निर्णय लेना

यदि आप तैरना सीखना चाहते हों, तो कभी ना कभी तो आप को पानी में कूदना ही पड़ेगा। और कोई दूसरा रास्ता है ही नहीं।
क्या आप को निर्णय लेने में कठिनाई होती है? मेरे विचार में यह एक मानसिक दुर्बलता के समान है। जो व्यक्ति किसी विकल्प को चुनने से हिचकिचाते हैं वे अक्सर अपने निर्णय को स्थगित करते रहते हैं। कईं लोगों की एक गलत धारणा है कि आप एक निर्णय को लेने में जितना अधिक समय लेते हैं निर्णय उतना ही बेहतर होता है। मैं आप को आवेगी बनने का परामर्श नहीं दे रहा हूँ, परंतु सदा के लिए प्रतीक्षा करना तो निःसंदेह मंदबुद्धि है।

जीवन के हर कदम पर हमे किसी प्रकार का चुनाव करना पड़ता है। यदि आप विचार करें तो यह जानेंगे कि यह सही या गलत विकल्प की बात नहीं है। सत्य यह है कि आप को अपने निर्णय के परिणाम का सामना करने का उत्तरदायित्व लेना होगा। आप सदा के लिए चिंतन करते रह सकते हैं तब भी संभव है कि अंत में आप का निर्णय सही ना हो। वास्तव में जब आप निर्णय लेते हैं तब यह जानना संभव ही नहीं कि आप का निर्णय सही है या गलत। परिणाम के फलस्वरूप ही आप यह जान पाएंगे।

आप कैसे निर्णय लेते हैं?
लगभग हर निर्णय के तीन कारण होते हैं - इच्छा, भय एवं बाहरी प्रभाव। अधिकतर आप का निर्णय इस पर निर्भर होता है कि निर्णय के क्या लाभ तथा हानि हैं। यदि लाभ की इच्छा हानि के भय से अधिक है तो आप लाभ के पक्ष में चुनाव करेंगे। निर्णय नहीं लेना भी अपने आप में एक निर्णय है। लाभ एवं हानि के अतिरिक्त, समाज, धर्म, संस्कृति द्वारा प्रभावित होने का भी निर्णय लेने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। लोग क्या सोचेंगे? दूसरों की राय आप के निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं, विशेष रूप से यदि आप उनको पहचान ने में तथा परखने में सतर्क ना हों।

भविष्य की अस्थिरता को पूर्ण रूप से जानना एवं परखना असंभव है। वास्तव में यह प्रयास करना ही मंदबुद्धि है। जब आप एक निर्णय लेते हैं, आप को जिन विषयों का ज्ञान हो उसके आधार पर निर्णय लें। यदि आप के निर्णय द्वारा आप को अनुकूल परिणाम प्राप्त होता है तो आनंदित हो जाएं। परंतु यदि परिणाम प्रतिकूल हो, तो अपने आप को याद दिलाएं कि इस विकल्प को आप ने स्वयं चुना है और इसलिए परिणाम को भुगतने के लिए आप को तैयार होना चाहिए। यह इतनी निराशाजनक बात नहीं है - ऐसा नहीं है कि कोई प्रलय आ गया हो। यह संभव ही नहीं कि आप सदैव ऐसे ही निर्णय लें जिनसे आप को अपेक्षित परिणाम मिले। चाहे आप जितने भी बुद्धिमान या प्रवीण क्यों ना हों, यह स्वाभाविक है कि कुछ निर्णय गलत होंगे।

किसी भी निर्णय के पहले अपने आप से दो प्रश्न पूछें -
1. मैं यह निर्णय क्यों ले रहा हूँ?
2. क्या मैं अपने निर्णय की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हूँ?
आप के हर चुनाव का एक परिणाम होगा। आप जब तक अपने विकल्पों की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं, जीवन आप को और बेहतर चुनाव करने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करेगा।

पुनरावलोकन का जाल
जब हमारे विकल्पों द्वारा हमे अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते हैं तो यह स्वाभाविक है कि हम सोचते हैं कि हमे ऐसा करना चाहिए था या हम ऐसा कर सकते थे। आप के अंदर एक ऐसा विचार आने लगता है कि आप को सही विकल्प चुनना चाहिए था, या आप को उस की बात सुन लेनी चाहिए थी जो आप को सही सलाह दे रहा था, या आप को कुछ देर और विचार करना चाहिए था। मैं इसे पुनरावलोकन का जाल कहता हूँ। वास्तव में आप ने उस समय उस स्थिति में सबसे अच्छा विकल्प चुना। पुनरावलोकन करने पर ऐसा ही प्रतीत होता है कि निर्णय कुछ और होना चाहिए था। सत्य तो यह है कि आप का जीवन एक वाहन को रिवर्स गियर में चलाने के समान नहीं है, और इस लिए जब वाहन आगे जा रहा है तब आप की निगाहें पश्चदर्शी दर्पण पर जमी नहीं रह सकतीं।

