क्या आप किसी पर सवार हैं या स्वयं कोई बोझ उठा रहे हैं? परिस्थिति जैसी भी हो, अपने आप को क्षमा करें। |
एक मठ में एक बार एक गुरु क्षमाशीलता पर उपदेश दे रहे थे। कुछ शिष्यों ने तर्क दिया कि हालांकि क्षमा करना अति उत्तम होता है, वह बहुत कठिन होता है। शिष्य बोले कि कुछ भावनाओं को मन में दबाए रखने में क्या बुराई है, विशेष रूप से यदि वे उनके ध्यान में बाधा नहीं डालें।
गुरु ने उनकी बात शांति से सुनी। फिर उन्होंने अपने शिष्यों को कहा कि वे कुछ आलू लें और उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम खोदें जिन्हें वे या तो क्षमा नहीं कर पा रहे थे अन्यथा क्षमा नहीं करना चाहते थे; प्रति व्यक्ति एक आलू। उन्होंने शिष्यों को कहा कि वे अपने आलू प्रति दिन एक थैली में डाल कर कक्षा में ले कर आएं और हर दिन उन्हें वापस अपने घर ले कर जाएं।
शिष्यों ने निर्देश का पालन किया और अगले दिन सभी अपनी अपनी थैली उठा कर आए। कुछ शिष्यों की थैली दूसरों की तुलना में बड़ी थी। एक सप्ताह बीत गया और सभी शिष्य अपनी थैलीयों को उठाते उठाते थक गये थे। आलू सड़ने लगे और उनसे दुर्गंध आने लगी। शिष्यों ने अपने गुरु से पूछा कि उन्हे और कितनी देर तक ये थैलीयाँ उठानी होंगी, और कहा कि यह दुर्गंध और अनावश्यक भार असहनीय हो रहा था।
"तो, तुम ने क्या सीखा?" गुरु ने पूछा।
"आलू हमारी नकारात्मक भावनाओं के समान हैं। उन को पकड़ कर रखना एक बोझ उठाने एवं दुर्गंध सहने के समान है" शिष्यों ने उत्तर दिया।
"निस्संदेह। परन्तु क्या आप बिना थैली के आलू को उठा सकते हैं?" ऋषि ने कहा, "यदि आलू आप की नकारात्मक भावना है, तो थैली क्या है?"
सब मौन हो गए। ज्ञान का सूरज उभरा और उन्हे अहसास हुआ कि वास्तव में थैली उनका मन था।
आभार, एकाग्रता एवं धनात्मकता की तरह, क्षमाशीलता को भी एक अभ्यास के रूप में देखा जा सकता है। यह एक जागरूक कार्य है - आपको यह सदैव स्मरण रहे कि आप को अपनी थैली में सड़े हुए आलू नहीं डालने चाहिए। समय के साथ, यह आपकी आदत बन जाएगी, आपके चरित्र का एक अंश बन जाएगी।
मेरा आज का मुद्दा दूसरों को क्षमा करने पर नहीं, अपने आप को क्षमा करने पर है। जब अन्य व्यक्ति मानसिक अथवा शारीरिक रूप से आपसे दूर हो जाते हैं तो संभवतः आप अंततः उन्हें क्षमा कर देते हैं अन्यथा उन्हें भूल जाते हैं और समय के साथ दर्द भी कम हो जाता है। परंतु आप अपने आप से दूर नहीं जा सकते हैं, आपका कोई भी कर्म आपसे अग्यात नहीं। जागरूक रूप से अथवा अवचेतनता से, जब भी आपसे कोई भूल होती है, आप अपने आप को एक आलू थमा देते हैं।
यह मानव प्रकृति है कि वह अपने आप से बहुत अपेक्षा रखता है। इन ही उम्मीदों के कारण हम प्रगति कर पाते हैं या कोई कार्य कर पाते हैं या कुछ पाते हैं। दूसरों की हम से अपेक्षाओं को पूरी करने की तुलना में स्वयं की अपेक्षाओं को पूरी करना और कठिन है। जब जब आप स्वयं की अपेक्षाओं को पूरी करने में विफल होते हैं, तब तब आप अपने आप को एक और आलू दे देते हैं।
सब कुछ होने पर भी एक कमी महसूस करना, कोई स्पष्ट कारण ना होने पर भी नकारात्मकता की भावना का होना, मन में एक प्रकार की उदासी का होना, अपने आप को अधिक समय के लिए आनंदित ना रख पाना - ये सब संकेत हैं कि आप अपने आप पर बहुत दबाव डाल रहे हैं, ये इस बात के लक्षण हैं कि आप स्वयं को क्षमा नहीं कर पाते हैं।
जब आप अपने आप को क्षमा करने लगते हैं तब दूसरों को क्षमा करना सुलभ हो जाता है। क्षमा का प्रश्न तभी उठता है जब आपको लगता है कि आप के साथ अन्याय किया गया है। यदि आपको ऐसा नहीं लगता है कि आपके साथ कुछ गलत किया गया है, अन्यथा यदि आप अप्रभावित रहते हैं, फिर क्षमा की कोई आवश्यकता ही नहीं। जितना अधिक आप अपनी गलतियों के लिए स्वयं को क्षमा करने लगते हैं, और अधिक आप दूसरों की गलतियों से अप्रभावित रहते हैं। असत्यवत? केवल अगर आप क्षमाशीलता को गलती करने का लाइसेंस समझ बैठें।
