विचारों से प्रभावित नैतिकता

क्या नैतिकता अप्रभावित एवं सामान्य है? क्या पाँच व्यक्तियों के जीवन को बचाने के लिए आप एक व्यक्ति को मार देंगे? ट्राली के नैतिक प्रयोग को पढ़ें।
नैतिकता के विषय पर मुझसे प्रायः प्रश्न किए जाते हैं। लोग जानना चाहते हैं कि क्या यह उचित है या अनुचित, कि कोई कार्य या व्यवहार नैतिक है या अनैतिक। उचित और अनुचित की क्या परिभाषा है? मैं आपसे पूछता हूँ - हम नैतिकता और अनैतिकता का विभेदन कैसे करें? वे जो मुझसे इस प्रकार का प्रश्न करते हैं प्रायः नैतिकता पर ससक्त विचार रखते हैं। इस में कोई बुराई नहीं - उन की सोच स्पष्ट है। परंतु अधिकतर उनके यह विचार उनके स्वयं के नहीं होते। यह विचारधारा तो मात्र समाज या उनके बड़ों की एक धरोहर है। हर पीढ़ी यह समझती है कि वह विचारधारा ही उचित है।

यदि आप एक पल विचार करें, आप पाएंगे कि न केवल आपकी नैतिकता आपके सोच-विचार से प्रभावित है, अपितु वह आपके हालात और परिस्थिति पर भी निर्भर है। संभव है जीवन में आपके अपने मूल सिद्धान्त हों परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि आपका हर निर्णय पूर्ण रूप से स्वतंत्र, उचित एवं सुनिश्चित है। यह इस पर भी निर्भर करता है कि आप कहाँ रहते हैं, और किस धर्म का पालन करते हैं। कुछ कार्य जो आपके समाज में नैतिक हों, दूसरों के लिए अनैतिक हो सकते हैं। चलिए मैं आपको एक दिलचस्प नैतिक प्रयोग के बारे में बताता हूँ जिसे फिल्लिपा फूटे ने सन १९६७  में रचा था।

कल्पना कीजिए कि दो रेल पटरियां हैं। पाँच व्यक्ति एक रेल पटरी पर बंधे हैं और केवल एक व्यक्ति दूसरी रेल पटरी पर बंधा है। उन्हे पटरियों से बंधनमुक्त करने का समय नहीं है। और एक रेलगाड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। यदि रेलगाड़ी को रोका ना जाए तो वह उन पाँच व्यक्तियों को कुचल देगी। आप उत्तोलन दंड के समीप खड़े हैं। यदि आप उत्तोलन दंड को खींचते हैं, तो रेलगाड़ी दूसरे मार्ग पर चली जाएगी और उन पाँच व्यक्तियों की जान बच जाएगी। परन्तु इस कार्य के फलस्वरूप उस एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी जो दूसरी पटरी पर बंधा है।

आप क्या करेंगे? क्या आपको पाँच व्यक्तियों को मरने देना चाहिए या उस एक व्यक्ति को मार कर पाँच व्यक्तियों का जीवन बचाना चाहिए? यदि वह एक व्यक्ति आपका कोई रिश्तेदार हो तो? साथ ही साथ इन दो प्रयोगों पर भी विचार करें।

प्रथम प्रयोग
कल्पना कीजिए एक ट्राली बड़ी तेज़ी से पाँच व्यक्तियों  की ओर बढ़ रही है। आप एक पुल पर हैं, जिसके नीचे से यह ट्राली जाएगी, और आप किसी वजनदार वस्तु को उसके सामने गिराकर उसे रोक सकते हैं। जैसे ही यह सब हो रहा है एक बहुत भारी व्यक्ति आपके निकट खड़ा है। आपका एक मात्र विकल्प इस ट्राली को रोकने का यह है कि आप उस मोटे व्यक्ति को पुल के ऊपर से उस ट्राली के मार्ग पर गिरा दें। इससे उस व्यक्ति  की मृत्यु हो जाएगी, परन्तु उन पाँच व्यक्तियों का जीवन बच जाएगा। क्या आपको यह विकल्प अपनाना चाहिए?

