मनुष्य क्यों ऊब जाता है?

जब आप क्रिया के अभाव से अप्रभावित एवं संतुष्ट रहते हैं तब ऊब शांति बन जाती है।
सभी आयु के पाठक मुझसे ऊब के विषय में प्रश्न करते हैं। कुछ अपनी दिनचर्या से ऊब रहे हैं, कुछ अपने जीवन-साथी से तो कुछ व्यक्ति अपने पूर्ण जीवन से ही ऊब रहे हैं। विशेषतर माता-पिता मुझसे पूछते हैं कि वे अपने बच्चों को कैसे समझायें जब बच्चे यह कहते हैं कि बोरियत के कारण वे पढ़ाई नहीं करना चाहते। मेरे अनुसार ऊब दो प्रकार की होती हैं - आलसी ऊब तथा क्रियाशील ऊब। इन दोनों परिस्थितियों में आप का मन आप को ऊब के साधन से दूर करना चाहता है। जब आप ऊब रहे हैं तब आप मन की कुशाग्रता खो देते हैं और यह आप को अशांत अथवा आलसी बनाता है। मैं ने सैकड़ों व्यक्तियों को देखा है जो हाथ में किसी वस्तु को ले कर चुलबुलाने लगते हैं और कईं तो ऊब के कारण पैरों को हिलाने लगते हैं। ऐसी परिस्थिति में ऊब सूक्ष्म परंतु अहम होती है। उदाहरणार्थ आप किसी रोमांचक चलचित्र को देखते समय अथवा एक अच्छी पुस्तक पढ़ते समय पैरों को नहीं हिलाते हैं।

जब व्यक्ति दिलचस्पी की कमी के कारण ऊब जाता है तो बहुधा मन मंद होने लगता है और नींद आने लगती है। यह आलसी बोरियत है। जब आप सोने जा रहे होते हैं तब आप इस का अनुभव करते हैं - मन की गति धीमी हो जाती है। एक ऐसा मन जिस में कईं विचार दौड़ रहे हों और जो अत्यधिक भावनाओं से भरा हो उसे शांत करने की आवश्यकता है। परंतु जब आप का परिवेश आप को प्रोत्साहित नहीं कर पाता और इस कारण आप ऊब जाते हैं तो आप अधीर हो जाते हैं। यह आप को अशांत कर देता है। यह क्रियाशील बोरियत है। अर्थात आप का मन सक्रिय है और वह कुछ नवीन करना चाहता है, किसी भिन्न प्रकार के परिवेश में जहाँ उसे उत्तेजना प्राप्त हो।


मेरा यह मानना है कि ऊब महसूस करने में कोई बुराई नहीं हैं। यदि बोरियत इतना बड़ा अभिशाप होता, तो हम अब भी पाषाण युग में होते। कहीं न कहीं मानव जाति की प्रगति में, ऊब की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कुछ महान आविष्कार आवश्यकता के कारण नहीं किए गए थे परंतु इसलिए किए गए थे क्योंकि कोई ऊब गया था और वह कुछ नया करना चाहता था। यदि आवश्यकता आविष्कार की जननी है, तो बोरियत संभवत: ऊब के पिता हो सकते हैं। यह इसलिए क्योंकि ऊब नवाचार की आवश्यकता को प्रोत्साहित करता है। जब आप ऊब रहें हों तब यदि आप को नींद आ रही है, तो इस का यह अर्थ है कि आप को अपने मन को उत्तेजित करने की आवश्यकता है और उस के लिए कुछ ऐसा खोजना है जिस में आप को दिलचस्पी हो। किंतु जो आप कर रहे हैं यदि वह अत्यंत महत्वपूर्ण है और आप ऊब के कारण उस का त्याग नहीं कर सकते, तो कुछ देर विश्राम करें। अपने मन को ताज़ा करने के पश्चात वह कार्य करें। जिस प्रकार हर व्यक्ति कुछ समय के लिए ही ध्यान कर पाता है, उस ही प्रकार उस के लिए हर कार्य करने की कोई सीमा होती है। कुछ पहले दस मिनट में ही ऊब महसूस करने लगते हैं तो कुछ तीस मिनट के पश्चात और कुछ उस से भी अधिक समय बिना ऊबे काम कर पाते हैं। अभ्यास एवं सचेत प्रयास द्वारा आप अपनी बोरियत की सीमा बढ़ा सकते हैं!


