यदि आप एकांत में सुख पा सकते हैं तो कभी अकेलेपन का अहसास नहीं होगा। एकांत
आप की भीतरी शक्ति को विकसित करता है।
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आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते (भगवद गीता २.५५)
जो स्वयं के भीतर बसता है और भीतर संतुष्ट रहता है वह वास्तव में एक योगी है।
जो साधक भीतर की ओर केंद्रित है वह एकांत में अत्यन्त आनंद पाता है। ऐसी स्थिति में वह भीतरी परमानंद का लगातार अनुभव कर सकता है।
यदि आप एकांत में रहें और पढ़ने या लिखने या इसी तरह की अन्य गतिविधियों में अपने मन को लगाते हैं तो वह भी एकांत ही है। परंतु यह बेहतरीन प्रकार का एकांत नहीं है। यह एक अधूरे एकांत के समान है। सर्वश्रेष्ठ एकांत वह है जिसमें आप को हर बीतते हुए क्षण का अहसास हो रहा है। आप सुस्त नहीं हैं या आप को नींद नहीं आ रही है। आप जागृत एवं सतर्क हैं। आप को बेचैनी का अहसास नहीं हो रहा है। आप को सदैव "कुछ" करने की उत्तेजना नहीं है। आप भीतर से शांति का अनुभव कर रहें हैं। यदि आप अपने मन का सामना करें और सीधे उसे ध्यानपूर्वक देखें तो आप एकांत में हैं। जिसने एकांत में रहने की कला में निपुणता प्राप्त कर ली ऐसा योगी सदैव भीड़ में भी एकांत रहेगा। उसकी शांति बाहर के शोर से अप्रभावित रहती है। उसकी भीतरी दुनिया बाहरी दुनिया से संरक्षित है।
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः।। (भगवद गीता ६.१०)
एक व्यक्ति जो स्वयं के परमात्मा से मिलन का इच्छुक है उसे इच्छाओं तथा बंधनों और स्वामित्व से स्वयं को मुक्त करके भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और एकांत में रहकर ध्यान करना चाहिए।
एकांत में बेचैनी और व्यामोह की प्रारंभिक अवधि के बाद हमारे भीतर परमानंद की भावना बहने लगती है। सब कुछ स्थिर हो जाता है। आप का मन, इंद्रियाँ, शरीर, पास-पड़ोस, बहती नदी, झरने - सब कुछ स्थिर हो जाते हैं। अनाहत नाद और अन्य दिलकश ध्वनियाँ स्वयं ही प्रकट होने लगती हैं। परंतु वे एक विचलन उत्पन्न कर सकती हैं। एक निपुण ध्यानी अनुशासित रूप से अपना ध्यान केंद्रित रखता है। एकांत में रहने के लिए अत्यधिक अनुशासन की आवश्यकता है। और स्वयं के अनुशासन के द्वारा आप जो भी कल्पना करें वह सब प्राप्त कर सकते हैं। एकांत में अनुशासित रहना अपने आप में ही एक तपस्या है। सबसे तीव्र गती से आत्म शुद्धीकरण करने का यही रास्ता है।
कायेन्द्रियसिध्दि: अशुध्दिक्ष्यात तपस: ( पतंजलि योग सूत्र , २.४३ )
स्वयं का अनुशासन सभी वेदनाओं और दोषों को जला देता है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है। एकांत बिना किसी उपदेश के आप को तेजी से सिखा सकता है।
जेटसन मिलरेपा, मार्पा के शिष्य |
किंतु मिलरेपा ध्यान के अभ्यास में घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध थे। उन्होंने उत्तर दिया - "एकांत में ध्यान अभ्यास करना ही स्वयं में मानवता का कल्याण, उनकी सेवा है। हालांकि मेरा मन अब विचलित नहीं होता है तब भी एक महान योगी का एकांत में रहना अच्छी प्रथा है।" (दी हंडरेड थौसेंड सांग्स आफ मिलरेपा, गर्मा चैंग)
मानसिक परिवर्तन में एकांत रहने का अभ्यास अत्यन्त महत्वपूर्ण है। एकांत अभ्यास में स्वाभाविक रूप से निस्तब्धता की साधना भी शामिल है। आप संक्षिप्त अवधियों में एकांत अभ्यास शुरू कर सकते हैं। पहले कम से कम चौबीस घंटे की अवधि से प्रारंभ कर सकते हैं। नगरवासियों के लिए अकेले रहने की जगह ढूंढना कठिन है। शुरू करने के लिए एक शांत कमरा खोजें और उसमें स्वयं को एक या दो दिनों के लिए बंद करलें। आप के साथ कम से कम सामग्री ले जाएं। आपके कमरे में एक संलग्न शौचालय हो तो उत्तम होगा। ध्यान रहे कि यह केवल शुरुआत है। धीरे-धीरे वीरान स्थानों में अभ्यास करने से एकांत की प्रबलता विकसित होगी। मेरा अनुभव यह कहता है कि आप जब प्रगति करोगे तब ध्यान के लिए अनुकूल जगह सहित प्रकृति सब कुछ की व्यवस्था स्वयं ही कर देगी।
निपुण एकांत की परिभाषा को समझने के लिए नीचे दी गई तालिका को देखें :
(बड़ा किया गया चित्र देखने के लिए चार्ट पर क्लिक करें।) |
जागो! स्वयं को संसार की भीड़ से मुक्त करने का प्रयास करो , ताकि भीड़ में भी आप स्वयं को मुक्त पा सकें।
(Image
credit: Dennis
Wells)
शांति।
स्वामीयह आत्म परिवर्तन के योग की श्रृंखला में छठा लेख है।
1 टिप्पणी:
Prabhu yahan to kahani ulti hai. Ekaant v maun tyagna hi duty ban chuka hai..householder hoon prabhu.apni personal priority ko tyagne jaa tapas karva rahe ho prabhu...chalo koi nai..kabhi to apna bhi credit balance itna ho hi jayega ki shanta maa jaisa sthan dena hi padega apko...tab tak hari om.......
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