लक्ष्य को स्थापित एवं प्राप्त करना

यदि आप ध्यान, धैर्य, दृढ़ता एवं कौशल से कार्य करें, तो आप किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। कोई भी लक्ष्य!
एक पाठक ने मुझसे लक्ष्यों को स्थापित करने के विषय पर लिखने का अनुरोध किया। तो आज मैं इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करता हूँ। एक छोटे से प्रसंग से प्रारंभ करता हूँ -

सर्दी के एक सुंदर दिन, नरम सूर्य के नीचे मुल्ला नसरूद्दीन और उसका सबसे अच्छा मित्र एक शानदार बगीचे में हरी घास के भव्य बिस्तर पर लेटे हुए थे। वे धूप सेंक रहे थे। घने मनोहर पेड़ बगीचे की सीमा पर संगठित थे और उनकी टहनीयों ने रास्ते को ढक दिया था। विभिन्न प्रकार के फूल खिले हुए थे और मधुमक्खियाँ फूलों की चारों ओर मंडरा रहीं थीं। पक्षियाँ निडर होकर पेड़ों पर बैठ कर चहक रहीं थीं।  गरम हवा उन्हें इस प्रकार सहला रहीं थीं मानो आँख मिचौनी खेल रहीं हो। वातावरण अत्यंत शांत था।

“वाह! यहाँ कितना सुंदर है,” मुल्ला ने कहा। “इस क्षण, यदि कोई मुझे लाखों डॉलर भी दे तो मैं यह जगह नहीं छोडूंगा।”
“और यदि कोई करोड़ डॉलर दे तो?” उसके मित्र ने कहा।
“नहीं। पूरे संसार का संयुक्त धन भी कोई दे दे फिर भी नहीं!”
“ठीक है। और यदि मैं तीन डॉलर दूँ तो? मैं तुम्हें अभी इस जगह को छोड़ने के लिए तीन डॉलर दे सकता हूँ।”
“तीन डॉलर? अब तो बात कुछ अलग है। अब तुम वास्तविक धन की बात कर रहे हो।” यह कह कर मुल्ला उठ गया और जगह छोड़ने के लिए तैयार हो गया।

इस प्रसंग में एक उत्तम संदेश है - सपने चाहे जितने भी आकर्षक हो आपका मन उन्हें गंभीरता से कभी नहीं लेता, परंतु पुरस्कार अथवा लाभ की छोटी सी भी वास्तविक संभावना देख कर मन कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है। आप असली खाना खाते हो, वास्तविक नौकरियों करते हो, असली कपड़े पहनते हो तो फिर आप के लक्ष्य वास्तविक क्यों नहीं होते? वास्तविकता का सदैव यह अर्थ नहीं कि  आप के लक्ष्य सरल एवं सहज हों, इसका यह अर्थ है कि आप उन्हें वास्तव में साध्य मानते हों।

१. लक्ष्यों की प्राप्यता पर विश्वास करें
लक्ष्यों के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप को उन पर विश्वास होना चाहिए। आप का लक्ष्य वास्तविकता का एक अंश होना चाहिए ना की दिन में सपने देखते हुए बनाया गया कोई खयाली पुलाव। सपने देखने तथा लक्ष्य की स्थापना करने में एक मुख्य अंतर है। आप का मन आप को केवल उन ही विचारों एवं लक्ष्यों पर विश्वास करने की अनुमति देगा जिन्हें आप वास्तव में सत्य मानते हैं। आप की अवधारणा एवं लक्ष्य पूरे संसार के दृष्टिकोण में चाहे जितना भी अवास्तविक क्यों ना हो, यदि आप उस पर विश्वास करें तो वह अवश्य आप का लक्ष्य हो सकता है। जिस की प्राप्ति के लिए भी आप यथोचित कार्य करने को तैयार हों वह आप का लक्ष्य हो सकता है।

