब और क्या गलती की? मैं अपने बच्चों को कैसे समझाऊँ कि मैंने बहुत प्रयत्न किया? कैसे मनाऊँ कि मैं एक बुरा अभिभावक बनना नहीं चाहता था? कैसे समझाऊँ कि मैंने उन्हीं को प्राथमिकता दी और उन्हीं का हित चाहा? प्राय: मैं ऐसे माता-पिता से मिलता हूँ जिन को ऐसा प्रतीत होते है कि सालों साल उनकी इच्छाओं का बलिदान देकर भी उन्होंने अपनी संतान की उत्तम परवरिश नहीं की है। उन्हें लगता है कि उन का कोई तो दोष है। उन को ऐसा प्रतीत होता है कि वे बुरे माता-पिता रहे हैं (प्राय: उनकी संतान ने उन्हें यह विचार दिया है)। मैं देखता हूँ कि वे अत्यन्त व्याकुल हैं क्योंकि उनके बच्चों ने इशारों एवं शब्दों के माध्यम से उन्हें समझाया है कि वे अच्छे माता या पिता नहीं हैं।

मैं इस बात से सहमत हूँ कि कई परिवार तनाव के कारण खंडित होते हैं। निस्संदेह कभी कभी माता-पिता लापरवाह होते हैं विशेष रूप से वे जो अपनी संतान के साथ भावनात्मक या शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार करते हैं। भावनात्मक दुर्व्यवहार कई प्रकार के हो सकते हैं, उदाहरणार्थ संतान के माध्यम से स्वयं की आकांक्षाओं को जीने का प्रयास करना अथवा बच्चों का तिरस्कार करना तथा उन्हें नीचा दिखाना। परंतु मैंने जहाँ तक देखा है अधिकतर परिवारों मैं ऐसा नहीं है। ये सब भले परिवार हैं जहाँ माता-पिता बच्चों तथा एक दूसरों की देखभाल करते हैं तथा अक्सर आवश्यकता से अधिक संतान की देखभाल कर उत्तम माता-पिता बनने का भी प्रयास करते हैं। फिर भी उनके बच्चे प्रसन्न नहीं हैं। उनके अनुसार उनके माता-पिता उनकी अच्छी परवरिश नहीं कर रहे हैं। वे बार-बार दूसरों के माता-पिता का उदाहरण देते हैं यह कहते हुए कि वास्तव में दूसरों के माता-पिता ही उत्तम हैं। माता-पिता भी अपनी संतान की बातों का विश्वास करने लगते हैं।

मैं आप को एक दिलचस्प तथ्य बताता हूँ। वे युवा जो आलसी होते हैं तथा लापरवाही से जीवन व्यतीत करते हैं वे ही सर्वप्रथम अपने माता-पिता को अथवा अपनी परवरिश को दोष देते हैं। उदाहरणार्थ यदि एक भले परिवार में चार बच्चे हैं जिसमें से दो जीवन में सफल अथवा सकारात्मक रहते हैं, वे कभी ऐसा नहीं कहते कि उनके माता-पिता ने उनका जीवन नष्ट कर दिया है। उस परिवार के अन्य दो बच्चे जो व्यावसायिक या व्यक्तिगत जीवन में गंभीर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं वे यह सोचते हैं कि उनके माता-पिता के कारण वे असफल रहे हैं।

एकल माता या पिता द्वारा परवरिश किये गये कई बच्चे कहते हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें हताश किया क्योंकि वे साथ नहीं रह सके। जो साथ में रहते हैं उन की संतान शिकायत करती है कि उनके माता-पिता लड़ते रहते हैं और वे अलग रहते तो बेहतर होता। विनम्र एवं कोमल माता-पिता को संतान कहती है कि वे दृढ़ या महत्वपूर्ण निर्णय नहीं ले पाते थे। जो माता-पिता अपने बच्चों के लिए सदा उपस्थित रहे वे बच्चे मुझसे कहते हैं कि उनके माता-पिता सदैव उनकी निरीक्षण करते रहते हैं। जिन माता-पिता ने अपने बच्चों को स्वतंत्रता एवं छूट दी उनकी संतान यह कहती है कि उनके माता-पिता ने उनकी निरीक्षण नहीं की और उन्हें सुरक्षित नहीं रखा।
   

हर माता या पिता इस कभी न जीतने वाले प्रतियोगिता के अनिच्छुक प्रतियोगी हैं। यदि अपनी बेटी को पियानो के पाठ अवश्य लेने की मांग करो तो बाद में वह शिकायत करेगी कि आप ही के कारण पियानो के प्रति उस का प्रेम नष्ट हो गया। उसके पियानो की शिक्षा को बंद करने की अनुमति दो क्योंकि वह अभ्यास नहीं करना चाहती तो बाद में वह शिकायत करेगी कि आप को उस पर दबाव डालना चाहिए था कि वह पियानो अवश्य सीखे - क्योंकि अब वह बिल्कुल पियानो नहीं बजा सकती। अपने पुत्र का दोपहर के हीब्रू स्कूल अवश्य जाने की मांग करो और वह आप को दोष देगा कि आप ने उसे एक सफल खिलाड़ी बनने से रोक दिया। अपने पुत्र को हीब्रू स्कूल को छोड़ने की अनुमति दो और वह बाद में अपनी संस्कृति के विषय में न जानने के लिए आप को दोष देगा। बेट्सी पीटरसन ने “डेनसिंग वित डेडी” नामक अपनी जीवनी में उसके माता पिता को केवल तैराने, ट्रेमपोलिन, घुड़सवारी तथा टेनिस की शिक्षा देने के लिए किन्तु बेले नृत्य की शिक्षा ना देने के लिए दोष दिया है। उसने लिखा कि “वे मुझे वह एक ही वस्तु नहीं देते जो मैं चाहती थी”। अपने माता पिता को दोष देना एक लोकप्रिय एवं सुविधा जनक कार्य है क्योंकि वह लोगों को उनकी कमियों से जूझने में मदद करता है।
(कैरल टेवरिस और इलियट आरन्सन। मिस्टेक्स वेर मेड (बट नाट बय मी)।)   