अपने निर्णय की स्वीकृति सड़क पर वाहन चलाने के समान है। आप कभी कभी पश्चदर्शी दर्पण को जांचते हैं, आसपास की यातायात पर ध्यान देते हैं, संभवतः लेन भी बदलतें हैं, परंतु सदैव अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ते रहते हैं। शंका एवं संदेह तो अवश्य आएंगे। यह तो स्वाभाविक है। आप को अपने आप से यह कहना है कि “मुझे जितना ज्ञान है उसके आधार पर मैं सबसे अच्छा विकल्प चुन रहा हूँ”।एक दशक पहले मैं ने एक बहुत अच्छी पुस्तक पढ़ी थी “Who Moved My Cheese”। आप इसे मुफ़्त में यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं।

“परीक्षा में आप को जो अंक मिले हैं उस से यह तो स्पष्ट है कि आप भूगोल का बिल्कुल भी अध्ययन नहीं कर रहे हैं!” शिक्षक ने कहा, “इस के लिए आप क्या बहाना बनाना चाहते हैं?”
"मेरे पास कोई बहाना नहीं है,” शिष्य ने कहा, "मेरे पिता कहते हैं कि यह दुनिया बदलती रहती है। तो मैं ने सोचा कि मैं दुनिया के पूर्ण परिवर्तन के बाद अध्ययन प्रारंभ करूं।”

अनंत काल तक प्रतीक्षा ना करें। उतने समय बाद तो आप किसी और चुनौती का सामना कर रहे होंगे। यदि आप कुछ करना चाहते हैं, तो आगे बढ़ें और उसे कर डालें। केवल कार्य करने से ही परिणाम उत्पन्न होता है। यदि आप केवल विचार एवं आयोजन ही करते रहें तो आप एक अंतहीन पथ पर चलते रहेंगे जिस में यात्रा का कोई सुख प्राप्त नहीं होगा। ऐसे पथ पर ना कोई मार्गदर्शन प्राप्त होगा ना गंतव्य तक पहुँचने का आनंद मिलेगा। केवल निरर्थक शब्द और खोखली योजना।

यदि आप तैरना सीखना चाहते हों तो कभी ना कभी आप को पानी में उतरना ही होगा। इस के अतिरिक्त अन्य कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है। कोई आप का मार्गदर्शन कर सकता है, आप शुरुआत में किसी तैराकी उपकरण का उपयोग कर सकते हैं, परंतु अंत में आप को स्वयं ही प्रयास करना होगा।

गलत निर्णय लेना कोई पाप नहीं है। अपनी गलती को स्वीकार करें तथा भविष्य में उसे सुधारने का प्रयत्न करें। परंतु इस के लिए अपने आप को दण्ड ना दें। अतीत में लिए गए निर्णय को आप बदल नहीं सकते। ऐसे निर्णय तो समझो मृत होते हैं। और भविष्य में जो आप निर्णय करने वालें हैं उनके विषय में भी चिंतित ना हों। वास्तव में केवल वर्तमान ही सत्य है, तथा इस संदर्भ में केवल वर्तमान का ही महत्व है। अतीत एवं भविष्य के विषय में सोच कर आप केवल परेशान ही होंगे।
(Image credit: Tim Bouckley)
शांति।
स्वामी




चार ऋतुओं के समान जीवन

जीवन चार ऋतुओं के चक्र समान है। हर ऋतु निर्धारित रूप से अपने समय पर आती है और उसकी अवधि समाप्त होते ही स्वयं चली जाती है, जैसे मानव मन में एक विचार का अंत होते ही अगला विचार तुरंत प्रकट हो जाता है। चार ऋतुओं में आप प्रकृति का हर रंग देख सकते हैं - ठंड में सिकुड़ना, शरद ऋतु में झड़ना, गर्मियों में खुलना तथा वसंत में खिलना। ऐसा प्रतीत होता है कि हम जिस ऋतु को नापसंद करते हैं वह बहुत लंबी अवधि के लिए चलती है। वसंत में फूल खिलते हैं और वर्षा ऋतु में बारिश होती है। तापमान सर्दियों में गिर जाता है और गर्मियों में तापमान ऐसे उठता है मानो सांस में प्राण की स्थिति से प्रभावित होकर चेतना उठ रही हो। यह एक निर्धारित प्रणाली है - आप चाहे पसंद करें या ना करें।