आप किसे सत्य मानते हैं यह आप की विचारधारा, प्रतिबद्धता, प्रयास तथा मानसिकता पर निर्भर है। कल्पना करें कि आप के ऊपर पांच फीट की दूरी पर एक आम लटका है। आप को पता है कि आप सहजता से दो फीट कूद सकते हैं और अपने हाथ द्वारा चार फीट की ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं। आप को केवल थोड़ा और प्रयास करना होगा और यदि थोड़ा और ऊँचा कूद सकें तो अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। आप का मन मानना है कि आप उसे प्राप्त कर सकते हैं। यह आप के विश्वास पर आधारित है - इस सत्य पर आधारित है कि आप कूदने का प्रयास कर सकते हैं। वही आम यदि बीस फीट की ऊंचाई पर हो तो आप निराश हो जाएंगे और संभव है कि आप प्रयास भी ना करें। परंतु बीस फीट पर लटके हुए आम को प्राप्त करना असंभव नहीं है विशेषकर यदि आप उसे पाने के लिए वास्तव में दृढ़ हैं। किंतु, केवल कूदने से आप सफल नहीं हो सकते। आप को सामग्री की आवश्यकता होगी - जैसे की एक गुलेल, एक पत्थर, या एक सीढ़ी इत्यादि। यदि आप अपने लक्ष्य पर विश्वास करते हैं तो आप का मन स्वतः ही सुझाव और योजना ले कर आता है।

२. लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए यथोचित कार्य करें
सपने वे होते हैं जो आप केवल देखते हैं किंतु उनके प्रति आप कोई कार्य नहीं करते। लक्ष्य वे होते हैं जिन की प्राप्ति के लिए आप कार्य करने के लिए तैयार हों। आप ने संभवत: “स्मार्ट गोल्स” के विषय में सुना होगा। यह ऐसे लक्ष्य होते हैं जो विशिष्ट (क्या), परिमेय (कितना), साध्य (कैसे), वास्तविक तथा निर्धारित समय पर (कब) हों। मैं दोहराना चाहूँगा कि आप का मन केवल उन लक्ष्यों के प्रति आप को दृढ़ प्रयास करने की अनुमति देगा जिन्हें आप वास्तव में साध्य लक्ष्य मानते हों। संभवत: “स्मार्ट गोल्स” होना पर्याप्त नहीं है - लक्ष्य ऐसे होने चाहिए जिनका आप मूल्यांकन कर सकें और फिर परिस्थिति के अनुसार ठीक कर सकें। यदि आप अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं तो उन्हें प्राप्त करने की संभावना अधिक हो जाती है। कहते हैं कभी कभी सही समय पर सही जगह पर होने से बात बन जाती है। यदि आप लगातार प्रयत्न करते रहें तो सही समय पर सही जगह पर होने की संभावना बढ़ जाती है। आप के जीवन में चमत्कार होने की संभावना बढ़ जाती है और आप का भाग्य खुल जाता है। धैर्य रखें और प्रयत्नशील बने रहें। अनुशासन एवं दृढ़ संकल्प को ना त्यागें। सब्र का फल मीठा होता है। अनुकूल परिणाम निश्चित रूप से मिलेंगे। अपने लक्ष्यों का मूल्यांकन करें और यदि आवश्यकता हो तो फिर परिस्थिति के अनुसार उन्हें ठीक करें।

सपने तो कईं होते हैं, परंतु जिन सपनों को आप प्राथमिकता देते हैं जिन सपनों को आप वास्तविक एवं साध्य मानते हैं केवल वही लक्ष्य कहलाते हैं। मान लीजिए मिठाई की दुकान में एक बच्ची हो जिसे वहाँ की सभी मिठाईयाँ चाहिए। परंतु उसे क्या खाने की अनुमति है तथा उसके पास कितना धन है इस आधार पर उसे मिठाई चुनना होगा। अपने सपनों की दुकान से आप उन सपनों को चुनें जिन के बिना आप रह नहीं सकते। अपने लक्ष्यों को प्राथमिकता दें और उसके अनुसार कार्य करें। हर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समय एवं प्रयास की आवश्यकता है। यदि आप लगातार धैर्यपूर्वक लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें तो आप कठिन से कठिन लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकते हैं। आप बुलंद एवं वैभवशाली सपने देख सकते हैं, विशेष रूप से यदि ऐसा करने से आप प्रेरित होते हों, परंतु यदि आप अपने लक्ष्यों को वास्तव में प्राप्त करना चाहते हों तो आप को उन के औचित्य के विषय में सोचना चाहिए। सबसे पहले आप अपने लक्ष्यों को निश्चित करें - फिर वे सपने आप के व्यक्तित्व को और आप के जीवन को निश्चित करेंगे।

क्या आप जानते हैं अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में आप की सबसे बड़ी शक्ती क्या है? आप की आदतें। और आपकी सबसे बड़ी निर्बलता? आप की आदतें। अनुशासन एक आदत है, और अनुशासनहीनता भी एक आदत है।