यदि आप ऐसी संतान हैं जो अपनी जीवन शैली एवं स्थिति के लिए अपने माता या पिता को उत्तरदायी मानते हैं तो आप को संभवतः अपने बचपन में किए गए चुनावों पर विचार करना चाहिए। अपने अतीत पर पुनर्विचार करना चाहिए तथा आप किस प्रकार के मित्रों के साथ समय बिताते थे उस के विषय में सोचना चाहिए। यदि आपने कोई गलती की है तो उसे स्वीकार करें तथा अपने माता या पिता को सब कुछ के लिए दोष ना दें। आत्म स्वीकृति स्वयं के जीवन के अभाव के उपर उठने में आप की सहायता करेगी। अपनी कमियों की घोषणा करने की आवश्यकता नहीं है। आप को केवल उन्हें स्वीकार करना है ताकि आप को मानसिक शक्ति मिले और जीवन में अागे बढ सकें।

यदि आप एक माता या पिता हैं और आप की संतान उनके जीवन में आने वाली हर समस्या के लिए आप को उत्तरदायी मानती है तो इस का अर्थ यह नहीं कि आप वास्तव में एक बुरे माता या पिता हैं। इस का अर्थ यह है कि वे अपने जीवन को समझने एवं सुधारने के बजाय स्वयं के लिए गए निर्णय और विकल्पों का दोष दूसरों को दे रहे हैं। स्वयं को विद्वेष, पछतावा अथवा अपराध बोध की भावना से मुक्त करें। और यदि आप को यह प्रतीत होता है कि वास्तव में आप ने कोई भयानक पाप किया है (आप की संतान के कहने के आधार पर नहीं परंतु आप के स्वयं की जानकारी के आधार पर) तो क्षमा माँग कर आगे बढ़ें क्योंकि हम अतीत को बदल नहीं सकते। यदि आप ने एक भूल की है तो इसका यह अर्थ नहीं कि आप की संतान के जीवन की हर अवांछनीय समस्या उस भूल का ही परिणाम है।

एक समय की बात है कुछ अतिथि भोजन के लिए घर आये। मेज पर जब सब खाने के लिए बैठे एक छ: वर्ष की बच्ची की माँ ने उस से कहा, “तुम भोजन के पहले प्रार्थना करना चाहती हो?”
“परंतु, मुझे क्या कहना है यह पता नहीं!”
“मैं जो कहती हूँ केवल वही कहो,” माँ ने कहा।
“हे भगवान! मैंने इन लोगों को खाने पर क्यों बुलाया!” भोलेपन में लड़की ने कहा।

यह अत्यंत महत्वपूर्ण है - यदि आप चाहते हैं कि आप की संतान किसी विशिष्ट विधि से अपना जीवन जिए तो यह आवश्यक है कि आप पूरे दिल से उसी प्रकार का जीवन जिएं। यदि वे यह देखें कि आप उस प्रकार का जीवन जीते हुए बहुत प्रसन्न रहते हैं तो स्वत: ही वे भी आप के जीवन की विधि से आकर्षित हो जाएंगे। आप को जिस कार्य करने में आनंद आता है वे भी उसी कार्य को करने लगेंगे। कभी कभी यह विधि भी सफल नहीं होती है क्योंकि हर व्यक्ति अलग होता है। परंतु चिंता ना करें, यह सामान्य बात है।

संतान की परवरिश में निश्चित रूप से कोई उचित अथवा अनुचित मार्ग नहीं होता है। प्रकृति हमें कुछ छूट देती हैं। कुछ भूल करने की या गलत विकल्प या बुरे निर्णय लेने की अनुमति देती है। यह तो मनुष्य के लिए स्वाभाविक है। हमारे जीवन की सुन्दरता हमारी कमियों, हमारी विशिष्टता, हमारी गलतियों तथा हम जो समझ नहीं पाते उस में है। यदि उस समय आप को लगा कि आप ने जो किया वह उचित था परंतु तत्पश्चात उसका परिणाम प्रतिकूल निकला तो परेशान ना हों क्योंकि वह केवल एक भूल थी। अपने आप को क्षमा करें।

आप केवल अपनी संतान का मार्गदर्शन कर सकते हैं। आप केवल पालन-पोषण कर सकते हैं। अंत में बच्चों को ही श्रम करना होगा। उन्हीं को सही मार्ग पर चल कर अपने जीवन को सही ढंग से जीना होगा। यदि आपने पूरे दिल से उन्हें प्रेम किया और पूरी क्षमता अनुसार उनका पालन-पोषण किया तो मेरा विश्वास कीजिए आपने सब सही किया।

शांति।
स्वामी




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