द्वितीय प्रयोग
एक उत्कृष्ट रोपाना सर्जन (ट्रांसप्लांट सर्जन) के पास पाँच रोगी  हैं। हर एक को एक अलग अंग की आवश्यकता है। उस अंग के आभाव में उनकी मृत्यु निश्चित है। दुर्भाग्यवश, इन पाँचों अंगों के रोपण के लिए किसी भी अंग की उपलब्धता नहीं है। इस चिकित्सक के स्थल पर उसी समय एक स्वस्थ युवा सामान्य निरीक्षण के लिए आता है। निरीक्षण के दौरान, चिकित्सक को यह ज्ञात होता है कि उस युवा के अंग उन अन्य रोगियों के अंगों के रोपण के योग्य हैं। क्या चिकित्सक को उस स्वस्थ युवा की बली देकर उन पाँचों रोगियों की जान बचानी चाहिए?

इन सभी प्रयोगों में, एक व्यक्ति के जीवन का त्याग पाँच व्यक्तियों को जीवित रखने के लिए किया गया है। परंतु नैतिकता के प्रश्न इतने सरल नहीं होते। जीवन निर्विवाद नहीं होता। आपको वास्तव में किसी धर्म या किसी व्यक्ति की आवश्यकता नहीं, यह बताने के लिए कि क्या उचित है और क्या अनुचित। क्योंकि वे तो सामान्य रूप से ही व्याख्यान करेंगे, जबकि आपका जीवन सामान्य नहीं - उसे तो केवल आप ही व्यक्तिपरक ढंग से समझते हैं। यदि आप सामान्य रूप से उचित और अनुचित का विभेदन करने लगें, तो केवल आप स्वयं को और अधिक दोषी पाएंगे। अपनी सोच को स्वतंत्र करें। मैं यह नहीं कह रहा कि आप नियमों का पालन ना करें परन्तु मैं आपके समक्ष यह सुझाव रख रहा हूँ कि, किसी भी नियम का अनुसरण करने से पहले आप उसका निरीक्षण करें। करुणा के मार्ग पर चलने का प्रयास करें - यह सदैव लाभदायक होता है।

यदि आप जीवन में निराशाजनक परिस्थितियों का सामना कर रहे हों तो अपने अंतर मन की आवाज़ सुनें। फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की के शब्दों में : "इस बुद्धी से अधिक महत्वपूर्ण वे हैं जो बुद्धी का मार्गदर्शन करते हैं - चरित्र, ह्रदय, उदारता तथा प्रगतिशील विचार।"  बुद्धी तो गणना करने वाला यन्त्र है। इसमें किसी भी कार्य को सही सिद्ध करने की क्षमता होती है। अन्ततः  आपका चरित्र ही आपको आपके सिद्धान्तों पर अडिग अटल रहने की क्षमता प्रदान करेगा। सोच-विचार से प्रभावित नैतिकता तो गणनात्मक होती है - यदि आप यह करें तो परिणाम स्वरूप यह होगा, यह इस कारण से अच्छा है और यह इस कारण से बुरा। अपितु अप्रभावित नैतिकता में कोई गणना नहीं की जाती - वह तो केवल अपने बनाये गए मानदंड का पालन करना है, चाहे वह नैतिक मानदंड हो या नहीं। हालात और परिस्थिति से परे नैतिकता? यह केवल मिथ्या है।

अपने व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करने में संकोच ना करें। अपना मानदंड स्वयं स्थापित करें।
(Image credit: Kip DeVore)
शांति।
स्वामी
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1 टिप्पणी:

anu ने कहा…

Wow...Swamiji ki stamp lagne ka matlab meri soch sahi disha mein hai. Isiliye to guru ki avashyakta hoti hai ki apni checking hoti rahe...hari om

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