अपने आप को और अपने जीवन को स्पष्ट रूप से स्थापित करने से पहले अपने आप को सम्पूर्ण रूप से समझने में समय बिताएं। यदि आप समय बिताएं और पूर्ण रूप से आत्म विश्लेषण करें, तो अपने आप को सफलता के मार्ग पर ले जाने की पर्याप्त शक्ति भी प्राप्त कर लेंगे।

शांति।
स्वामी




If Truth Be Told — A Monk’s Memoir

यदि सत्य कहा जाए (If Truth Be Told — A Monk’s Memoir) मेरा संस्मरण है जो हार्पर कॉलिन्स पब्लिशर द्वारा नवंबर २०१४ में प्रकाशित किया गया। यह मेरे जीवन की अब तक की यात्रा का कथन है।
यदि आप मुझसे पूछें तो हम एक अद्भुत प्रजाति हैं। अद्भुत इसलिए क्योंकि लगभग सदैव हमारे पास जो है हम उससे कुछ भिन्न की अपेक्षा रखते हैं। हमारे स्वार्थी होने की क्षमता हमारे निस्स्वार्थ होने की क्षमता जैसी ही अतिविशाल है। मैं यह बात इसलिए इतने विश्वास के साथ कह सकता हूँ क्योंकि मैंने अपने आप को एक दयालु व्यक्ति के रूप में देखा था और कभी नहीं सोचा कि मैं अपने प्रियजनों को कभी दर्द दे पाऊँगा। परंतु अपनी इच्छाओं के दबाव में आकर मैंने सहजता से उन प्रियजनों को पीड़ा पहुँचाई।

एक दिन सुबह मैं उठा, तैयार हुआ, अपने कार्यालय गया परंतु शाम को घर वापस लौट कर नहीं गया। इसके बजाय, मैं एक रेलगाड़ी में बैठ कर अपने सभी मित्रों, संबंधियों तथा अपनी संपत्ति से दूर चला गया। अपने परिवार को कोई चेतावनी अथवा संकेत भी दिए बिना मैं बस निकल गया, हालांकि मैं यह अच्छी तरह से जानता था कि वापसी की कोई संभावना ही नहीं थी।

ऐसा नहीं था कि मैंने उनकी भावनाओं के विषय में नहीं सोचा। मैंने सोचा था किंतु अनदेखा करने का निर्णय किया क्योंकि मैं अपने भीतर से आने वाली पुकार को और अनदेखा नहीं कर सकता था। मैं अब वही नहीं करना चाहता था जिसे सारा संसार सही या सामान्य मानता था -  सुबह उठ कर, पूरे दिन काम करकर, शाम को घर आकर, रात को भोजन खा कर सोने जाना। वैसे भी क्या सामान्य है इसका निर्णय किस ने किया था? यदि मैं दूसरों के द्वारा निर्धारित नियमों से अपना जीवन जीता तो फिर मेरे जीवन का लक्ष्य क्या था, मेरा व्यक्तिगत प्रयोजन क्या था - यदि ऐसा कुछ था भी?

मेरे सामने पिछले दशक में बड़ी मेहनत से अर्जित किया गया मेरा धन था। परंतु अंततः वाहन, धन एवं सम्पत्ति तो केवल निर्जीव वस्तु थे। वे ऐसे ही थे और सदैव ही वे ऐसे ही रहेंगे। मैं इस संपत्ति के साथ पैदा तो नहीं हुआ था और मेरी मृत्यु के पश्चात निश्चित रूप से मैं इन्हें अपने साथ ले कर तो नहीं जाऊँगा। तो फिर जीवन के इस संघर्ष का कारण क्या था? और, इसका कारण जो कुछ भी था, क्या वह इतना महत्वपूर्ण था?