यदि आप ऊब रहे हैं तो इस का यह अर्थ है कि आप को ईश्वर ने बुद्धि और सोचने की शक्ति प्रदान की है तथा आप कोई बुद्धिहीन पशु नहीं हैं। यह विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए है जो ऊब के समय अधीरता का अनुभव करते हैं। यह दोनों परस्पर  संबद्धित हैं - अधीरता ऊब की वृद्धि करता है और ऊब अधीरता को तीव्र करता है। बोरियत के विषय में आप को दो बातें जाननी हैं। एक प्रसंग द्वारा मैं इसे स्पष्ट करता हूँ।


एक समय की बात है एक साधक निष्ठा से ध्यान करता था परंतु सफल ना हो पाया। उस ने अपने गुरु से कहा - “मैं ऊब रहा हूँ और मैं बेचैनी महसूस कर रहा हूँ। मैं ध्यान करने में असमर्थ हूँ।”
“चिंता ना करो और इस के लिए कोई प्रतिक्रिया ना दिखाना। यह स्थिति अवश्य बदल जाएगी और यह समय बीत जाएगा। अपनी स्थिरता ना खोना। दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ते रहो”, गुरु ने कहा।
कुछ सप्ताह पश्चात वह दौड़ते हुए गुरु के पास आया और बोला “ओह, मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। मैं ने पूर्ण जीवन में इतनी कुशलता से ध्यान कभी नहीं किया।”
“इतने अधिक उत्साहित ना हो और इस के लिए कोई प्रतिक्रिया ना दिखाना। यह स्थिति भी अवश्य बदल जाएगी और यह समय भी बीत जाएगा। अपने चुने हुए मार्ग पर चलते रहो। दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ते रहो।”, गुरु ने कहा।

यह कथन न केवल ध्यान करने के लिए उपयुक्त है किंतु जीवन के कईं अन्य पहलुओं के लिए भी यह निश्चित रूप से सही है। मनुष्य अपनी नौकरी से, रिश्तों से तथा अपने जीवन से भी ऊब जाता है। ऊब के विषय में आप को सर्व प्रथम यह जानना है कि यह अस्थायी है। यदि आप किसी ऐसी वस्तु, काम अथवा विषय से ऊब जाते हैं जिस से आप बच कर भाग नहीं सकते तो उसे स्वीकार करना सीखें तथा संकल्प के साथ सतर्कता का अभ्यास करें। शीघ्र ही बोरियत की अवस्था समाप्त हो जाएगी। जहाँ अनुराग और भक्ति हो, वहाँ ऊब जाने की संभावना अत्यंत कम होती है। एक माँ कदाचित अपनी संतान से ऊब नहीं जाती परंतु चंचल बच्चा बहुधा अपनी माँ से ऊब सकता है। अंत में यह आप की प्राथमिकताओं पर निर्भर है।


ऊब के विषय में आप को दूसरी बात यह जाननी है कि आप ही यह चुनते हैं कि आप को ऊब जाना है। हाँ, यही सत्य है। जब आप अपने अशांत मन को यह अवसर प्रदान करते हैं कि वह आप को अपने वश में कर ले, तब आप अधीरता एवं ऊब का अनुभव करते हैं। और जब आप का आलसी मन आप पर भारी पड़ जाता है तब आप नींद एवं ऊब का अनुभव करते हैं। यही सरल सत्य है। यदि आप ऊब को एक सकारात्मक विषय के रूप में देखना आरंभ करते हैं, तो आप का मन प्रतिकार करना बंद कर देगा। इस के लिए जागरूकता की आवश्यकता है। आप को स्वयं को ध्यान से देखना होगा और यह पता करना होगा कि आप कब ऊब रहे हैं। यह समझें कि आप को स्वयं का साक्षी बन ना होगा। स्वीकृति और सतर्कता द्वारा आप आलसी बोरियत को दूर कर सकते हैं। जागरूकता और विश्राम आप को अशांत ऊब से बाहर आने की सहायता करते हैं।


