दान - परोपकारी कार्य


यहाँ दान पर हिन्दी में एक  वीडियो प्रवचन है। प्रस्तुत है इसका एक संक्षिप्त अनुवाद:

श्री कृष्ण ने अर्जुन को तीन प्रकार के दान बताये है। प्रथम सात्विक दान जो दयालुता के भाव से किया जाता है, दूसरा राजसी दान जो भावुकता के भाव से किया जाता है और तीसरा तामसी दान जो अज्ञानता के भाव से किया जाता है। सात्विक दान से मनुष्य मुक्ति की ओर बढ़ता है, राजसी दान से वह बंधन में पड़ता है तथा तामसी दान से वह नीचे की ओर बढ़ता है और मोक्ष का अनुभव नहीं करता है। पहला मुक्त करता है, दूसरा बांधता है और तीसरा मनुष्य के पतन का कारण बनता है। जो दान बिना किसी अपेक्षा के किया जाता है, जो दूसरों के कल्याण के लिए किया जाता है, और जो समय, आवश्यकता और प्राप्तकर्ता पर विचार करने के बाद दिया जाता है, उसे सात्विक दान कहा जाता है।

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्‌॥ (भगवद गीता, 17.20)

दान मेरा कर्तव्य है और मैं ईश्वर का आभारी हूँ कि मैं परोपकार करने योग्य हूँ; ऐसी भावना से बिना स्वार्थ के दिया गया दान ही उच्च कोटि का दान होता है।  दान सदैव स्वयं की स्थिति तथा प्राप्तकर्ता की आवश्यकता एवं प्रमाणिकता पर विचार करने के बाद ही दिया जाना चाहिए।

और जानने के लिये प्रवचन वीडियो देखें।



शांति।
स्वामी
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