अनगिनत बार, मैं अपने आप को सांत्वना दे चुका था कि मुझे एक दिन अपने जीवन का उद्देश्य अवश्य मिल जाएगा, परंतु मेरा आत्म विश्वास दुर्बल होने लगा था और कईं प्रश्न ढोल की तरह मेरे सिर में बज रहे थे। इन प्रश्नों से मेरा सिर फटने लगा और अपनी चारों ओर की ध्वनि - पक्षियों का चहकना, वर्षा का बरसना, मेरे माता-पिता के नम्र शब्द - मैं कुछ भी नहीं सुन पा रहा था और ना उसका आनंद ले पा रहा था।

मैं ने जीवन में अर्जित की गई सभी सम्पत्ति एवं उपलब्धियों को त्याग दिया था और जिन सब को भी मैं जानता था उन सब को छोड़ दिया था। मैं अपने अतीत के प्रति उदासीन महसूस कर रहा था। एक उदासीन अजनबी के समान। जिस प्रकार प्रभात के आते ही रात का अस्तित्व मिट जाता है, उसी प्रकार भौतिक संसार से मेरे प्रस्थान ने जीवन को मैं जिस रूप में जानता था उसे सम्पूर्ण रूप से मिटा दिया।

एक इंटरनेट केफ़े से मैं ने अपने परिवार एवं प्रिय मित्रों को ईमेल भेजा, यह कहते हुए कि मैं दूर जा रहा था और मुझे यह नहीं पता था कि मैं कब लौट कर आऊँगा। मेरे ह्रदय में कोई भावनाएँ ही नहीं थीं जब मैं ने अपने ईमेल अकौंट को बंद किया, अपने सिम कार्ड को नष्ट किया, अपने फ़ोन का दान किया और तीन दशकों के मेरे भौतिक जीवन से नाता तोड़ दिया। पुत्र, भाई, मित्र, प्रमुख, एम.बी.ए., सहयोगी - मुझसे जुड़े इन सभी उपनामों का त्याग करते हुए मैं एक नए रूप में दुकान से बाहर निकला।

यह नया अस्तित्व सम्पूर्ण नग्नता का था - नहीं, भौतिक अथवा शारीरिक दृष्टि से नहीं, किंतु नग्न इसलिए क्योंकि इसमें मैं कुछ भी नहीं था, मेरा कुछ भी नहीं था - कुछ नहीं, ना कोई नाम ना कोई पहचान - एक सन्यासी का जीवन। केवल इसी शून्यता की अवस्था में मुझे वह प्राप्त हो सकता था जिसकी मुझे नितांत रूप से आवश्यकता थी - एक वास्तविक आत्मिक जीवन।

ऊपर लिखित कथन मेरी पुस्तक की प्रस्तावना है जो भारत के हार्पर कॉलिन्स पब्लिशर द्वारा नवंबर २०१४ में प्रकाशित हुई थी।

अभी यह केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही खरीदने के लिए उपलब्ध है। शीघ्र ही अमेज़ॉन (amazon.com) पर ई-पुस्तक के रूप में यह पूरी दुनिया के पाठकों के लिये उपलब्ध हो जाएगी। यदि आप इसे खरीदें तो मुझे प्रसन्नता होगी। और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह कि आप पुस्तक को पढ़ने के बाद फ़्लिपकार्ट एवं अमेज़ॉन पर एक निष्पक्ष समीक्षा लिखें।

दिसंबर २०१४ में अपनी पुस्तक के विषय में लोगों से बातचीत करने मैं निम्नलिखित शहरों का दौरा करूँगा -

दिल्ली - गुरुवार, दिसंबर ११ को पुस्तक लोकार्पण @ इंडिया इंटरनेश्नल सेंटर।
चेन्नई - शनिवार, दिसंबर १३ को पुस्तक हस्ताक्षर कार्यक्रम @ तत्वलोका सभागार।
बैंगलोर - गुरुवार, दिसंबर १८ को पुस्तक हस्ताक्षर कार्यक्रम @ उन्नति सेंटर।
मुम्बई - शनिवार, दिसंबर २० को पुस्तक हस्ताक्षर कार्यक्रम @ रूद्राक्ष सेंटर।

मुझसे मिलकर मेरी यात्रा के विषय में सुनने के लिए तथा पुस्तक पर हस्ताक्षर पाने के लिए आप का स्वागत है। स्थान और अन्य विवरण आप मेरे ब्लॉग में देख सकते हैं। आगे की घोषणायें हमारे फ़ेसबुक (Facebook) पेज पर होंगी। तब तक आप यहाँ एक कॉपी मंगवा सकते हैं।