यदि कभी कभी आप ऊब जाते हैं तो यह कोई प्रचंड समस्या नहीं है। उसे स्वीकार करें। यदि आप उसे दूर करना चाहते हैं, तो जागरूकता के साथ ऐसा करें। जब मैं कईं महीनों के लिए हिमालय में एकांत में रहा तो वहाँ ना बिजली थी, ना बात करने के लिए कोई और व्यक्ति, ना पुस्तक, ना संगीत, ना पक्षी - केवल श्वेत हिम था - और ऐसे में मैं ने अपने आप को ऊब जाने की अनुमति नहीं दी। मैं ने केवल ध्यान की साधना की। जब ध्यान करते करते थक जाता तो मैं चिंतन करने लगता, और जब चिंतन करते करते थक जाता तो मैं ध्यान करने लग जाता। यदि आप पूर्ण प्रतिबद्धता से अनुशासित रहें, तो ऊब आप को छू भी नहीं सकती क्योंकि बोरियत अधिकतर एक बहाना होता है वास्तविक कारण नहीं। एक ऊबे हुए मन से दुष्ट विचार उत्पन्न होते हैं। महान ब्रिटिश विचारक बर्ट्रेंड रसल के शब्दों में - ऊब नीतिज्ञ के लिए एक महत्वपूर्ण समस्या है क्योंकि मानव जाति के आधे पाप तो ऊब के भय के कारण ही किए जाते हैं।


जब आप ऊब की लहर को पार कर देते हैं, तब आप स्वयं को आनंद के सागर में पाते हैं। आप की बुद्धि अत्यंत तीक्षण हो जाती है तथा उभरते हुए वह आप की चेतना में और प्रमुख एवं प्रभावशाली होते हुए आप को अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।


शांति।
स्वामी

सर्वाधिक गहरा रहस्य

आकर्षण का नियम आप के सपनों को साकार करने में तब आप की सहायता करता है जब आप दूसरों के सपने साकार करने में उनकी सहायता करते हैं।
हम में से अधिकांश ने आकर्षण के नियम के विषय में पढ़ा है और अधिकतर व्यक्ति यह जानने को उत्सुक होंगे कि क्या यह वास्तव में सच है| क्या यह वास्तव में संभव है कि मात्र सोचने से ही आप संपत्ति, प्रेम तथा शांति को आकर्षित कर सकते हैं। संभवतः नहीं? इसमें कोई संदेह नहीं कि हर कार्य का प्रारंभ विचार से ही होता है परंतु सपनों की पूर्ती के लिए कर्म अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। ऐसा कहने के उपरांत भी, ऐसे लाखों व्यक्ति हैं जो अपने जीवन में परिवर्तन लाने के विषय में विचार करते हैं, प्रार्थना करते हैं तथा दृढ़ परिश्रम भी करते हैं, फिर भी उनके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आता। ऐसा क्यों है कि आप के सर्वश्रेष्ठ प्रयत्न करने पर भी परिस्थितियां नहीं बदलतीं?

इस वर्ष के आरंभ में (जनवरी में) मैं ने लिखा था कि आप के लिए एक गहरे रहस्य का खुलासा करूँगा। मैंने लिखा था कि कैसे प्रकृति से साथ पूर्ण योग होने पर आप की चेतना को आप असाधारण रूप से विस्तृत कर सकते हैं। कुछ इस प्रकार से कि जैसे प्रत्येक मनुष्य एक बूँद के समान समुद्र में मिल कर स्वयं अथाह और शक्तिशाली समुद्र बन जाए। एक बूंद समुद्र नहीं होता परंतु अनेक बूंदों से ही समुद्र बनता है, अन्यथा समुद्र का कोई अस्तित्व ही नहीं होता। इसी प्रकार, ब्रह्मांड को आकर्षित करने हेतु एक विशाल स्तर पर जाने की आवश्यकता है। और इस के लिए हमें सामूहिक चेतना को जागृत करना होगा। इस से पहले कि यह बातें और जटिल प्रतीत हों, मैं अपने सिद्धांत की व्याख्या तीन अंशों में करता हूँ -


