एक दिन झुण्ड के साथ चरते चरते शेर अन्य बकरियों से बिछड़ जाता है और वह अपने आप को वन के बीच अकेला पाता है। घने वन में अपने आप को अकेला देख कर शेर भयभीत हो जाता है। जब वह सामने से एक भेड़िये को आते देखता है तो अपनी जान बचाने के लिए वह भागने लगता है। परंतु उसे यह देख कर आश्चर्य होता है कि अन्य पशु उस से भयभीत हो कर भागने लगते हैं। वह वहाँ पर रुक कर इस बात का निरीक्षण करने लगता है। उसे लगता है कि अवश्य ही कोई बात है जिस से वह अनभिज्ञ है। वह उस घटना पर और चिंतन करता है और उसे लगता है कि उसे इस बात पर और गहन खोज करनी चाहिए।
वह स्वतंत्र रूप से निर्भय होकर घूमने का निर्णय लेता है। जहाँ भी वह जाता है उसे वही प्रतिक्रिया दिखाई देती है कि सारे पशु उसके भय से भाग जाते। कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा फिर उसने देखा कि उसी की तरह कुछ और शेर एक सांड के मृत शरीर को खा रहे हैं। उसके अंदर भी मास खाने की एवं शिकार करने की अभिलाषा उत्पन्न हो जाती है। वह अपने भोजन के लिए एक बछड़े का शिकार करने का निर्णय करता है। बछड़े के शिकार एवं भोजन करने पर उसे ऐसा आनंद मिलता है जिस की अनुभूति उसने जीवन में पहले कभी नहीं की होती। इसके अतिरिक्त उसके मन में निर्भीकता की भावना उत्पन्न हो जाती है। उसे लगने लगता है कि वन ही उसका वास्तविक घर है और वहाँ उसे कोई हानि नहीं पहुँचा सकता।
इसी प्रकार, आनंद एवं निर्भीकता ही हमारा वास्तविक स्वरूप है। हमारे अंदर का शेर बकरियों की तरह व्यवहार इसलिए करने लगा है क्योंकि हमारी परवरिश उनही की तरह हुई है। हम अपने परिवार एवं समाज से प्रभावित हो जाते हैं। हम कईं कारणवश अपने वास्तविक स्वभाव को पहचान नहीं पाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि सदैव हमने इस संसार को नश्वर शरीर के द्वारा ही महसूस किया है।
जिस आनंद की हम तलाश कर रहे हैं वह हमें बाहरी दुनिया में प्राप्त नहीं होगा। हमारे अंदर परमानन्द का एक सागर है। आत्म बोध का अर्थ है हमारे भीतर छिपे सम्पूर्ण आनंद एवं शांति की प्राप्ति। हमारा स्वरूप एक आनंद एवं शांति के अथाह समुद्र के समान है। परंतु हमारा स्वरूप सांसारिक प्रथाओं के द्वारा परिवर्तित कर दिया गया है। हमारे विचार संसार के विचारों का ही प्रतिबिंब हैं। परंतु हम स्वयं अपने कर्मों एवं मनोकामनाओं के ही परिणाम हैं। हम सांसारिक बंधनों में बंध कर अपने वास्तविक स्वरूप को भूल चुके हैं। यह परिवर्तन पारिवारिक धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों से आया है। सदियों से ये प्रथायें चली आ रही हैं जिन को अधिकतर व्यक्ति खंडित नहीं करते हैं और इसे स्वीकार कर लेते हैं।
हमारी बाहरी दुनिया हमारी भीतरी दुनिया का केवल एक प्रक्षेपण है। वास्तव में, हमारी बाहर की दुनिया, हमारी अंदर की दुनिया की एक सटीक प्रतिकृति है। हमारी भीतरी दुनिया हमारे विचारों से ही निर्मित है। क्योंकि हम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल चुके हैं, इसी कारण हमारे भीतर की दुनिया हमारे बाहर की दुनिया से बहुत प्रभावित होती है। यदि भीतर की दुनिया में अशांति हो, तो हमें बाहर की दुनिया भी उदासीन एवं निराशाजनक लगती है।
आत्म परिवर्तन के योग का लक्ष्य है आपको आपके वास्तविक स्वरूप का बोध कराना और आपको अपनी भीतरी दुनिया का अनुभव कराना। मैं केवल आपको इन प्रथाओं से अवगत करा सकता हूँ तथा आपको इनपर चलने का सही मार्ग दिखा सकता हूँ; इसकी प्राप्ति आप ही पर निर्भर है।
हरे कृष्ण।
स्वामी
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