शांति।
स्वामी



कैसे क्षमा माँगी जाए

क्षमा याचना सच्ची तभी होती है जब आप अपने अपराध को दोहराते नहीं हैं और कोई बहाना नहीं देते हैं।
पंद्रह वर्ष पहले, मैं ऑस्ट्रेलिया में एक बहु अरब डॉलर मीडिया कंपनी के एक बड़े प्रौद्योगिकी समूह का प्रमुख था। मैं ने एक प्रमुख पोर्टफोलियो संभालना प्रारंभ ही किया था कि नए सॉफ़्टवेयर में एक समस्या हमारे उपयोगकर्ताओं और हमारे राजस्व को प्रभावित करने लगी। तकनीकी प्रमुख के रूप में, इस समस्या को सुलझाना मेरा उत्तरदायित्व था। हमने विभिन्न फ़र्मों से कईं तकनीकी विशेषज्ञों को बुलाया परंतु कोई भी समस्या का कारण बता ना पाया। कईं सप्ताह बीत गए किंतु हम फिर भी कुछ प्रगति ना कर पाए। एक बार मैं चिंताग्रस्त एवं आत्मविश्लेषी हो कर आधी रात घर पहुँचा। मैं फुहारे में स्नान करने गया ही था कि मुझे अचानक उस गंभीर समस्या को सुलझाने के रहस्य का प्रकटीकरण हुआ! मैं काम पर वापस जाने के लिए उतावला हो गया और एक छोटी झपकी लेने के उपरांत तुरंत काम पर लौट गया।

प्रभात के उस पहर कार्यालय में पूरी तरह शांति थी। मैं ने समस्या को सुलझाने का प्रयास किया और देखा कि वह काम कर रहा था। मैं ने पूरे विश्वास के साथ हमारे संस्करण नियंत्रण प्रणाली को अनदेखा कर सर्वर पर प्रशासनिक उपयोगकर्ता के रूप में लॉग इन किया (पूरी दुनिया को दिखाने से पूर्व हम यहीं पर हमारे सॉफ़्टवेयर को उच्च अधिशासी के अनुमोदन के लिए प्रदर्शित किया करते थे) नयी सॉफ़्टवेयर को चलाने के पूर्व मैं ने सर्वर पर उपस्थित डाइरेक्टरी को मिटाने का एक कमांड जारी किया। मैं यह सोच कर बहुत प्रसन्न होने लगा कि जब उच्च अधिशासी सुबह काम पर आएंगे तो वे यह देख कर कितने चकित हो जाएंगे। जहाँ सैकड़ों डॉलर भी समस्या को सुलझाने में विफल रहे, उसे ठिक करने का यह सरल उपाय था।

परंतु एक समस्या थी; सर्वर पर कमांड शुरू करने के बाद मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ। मैं ने एक ऐसा कमांड दिया था जिस के कारण सिस्टम में उपस्थित हर एक फ़ाइल मिट गयी। यह कल्पना करें कि आप केवल अपने कमरे की बत्ती बुझाना चाहते हों, परंतु आप गलती से पूरे शहर की बिजली काट देते हैं। मैं ने जो किया वह तो उस से भी बदतर था - मैं ने तो समझो पूरे बिजली घर को ही जला दिया। 

सर्वर को ठीक करने के लिए हार्डवेयर टीम को चार दिन लगे क्योंकि टेप बैकअप में भी कोई समस्या थी। मैं बहुत लज्जित था। मेरी भूल का समर्थन करने के लिए मेरे पास वैसे तो कईं बहाने हो सकते थे - नींद की कमी, काम पर दबाव, बहुत अधिक काम, समस्या की कठिनाई, नेटवर्किंग टीम की अयोग्यता इत्यादि। परंतु ये सब केवल बहाने थे। मैं ने कोई भी बहाना नहीं दिया। केवल सभी से क्षमा मांगी। क्योंकि सत्य यह था कि मैं ने एक महंगी भूल की थी। सौभाग्य से, सब कुछ अच्छी तरह समाप्त हुआ। दो महीने पश्चात, मुझे वेतन में एक बड़ी वृद्धि प्राप्त हुई। इस वृद्धि का एक कारण थाअपनी भूल को स्वीकार करने, ठीक करने और उस से सीखने का साहस

भूल करना मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है; हम सभी भूल करते हैं। परंतु उन्हें दोहराने का यह औचित्य नहीं हो सकता। हमे अपनी भूल का अहसास हो गया है यह दिखाने की केवल दो विधियाँ हैं। पहली विधि है कि भूल को ना दोहराएं और दूसरी एक सच्ची क्षमा याचना द्वारा। दूसरा मुद्दा ही मेरे इस लेख का विषय है। सही ढंग से क्षमा मांगना कोई विशेष कला या ज्ञान नहीं। यह तो केवल इस पर निर्भर है कि आप स्पष्ट रूप से सत्य बोल पाते हैं कि नहीं। जब हमे वास्तव में अपने कार्य पर पछतावा होता है, तो सही शब्द स्वत: ही बाहर आने लगते हैं और क्षमा मांगना अत्यंत सरल हो जाता है।