प्रथम अंश - मानव शरीर
मानव शरीर किस से बना है? क्या हो यदि हम हड्डियों, मांस और पेशियों के परे देखें? हमारा शरीर अरबों लघु कोशिकाओं से बना है। शोधकर्ताओं के अनुसार यदि अनुपात के दृष्टिकोण से गणना की जाये तो हमारे शरीर में  ३७ ट्रिलियन कोशिकाएं है। कोशिकाओं के प्ररूप के अनुसार यह संख्या कम अथवा अधिक हो सकती है (३५ बिलियन से ७२४ ट्रिलियन)। उदाहरणार्थ शरीर में त्वचा कोशिकाएं, जो की विरल हैं, केवल ३५ बिलियन की गणना में हैं।

फिर भी तर्क के लिए मान लेते हैं कि हमारे शरीर में ३७ ट्रिलियन कोशिकाएं हैं। हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका में स्वयं की बुद्धि होती है। प्रत्येक कोशिका अपने आप में स्वतंत्र इकाई है और इनमें एक झिल्ली होती है जो लगभग मस्तिष्क के समान ही काम करती है। जैसे हम सामाजिक या न्यायिक ढाँचे में स्वतंत्रता का उपयोग करते हैं, वैसे ही हमारी कोशिकाएं प्रकृति के नियमों के अधीन हैं। मानव कोशिकाएं स्वयं की स्वतंत्रता और शरीर के जैविक प्रणाली का एक अनोखा संतुलन हैं।

परमाणुओं से कोशिकाएं, कोशिकाओं से अणु, अणुओं से उत्तक बनते हैं, उत्तकों से अंग, अंगों से अंगप्रणाली, और अंगप्रणाली से जीव बनता है।

द्वितीय अंश - लौकिक शरीर और मनुष्य
हम अपने आस पास की यथार्थ प्रतिकृति हैं। पृथ्वी पर लगभग ७०% जल है, और हमारे शरीर में भी ७०% जल है। ब्रह्माण्ड में अनगिनत तारे हैं, और हमारे शरीर में भी अनगिनत रोमछिद्र हैं। हम जो भी भोजन करते हैं वह प्रकृति से उत्पन्न होता है, इसी ग्रह में से। हम ना केवल प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं, हम ही स्वयं प्राकृतिक संसाधन हैं। हम स्वयं प्रकृति हैं। प्रत्येक जीव (मानव, पशु, पौधे एवं शैवाल) इस प्रकृति का अंश हैं।

हमारी आकाशगंगा में १०० अरब तारे हैं और ब्रह्मांड में अरबों आकाशगंगाएँ हैं। ग्रहों और आकाशगंगाओं के बीच का अंतर्तारकीय स्थान एक प्रकार से उत्तकों और अंगों के बीच का अंतर्तारकीय स्थान के समान है। हम (सभी जीवित प्रजातियां) ब्रह्माण्ड में वैसे ही हैं जैसे हमारे शरीर में कोशिकाएं प्राथमिक जीवन घटक हैं। 

हम सभी ब्रह्माण्ड में एक कोशिका की भांति हैं। हम अपने आप में कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, वास्तव में हमारा अस्तित्व ब्रह्माण्ड में अत्यंत लघु है। जितना लघु हम सोच सकते हैं उससे भी कहीं अधिक लघु। परंतु बड़े स्तर पर हर एक का अस्तित्व ब्रह्माण्ड के लिए महत्वपूर्ण है। यदि हमारे शरीर की हर कोशिका काम न करे तो हमारा शरीर उसी समय निर्जीव हो जाएगा। इसी प्रकार यदि प्रत्येक मनुष्य अपना कार्य करना बंद कर देता है तो पूरी सृष्टि पर अकल्पनीय प्रभाव पड़ेगा।

तृतीय अंश- ब्रह्माण्ड को आकर्षित करना
आकर्षण का नियम लौकिक शरीर का ध्यान आकर्षित करने पर आधारित है। उसका स्तर  मानव स्तर की तुलना में अत्यंत विशाल है - मानो एक चींटी किसी हाथी को रोकने का प्रयास कर रही हो। एक साधारण व्यक्ति के लिए जो सम्पूर्ण जीवन का प्रयास हो वह ब्रह्मांडीय चेतना के लिए मात्र क्षणिक है। हमारे स्वयं के प्रयास या विचार कोई सर्वव्यापी परिवर्तन नहीं ला सकते। हालांकि ऐसे प्रयास एक व्यक्ति द्वारा आरंभ किये जा सकते हैं परंतु स्थाई या प्रभावी  परिणाम हेतु सामूहिक चेतना की आवश्यकता होती है। और यह मेरे निबंध का सबसे महत्वपूर्ण भाग है।