इसी प्रकार हम जीवन के विभिन्न रंगों का अनुभव करते हैं। आप शरद ऋतु के पश्चात वसंत का अनुभव करते हैं या वसंत के पश्चात शरद ऋतु का यह इस पर निर्भर करता है कि आप वर्ष के किस महीने में पैदा हुए। क्या आप वर्ष के अधिकांश भाग में सुखद धूप का आनंद लेते हैं या कड़कड़ाती ठंड का सामना करते हैं यह इस पर निर्भर करता है कि आप कहां रहते हैं। आप मौसम का सामना करना सीख जाते हैं - सर्दियों में अपने को ढक कर और बरसात में छाता का उपयोग कर कर। वैसे देखा जाए तो हम सदैव मौसम से स्वयं को बचाने का प्रयत्न करते हैं। प्रकृति के साथ एक होने का अर्थ है उसकी हर देन को स्वीकार करना तथा उस का आनंद लेना। कभी कभी आप बारिश का आनंद लें, उस में भीगें - संभवतः वह ईश्वर का ही अनुग्रह हो जो आप पर बरस रहा हो। ठंड का भी अनुभव करें - यह आप को और दृढ़ बनायेगा।

जब कठिनाईयों के सूर्य द्वारा आप के जीवन में असहनीय भीषण गर्मी हो जाए, तो संभवतः आप को एक ठंडी जगह जाने पर विचार करना पड़े। जीवन जब शरद ऋतु के वीरान पेड़ के प्रकार उदासीन लगे, तो आप को संभवतः सब्र करना पड़े। वसंत की प्रतीक्षा करें या दुनिया के ऐसे हिस्से में चले जाएं जहाँ शरद ऋतु ना हो। परिवर्तन तो निरंतर होता ही रहेगा। यह छोटी मात्रा में होता है, जिस प्रकार भारी वर्षा भी पानी की छोटी बूंदों के द्वारा ही निर्मित होती है। परंतु ऐसा हो सकता है कि यह वह परिवर्तन नहीं जिस की आप को प्रतीक्षा है। यदि आप किसी प्रकार का परिवर्तन चाहते हैं तो आप को उसके अनुसार कदम उठाने होंगे। वास्तव में, यदि आप परिवर्तन चाहते हैं तो आप को स्वयं ही वह परिवर्तन आरम्भ एवं पूर्ण करना होगा। एक उग्र निर्णय द्वारा आप एक विशाल परिवर्तन ला सकते हैं, परंतु एक सामान्य निर्णय द्वारा केवल एक छोटे से परिवर्तन की ही आशा की जा सकती है।

दूसरा विकल्प यह है कि आप स्वयं के भीतर झांक कर देखें और यह जानने का प्रयत्न करें कि सभी सांसारिक वस्तुओं का अनुभव केवल एक अल्पकालिक शारीरिक अनुभव है। आप के भीतर परमानंद कूट कूट कर भरा है। यह एक अनंत महासागर के समान है। इस में आप सदैव सुरक्षित और आनंदित रह सकते हैं - हर प्रकार के मौसम और विचलन से पूरी तरह सुरक्षित। बाहर शरद ऋतु ही क्यों ना हो, किंतु भीतर की दुनिया में आप सदैव वसंत ऋतु का आनंद ले सकते हैं। अनगिनत प्रकार के सुंदर फूलों को अनाहत नाद की मधुर ध्वनि पर नाचते हुए देख सकते हैं। भीतर के संसार में ना तो कठोर ठंड है ना असहनीय गर्मी, सदैव सही तापमान और एक अवर्णनीय सौंदर्य!

छुट्टी के लिए तैयार हो जाएं ! भीतरी सुख सागर की यात्रा पर निकल जाएं। रास्ता दिखाने में मैं आप की मदद कर सकता हूँ। मुझे विश्वास है कि गंतव्य पर पहुँचने पर आप को कभी लौट के आने की ना तो इच्छा होगी ना आवश्यकता।

सुख के महासागर में स्कूबा डाइविंग के लिए तैयार हो जाएं!