वास्तव में क्षमा याचना विश्वास का एक पुनःस्थापन है। इस के द्वारा आप यह कह रहे हैं कि मैं ने एक बार आप का विश्वास तोड़ा है किंतु अब आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं और मैं ऐसा फिर कभी नहीं होने दूँगा। जब हम एक भूल करते हैं, तो दूसरे व्यक्ति के विश्वास को झटका लगता है। अधिकतर सकारात्मक भावनाओं की नींव विश्वास ही होती है। उदाहरणार्थ जब आप किसी से प्रेम करते हैं, तो आप उन पर विश्वास करते हैं कि वे वास्तव में वैसे ही हैं जैसा वे स्वयं को दर्शाते हैं। किंतु जब वे उसके विपरीत कार्य करते हैं, तो आप का विश्वास टूट जाता है। इस विश्वासघात से आप को बहुत कष्ट होता है और यह दूसरे व्यक्ति के प्रति आप की भावनाओं को भी प्रभावित करता है।

यदि आप अपराध को दोहराने का विचार कर रहें हैं, तो ऐसी क्षमा याचना विश्वसनीय नहीं है। उदाहरणार्थ एक टूटे हुए घड़े को ले लीजिए। यदि आप सावधानी एवं सबूरी से प्रयत्न करें तो संभवत: एक बार उसे जोड़ सकते हैं। किंतु उसे फिर से तोड़ने पर उसे जोड़ना अधिक कठिन या लगभग असंभव हो जाता है। इसी प्रकार यदि आप किसी के विश्वास को तोड़ते हैं संभवत: वह आप को एक बार क्षमा कर सकते हैं। परंतु यदि आप ऐसा फिर से करते हैं तो आप उनसे क्षमा की आशा नहीं कर सकते। इसलिए, एक निष्ठाहीन क्षमा याचना सम्पूर्ण रूप से व्यर्थ है। तो आप पूछेंगे कि एक निष्कपट क्षमा याचना क्या है

क्षमा याचना विश्वसनीय तभी होती है जब आप यह ठान लें कि आप अपने अपराध को दोहरायेंगे नहीं और जब आप कोई बहाना या औचित्य नहीं देते हैं। आप अपने कार्य का पूरा उत्तरदायित्व  लेते हैं और सच्चे दिल से आप क्षमा मांगते हैं। पश्चाताप की भावना से रहित क्षमा याचना व्यर्थ है। वास्तव में, इस से दूसरे व्यक्ति को और अधिक कष्ट होगा। अक्सर लोग कहते हैं, “मुझे क्षमा करें परंतु मैं ने ऐसा सोच कर यह काम किया था…”, अथवामुझे क्षमा करें परंतु मैं ने यह कार्य इस कारण किया था…” अथवामुझे क्षमा करें यदि मेरे कारण आप को कोई चोट पहुँची हो ये क्षमायाचना नहीं केवल बहाने हैं। 

एक सच्ची क्षमा याचना मेंयदिऔरपरंतुजैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं होता। यह कहना कि आप ने ऐसा क्यों किया इसका भी कोई अर्थ नहीं। सर्वश्रेष्ठ क्षमा याचना वह है जहाँ आप यह पूर्ण रूप से समझें, महसूस करें तथा स्वीकार करें कि आप के कार्यों ने अन्य व्यक्ति को ठेस पहुँचाया है। एक कारण या औचित्य दे कर अपनी क्षमा याचना को दूषित करें। यदि आप सच्चे दिल से क्षमा नहीं मांगते हैं तो आप अपनी क्षमा प्रार्थना का नाश कर रहे हैं। इस से दूसरे व्यक्ति को और अधिक कष्ट होगा। आप एक क्षमा याचना अथवा एक बहाने में से केवल एक को ही चुन सकते हैं, दोनों को नहीं।

एक सच्ची एवं निष्कपट क्षमा याचना वह होती है जिस में आप अपने अपराध को पूर्ण रूप से स्वीकार करते हैं। किंतु यदि अन्य व्यक्ति आप की क्षमा प्रार्थना स्वीकार नहीं करते, तो? कभी और इस पर चर्चा करूँगा।

शांति।
स्वामी

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