क्या आप ने कभी इस पर विचार किया है कि आप चाहे कितने भी तल्लीन क्यों न हों, यदि एक मच्छर भी आप को काट ले तो आप का ध्यान उस ओर चला जाता है। हमारे शरीर में कहीं भी एक सुई का चुभना भी हमारा ध्यान खींच लेता है। इसी प्रकार यदि हमें लौकिक शरीर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना है तो हमें उस को धीरे से उकसाना होगा। यह केवल एक मनुष्य के व्यक्तिगत प्रयास से संभव नहीं अपितु इस के लिए एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होगी। यदि अनेक व्यक्ति ठीक एक समय पर एक विषय पर ध्यान करें तो ब्रह्मांडीय चेतना को आकर्षित कर सकते हैं जिस के द्वारा अकल्पनीय परिवर्तन लाए जा सकते हैं।
             
यहाँ एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है- लौकिक शरीर पर सुई के चुभने का प्रभाव पैदा करने के लिए कितने साधकों की आवश्यकता होगी? इसका उत्तर है जितने व्यक्ति हों साधना उतनी ही उत्तम होगी। परंतु ब्रह्मांडीय चेतना में एक लहर लाने के लिए न्यूनतम संख्या ८००० और समुचित रूप से ९,०००,००० व्यक्ति चाहिए। मैं ने कैसे इस संख्या की गणना की (यदि आप को संख्याओं में दिलचस्पी न हो तो अगले अनुच्छेद को पढ़ने की आवश्यकता नहीं है) 

मैं अपने प्रस्ताव का आरंभ इस प्रकार कर रहा हूँ कि एक सूई की नोक की चुभन भी उस जगह हमारा ध्यान खींचती है जहाँ वह चुभती है। मान लें मानव शरीर में यदि ३७ ट्रिलियन कोशिकाएं हैं और सूई की नोक का व्यास ०.१२७mm है तो १mm का गहरा छेदन लगभग ९ मिलियन कोशिकाओं को प्रभावित करेगा। और यदि मैं केवल त्वचा कोशिकाओं (३५ बिलियन) को ही अपनी गणना में लूं तो १mm का गहरा छेदन लगभग ८,००० कोशिकाओं को प्रभावित करेगा। चूँकि मैं एक सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी नहीं हूँ इसलिए मैंने यह प्रश्न एक फोरम में रखा और एक भौतिक विज्ञानी ने कृपापूर्वक मुझे विस्तृत उत्तर दिया। यह संख्या उसी उत्तर के आधार पर ली गई है।

इसका अर्थ यह है कि यदि ८,००० व्यक्ति संसार के भिन्न हिस्सों में एक समय पर एक ही विषय पर अपनी सुविधा से अपने ही घर में पांच मिनट का ध्यान करें तो लौकिक शरीर का ध्यान खींच सकते हैं। हम गुणात्मक रूप से लौकिक शरीर को प्रभावित नहीं कर सकते जब तक ४.५ मिलियन लोग एक ही समय पर एक ही विषय पर ध्यान न करें। ४.५ मिलियन लोग क्यों? क्योंकि यह ८,००० एवं ९ मिलियन का मध्यमान है (यहाँ तक की माध्यिका भी है)। परंतु हम निश्चित रूप से ८,००० व्यक्तियों के साथ आरंभ अवश्य कर सकते हैं।

मैं यह सुझाव नहीं दे रहा कि हम इस ज्ञान का उपयोग निजी प्रयोजन के लिए करें (जबकि हम कर सकते हैं)। इसके स्थान पर मैं यह प्रस्ताव करता हूँ कि हम विश्वव्यापी शांति, समृद्धि तथा शांति के लिए ध्यान करें। आज तकनीक (इंटरनेट) ने संभव किया है कि कुछ लाख व्यक्ति आपस में आराम से तालमेल कर सकते हैं और एक निश्चित समय पर समान ध्येय के लिए ध्यान कर सकते हैं।