शांति।
स्वामी



सहिष्णुता का अभ्यास

जब आप एक वृक्ष पर पत्थर फेंकते हैं, वह ना केवल पत्थर को अस्वीकार कर देता है, बदले में वह आप को एक फल भी देता है। भावनाओं के  ऐसे पत्थर मन में ना रखें।
पिछली पोस्ट में मैं ने संक्षेप में सहिष्णुता की कला के विषय में लिखा था। आज मैं सहिष्णुता के वास्तविक अभ्यास पर विस्तार रूप से लिख रहा हूँ। इन विधियों को अपना कर आप स्वयं को भावनात्मक रूप से परिवर्तित कर सकते हैं। जो व्यक्ति भावनात्मक बोझ तले दबा नहीं हो वह सरलता से आनंद एवं शांति की अवस्था में रह पाता है।

पहले मैं मूल सिद्धांत को दोहराना चाहूँगा। संसार में केवल दो प्रकार की भावनाएं हैं - सकारात्मक एवं नकारात्मक। सकारात्मक भावनाओं से आप प्रबल एवं प्रसन्न महसूस करते हैं, तथा नकारात्मक भावनाओं द्वारा आप को उसका विपरीत अहसास होता है। भावनाओं द्वारा आप को आप के भीतरी वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो सकता है। जब तक मन में विचार हों तब तक भावनाएं भी होंगीं। लक्ष्य अपनी सभी भावनाओं को त्यागना नहीं है। लक्ष्य यह है कि आप ऐसा बनें कि आप जब चाहें सकारात्मक भावना का चयन कर सकें। जैसे जैसे आप की मानसिक शक्ति बढ़ती जाएगी, आप भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से ऊपर उठते जाएंगे और अंत में सदा के लिए प्रेम एवं आनंद में स्थित हो जाएंगे।

यदि आप दृढ़तापूर्वक अभ्यास करें, तो आप अपनी भावनाओं को देख सकते हैं, उन्हें परख सकते हैं, बेहतर समझ सकते हैं, उन्हें परिवर्तित कर सकते हैं और नकारात्मक भावनाओं को त्याग सकते हैं।  इसका यह अर्थ नहीं कि आप को कभी बुरा नहीं लगेगा या कभी पीड़ा नहीं होगी। परंतु ऐसी भावनाएं केवल कुछ क्षण ही आप के मन में रहेंगी। सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं के विषय में आप को एक महत्वपूर्ण बात जाननी आवश्यक है। आप जितना अधिक उनके विषय में सोचते हैं और उन्हें अपने भीतर पकड़ कर रखते हैं, उनका प्रभाव उतना ही अधिक होगा। कल्पना करें कि एक गरम थाली है। आप केवल एक पल के लिए उसे स्पर्श करते हैं, तो केवल एक हलकी सी झुनझुनी होगी। परंतु यदि आप उसे हाथ में पकड़ कर रखें तो वह आप को जला देगी और एक अमिट छाप भी छोड़ सकती है। इसी प्रकार यदि आप अवांछनीय भावनाओं को पकड़ कर रखें तो वे आप के मन को गहरी क्षति पहुँचा सकती है। यदि आप सकारात्मक भावनाओं को सदैव मन में बसा कर रखें, तो वह आप को अजय बना सकती है।

सहिष्णुता का अभ्यास एक अद्भुत अभ्यास है। सहिष्णु होना और सहज हो जाता है यदि आप कृतज्ञता एवं सकारात्मकता का भी अभ्यास करें। विधि इस प्रकार है -

  1. एक निश्चित अवधि के साथ प्रारंभ करे, उदाहरणार्थ चालीस दिन, या यदि आप चाहें तो उस से भी कम।
  2. सहिष्णुता के अभ्यास के बारे में स्वयं के लिए एक अनुस्मारक लिखें और कम से कम दिन में दो बार उसे पढ़ें। 
  3. संकल्प करें कि चाहे कुछ भी हो जाए जैसे ही आप एक नकारात्मक भावना को उभरते हुए देखें  आप उस भावना को मन से दूर करने का हर प्रयास करेंगे। याद रखें मूल रूप से भावनाएं, इच्छाओं की तरह, केवल  अनियंत्रित विचार हैं।
  4.  अपने आप से वादा करें कि आप कभी दुर्वचन का जवाब दुर्वचन से, हिंसा का जवाब हिंसा से, घृणा का जवाब घृणा से, या किसी और नकारात्मक भावना का जवाब किसी भी अन्य नकारात्मक भावना से नहीं देंगे।
  5. भावनात्मक परिवर्तन एवं सहिष्णुता का अभ्यास करते समय, आप प्रतिक्रिया नहीं करेंगे और आत्म संयम रखने का पूर्ण प्रयास करेंगे।
इस अभ्यास को आप तब तक दोहरा सकते हैं जब तक यह एक प्रवृत्ति ना बन जाए।

