भज गोविन्दम भाग - १

अदि गुरू श्री शंकराचार्य

प्रभु का नाम जपिये - भज गोविन्दम शृंखला - वीडियो [1 की 6] 


भज गोविन्दम श्री शंकराचार्य की एक बहुत ही खूबसूरत रचना है। इस स्तोत्र को मोहमुदगर भी कहा गया है जिसका अर्थ है- वह शक्ति जो आपको सांसारिक बंधनों से मुक्त कर दे। छः व्याख्यानों के द्वारा मैंने इन पर रौशनी डालने का प्रयास किया है। सारे व्याख्यान हिंदी में हैं । अपने व्याख्यानों के दौरान मैं स्तोत्र का उल्लेख अवश्य करता हूँ ताकि आप इन्हें पूर्ण रूप से समझ सकें और इनका आनंद उठा सकें।  

भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते।
सम्प्राप्ते सन्निहिते मरणे, नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे ॥1॥

हे भटके हुए प्राणी, सदैव परमात्मा का ध्यान कर क्योंकि तेरी अंतिम सांस के वक्त तेरा यह सांसारिक ज्ञान तेरे काम नहीं आएगा। सब नष्ट हो जाएगा।  

मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णां, कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तं, वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥2॥ 

हम हमेशा मोह माया के बंधनों में फसें रहते हैं और इसी कारण हमें सुख की प्राप्ति नहीं होती। हम हमेशा ज्यादा से ज्यादा पाने की कोशिश करते रहते हैं। सुखी जीवन बिताने के लिए हमें संतुष्ट रहना सीखना होगा। हमें जो भी मिलता है उसे हमें खुशी खुशी स्वीकार करना चाहिए क्योंकि हम जैसे कर्म करते हैं, हमें वैसे ही फल की प्राप्ति होती है।  

नारीस्तनभरनाभीनिवेशं, दृष्ट्वा-माया-मोहावेशम्।
एतन्मांस-वसादि-विकारं, मनसि विचिन्तय बारम्बाररम् ॥3॥

हम स्त्री की सुन्दरता से मोहित होकर उसे पाने की निरंतर कोशिश करते हैं। परन्तु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सुन्दर शरीर सिर्फ हाड़ मांस का टुकड़ा है।  

नलिनीदलगतसलिलं तरलं, तद्वज्जीवितमतिशय चपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोकं शोकहतं च समस्तम् ॥4॥ 

हमारा जीवन क्षण-भंगुर है। यह उस पानी की बूँद की तरह है जो कमल की पंखुड़ियों से गिर कर समुद्र के विशाल जल स्त्रोत में अपना अस्तित्व खो देती है। हमारे चारों ओर प्राणी तरह तरह की कुंठाओं एवं कष्ट से पीड़ित हैं। ऐसे जीवन में कैसी सुन्दरता?  

यावद्वित्तोपार्जनसक्त:, तावत् निज परिवारो रक्तः।
पश्चात् धावति जर्जर देहे, वार्तां पृच्छति कोऽपि न गेहे ॥5॥
 
जिस परिवार पर तुम ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, जिसके लिए तुम निरंतर मेहनत करते रहे, वह परिवार तुम्हारे साथ तभी तक है जब तक के तुम उनकी ज़रूरतों को पूरा करते हो।  

यावत्पवनो निवसति देहे तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥6॥

तुम्हारे मृत्यु के एक क्षण पश्चात ही वह तुम्हारा दाह-संस्कार कर देंगे। यहाँ तक की तुम्हारी पत्नी जिसके साथ तुम ने अपनी पूरी ज़िन्दगी गुज़ारी, वह भी तुम्हारे मृत शरीर को घृणित दृष्टि से देखेगी।

भज गोविन्दम भाग- १ का प्रवचन हिन्दी में सुनने के लिए नीचे क्लिक करे।



भाग - २ अगले हप्ते...

शांति।
स्वामी
Print this post

2 टिप्‍पणियां:

ananthako ने कहा…

तमिल भाषामें अनुवाद करके फेस बुक में डाला है. आप अनुमति दें तो सब तमिल में अनुवाद करसकता हूँ , तमिल भारत की प्राचीनतम भाषा है.

Bharat ने कहा…

Dear Sethuramanji, can you please contact me on bharatsinhjhala@gmail.com

We might have some seva for you in future, if you are willing to contribute. To know more, please send me an e-mail.

एक टिप्पणी भेजें

Share