हम एक ऐसे समाज में हैं जहाँ एक निम्न स्तरीय विडियो को एक करोड़ दर्शक कुछ ही घंटो में मिल जाते हैं। मुझे विश्वास है कि कुछ ऐसे अच्छे लोग भी हमारी धरती पर हैं जो दूसरों के जीवन में परिवर्तन लाना चाहते हैं। जब हम वैश्विक प्रसन्नता के स्तर को उठायेंगे तो स्वयं निजी शांति और समृद्धि का स्तर भी बढ़ेगा। जब चारों ओर लोग अधिक सुखी होंगे तो हमारी दुनिया स्वयं ही बेहतर हो जायेगी।

यदि आप को यह विचार पसंद आया तो आगे पढ़ें और इस उदार एवं विश्वव्यापी ध्येय की प्राप्ति के लिए मेरे साथ चलें जिस से की हम इस दुनिया के लिए कुछ योगदान कर सकें और इस प्रक्रिया में अपने जीवन को समृद्ध  बना सकें।

सूई के चुभने का प्रभाव

विचार अत्यंत सरल है। हमें कम से कम ८,००० व्यक्ति ऐसे चाहिए होंगे जो सप्ताह में एक दिन पांच मिनट के लिए ध्यान कर सकें। यह आप कहीं से भी कर सकते हैं- घर में, ऑफिस में, पार्क में, अपनी गाडी में बैठे हुए भी। सच में कहीं से भी और इसमें एक पैसा भी नहीं खर्च करना होगा। हम सभी एक ही समय पर ध्यान शुरू करेंगे और एक समय पर समाप्त भी करेंगे चाहे हम दुनिया में कहीं भी हों। आप को इसके लिए किसी वस्तु पर कुछ भी नहीं खर्चना होगा कहीं आना-जाना भी नहीं होगा। हम एक विषय का चुनाव करेंगे और उस पर निश्चित किये हुए समय पर पांच मिनट ध्यान करेंगे। कैसे ध्यान करना है इस विषय पर मैं एक परिचयात्मक विडियो पोस्ट कर सकता हूँ। और एक निर्देशित ध्यान प्रक्रिया भी पोस्ट कर सकता हूँ जिसे हम हर बारह सप्ताह में बदल सकते हैं।

मेरा मानना है कि जिस दिन हमें ४.५ मिलियन व्यक्ति मिल जायेंगे, उस दिन एक मौन आध्यात्मिक क्रांति का आरंभ होगा। यह न केवल प्रतिभागी ध्यान-साधकों के जीवन में परिवर्तन लाएगा किंतु पूरी दुनिया में परिवर्तन लाएगा। और एक दिन जब भविष्य में ९ मिलियन लोग ध्यान करेंगे तो हम आकर्षण के नियम को विश्वव्यापी स्तर पर क्रियाशील होता देख पाएंगे।

इस आंदोलन से जुड़ने के लिए, इस विषय पर विशेष रूप से बनाये गए फेसबुक पेज को पसंद करें (यहाँ पर)। इस के लिए मैंने एक सुलभ वेबसाइट pinprick.org भी बनाई है।

यदि ९ मिलियन व्यक्ति आप की शांति और प्रसन्नता के लिए एक साथ ध्यान करेंगे तो आप अपने जीवन में परिवर्तन देख पाएंगे। और यह निश्चित रूप से इस आशय में मददगार होगा यदि आप उन ९ मिलियन लोगों में से एक होंगे जो दूसरों के भले के लिए ध्यान करेंगे। 

सभी मनुष्य एक दूसरों से जुड़े हुए हैं और एक दूसरों पर निर्भर हैं। प्रत्येक के विचार एवं कार्य का किसी और पर प्रभाव होता है। हम सामूहिक ध्यान की इस शक्ति और अंतर्दृष्टि का प्रयोग एक महान परिवर्तन लाने में कर सकते हैं।

शांति।
स्वामी


अनुलेख - अधिक जानकारी के लिए pinprick.org को देखें

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