तो, कैसे अपने आप को क्षमा करें? मैं आपके समक्ष एक सरल दो-कदम वाली विधि प्रस्तुत करता हूँ:
१. अवलेखन
कुछ देर शांति से बैठ कर उन विषयों की एक सूची बनाएं जिन के लिए आप स्वयं को क्षमा करना चाहते हों। अपनी सूची में केवल अपने कर्मों को ही सम्मिलित ना करें, परन्तु उन विषयों को भी शामिल करें जहाँ आप विफल हुए अथवा आप के साथ अन्याय हुआ हो या आप को अप्रिय परिस्थितियों का अनुभव करना पड़ा हो। अपने आप को क्षमा करें। अपने भीतरी घावों पर मलहम लगाएं। ऐसा होने दें। ऐसा कभी ना सोचें कि आप के साथ जो भी बुरा हुआ था या हो रहा है उसमें आप का दोष है। अपने आप को अपराधी ना समझें। जब व्यक्ति सत्य का साथ दे और उसके उद्देश्य प्रामाणिक हों तब कभी कभी उसे कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं जिसके परिणाम निराशाजनक हो सकते हैं। आपने वही किया जो आप को उस समय सही लगा। यदि आप को पता था कि वह सही नहीं था तब भी अपने आप को क्षमा करें, विशेष रूप से यदि आप उस गलती को दोहराना नहीं चाहते हैं। क्यों? क्योंकि अतीत को बदला नहीं जा सकता। अतीत में की गई भूल के कारण अपने वर्तमान को दंडित ना करें और अपने भविष्य को नष्ट ना करें। वास्तव में, अपने आप को क्षमा करके आप अपनी गलतियों को ना दोहराने की संकल्प शक्ति प्राप्त करेंगे।
२. सुस्पष्ट रूप से क्षमा करें
एक आईने के सामने खड़े हो जाएं, और सूची के प्रत्येक विषय को पढ़ें। हर विषय पर कुछ देर चिंतन करें और फिर उच्च स्वर में कहें कि मैं स्वयं को क्षमा करता हूँ। अपने विश्वास को और सुदृढ करने के लिए आप अन्य शब्दों का प्रयोग भी कर सकते हैं। सूची के प्रत्येक विषय की समाप्ति पर उस पर रेखा अथवा क्रॉस का चिह्न बनाएं और अगले विषय पर जाएं। यह अभ्यास तब तक जारी रखें जब तक आप सूची को समाप्त ना कर दें। यदि आप इसे सही ढंग से करें, तो संभवतः आप अभ्यास के दौरान हँसेंगे या रोएंगे। अभ्यास की पूर्णता पर अपनी सूची को नष्ट कर दें। अगली बार जब आप यह अभ्यास फिर करना चाहते हैं तब एक नयी सूची बनाएं। संभवतः सूची में वही विषय होंगे जो पहले थे, फिर भी हर बार एक नयी सूची बनाएं और प्रत्येक बार उसे नष्ट कर दें।
जब कोई और आप से क्षमा याचना करता है तब आप संभवतः उसे क्षमा कर देते हैं, परन्तु आप स्वयं को आसानी से क्षमा क्यों नहीं कर पाते हैं? स्वयं पर इतना निर्दय ना बनें।
यदि आप इस अभ्यास से सम्पूर्ण लाभ उठाना चाहते हैं, तो दो बराबर लंबाई की सूची बनाएं। पहली सूची में ऐसे विषय हों जिसके लिए आप स्वयं को क्षमा करना चाहते हों, और दूसरी सूची में ऐसे विषय हों जिसके लिए आप दूसरों को क्षमा करना चाहते हों। जब जब आप अपने आप को अपनी भूल के लिए क्षमा करते हैं, दूसरों को उनकी गलती के लिए भी क्षमा करें। इस प्रकार शीघ्र ही आप के सभी आलू खत्म हो जाएंगे।
मुल्ला नसरुद्दीन एक कब्रिस्तान से गुजर रहे थे। वहाँ एक कब्र के पत्थर पर उनका ध्यान गया जिस पर लिखा था: "मरा नहीं, केवल सो रहा हूँ।"
कुछ पल उस पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा, "वह किसी और को नहीं केवल स्वयं को ही धोखा दे रहा है।"
झूठे विश्वास निर्बल होते हैं। अपने बोझ को नकारो मत। जब आप स्वयं के विषय पर चिंतन करेंगे तब आप देखेंगे कि आप की थैली कितनी बड़ी है, आलू कितने पुराने हैं, थैली कितनी भारी है। आप को इसे खाली करने का अवसर मिलेगा और तब आप अपने आप को हलका महसूस करेंगे, अत्यंत सुखी और सभी बंधनों से मुक्त पाएंगे।
एक गहरी सांस अंदर लें। फिर उसे बाहर छोड़ें। इसी प्रकार अपने बोझ को हटा कर अपने आप को हलका करें। क्षमाशील बनें, स्वयं से शुरू करें। अपने आप के साथ स्नेही एवं करुणामय बनें - आपका जीवन इस पर निर्भर है।
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credit: Tom Claytor)
शांति।स्वामी