अपने आप को याद दिलाएं कि आप को बिना किसी अपेक्षा के सहनशील बनना है। यह कठिन अवश्य है किंतु असंभव नहीं। यदि आप यह आशा करते हैं कि आप की सहिष्णुता के कारण आप के साथ दयालु व्यवहार किया जाए तो यह अभ्यास को और अधिक कठिन कर देगा। हो सकता है कि दूसरे आप की सहिष्णुता को देखें भी ना। वास्तव में, आप की सहिष्णुता को लोग गलती से अक्षमता, कायरता या कुछ और भी समझ सकते हैं। ऐसे में आप याद रखें कि उनके विचार उन के व्यक्तित्व के मात्र प्रतिबिंब हैं।

मेरे साथ हाल ही में ऐसा ही हुआ। किसी ने मुझसे एक ऐसा प्रश्न किया जिसका उत्तर मैं नहीं देना चाहता था क्योंकि वह प्रश्न केवल बौद्धिक एवं अव्यावहारिक था और मुझे ऐसे विषयों पर लंबे वाद विवाद करने में दिलचस्पी नहीं। मैं उपयोगी अभ्यास में विश्वास रखता हूँ। किसी व्यक्ति ने इस का कुछ और अर्थ निकाला और अपने विचार प्रकट किए। मैं ने वापस उन्हें यह लिखा कि उन्हें उनकी राय प्रकट करने का अधिकार है। मेरी प्रतिक्रिया उन्हें पसंद नहीं आयी और उन्होंने और अधिक लिखा। मैं प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहता था इस लिए मैं ने उन्हें एक कहानी सुनाई। उन्होंने वह कहानी व्यर्थ पायी तथा और अधिक लिखा। मैं ने उत्तर दिया कि मैं ने तो केवल वह किया जो मुझे पसंद आया - और यह मेरा स्वयं का निर्णय है। यही महत्वपूर्ण बात है - स्वयं का विकल्प चुनना। इसका यह अर्थ नहीं कि वे एक बुरे व्यक्ति थे। वास्तव में, वे एक बुद्धिमान एवं श्रेष्ठ व्यक्ति थे। उनके उदेश्य एवं प्रश्न दोनों सही थे। उनके निष्कर्ष उनके स्वयं के अनुभवों एवं बुद्धि का एक उत्पाद थे। परंतु मैं ने निर्णय किया कि मुझे जो सही लगता है वही करूंगा।

आरंभ में दूसरों की प्रतिक्रियाओं का आप पर प्रभाव होगा, परंतु आप जैसे जैसे सकारात्मकता, जागरूकता एवं संकल्प के साथ यह अभ्यास जारी रखेंगे, यह प्रतिक्रियाएं आप को और कम प्रभावित करेंगीं। हो सकता है कि कुछ भावनाएं आप को नहीं छोड़ें। ऐसे में आप अपना विकल्प स्वयं चुनें। हमारे मनपसंद सूफी पात्र के जीवन की एक छोटी सी घटना का वर्णन करता हूँ -

मुल्ला की पत्नी उस पर क्रोधित थी और ऊँचे स्वर में उस पर चिल्ला रही थी। परंतु मुल्ला ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। वह एक कोने में बैठ कर चुप रहा। पत्नी और अधिक क्रोधित हो गयी तथा और दुर्वचन बोलने लगी ताकि मुल्ला से कुछ प्रतिक्रिया पैदा कर सके, परंतु मुल्ला मौन रहा।
लाचार और निराश हो कर मुल्ला की पत्नी ने कहा, “मैं ने तुम्हें कईं बार कहा है कि जब मैं क्रोधित होती हूँ तब मेरे साथ बहस मत करो।”
“मैं ने तो एक शब्द भी नहीं कहा!” मुल्ला बोला।
“हाँ, परंतु तुम बहुत आक्रामक ढंग से सुन रहे हो।”

जब अन्य व्यक्ति आप पर टूट पड़ें आप से दुर्व्यवहार करें, उस समय स्वयं को शांत रखना ही आप की  सबसे कठिन परीक्षा है। दूसरों को अपनी प्रतिक्रिया एवं भावनाओं को चुनने की स्वतंत्रता दें, तथा अपनी प्रतिक्रिया एवं भावना स्वयं चुनें। दृढ़ता के साथ यह अभ्यास करें और फिर आप स्वयं में परिवर्तन देख अति प्रसन्न हो जाएंगे।

शांति।
स्वामी


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