ठण्ड मे अधिक दुखता है

जैसे हिम ठंड में सख्त और भंगुर बर्फ बन जाती है, वैसे ही करूणा रहित ह्रदय कठोर हो छोटी सी चोट से ही टूट जाता है।
एक मठ में किताबी ज्ञान से भरा हुआ एक साधक रहता था। शास्त्रार्थ तथा धार्मिक वाद-विवादों में कोई उसे पराजित नहीं कर पाता था। धार्मिक कृत्य के पालन में वह निपुण था। आत्म-बोध और ईश्वर प्राप्ति का उसपर जुनून सवार था। वह अपना पूरा समय विभिन्न धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने में व्यतीत करता था। उसके लिए ईश्वर, ध्यान और आत्म-बोध ही सब कुछ था। किताबों से सूखा ज्ञान लेकर उसमें कदाचित उच्चता और दम्भ की भावना आ गयी थी। वो केवल अपने मोक्ष के लिये प्रयत्नशील था, आसपास चाहे कोई मर क्यूं ना रहा हो, उसे कोई परवाह ना थी।  मोक्ष की प्राप्ति ही उसका परम लक्ष्य था तथा किसी दूसरे का कष्ट उसे बहुत सामान्य लगता, उसे लगता कि किसी दूसरों की उलझनों को सुलझाना समय व्यर्थ करना था। हालाँकि उसने सब शास्त्रो का अध्यन किया हुआ था परन्तु फिर भी वह जल्दी क्रुध हो छोटी छोटी बातों पर भड़क जाता था।

उसके गुरु एक सिद्ध पुरुष थे। वो अपने शिष्य के गुण-अवगुण से भली भांति परिचित थे। हालाँकि वह अपने शिष्य के ध्यान और संकल्प की सराहना करते थे, उन्हे इस बात का अहसास था कि उनके शिष्य अपने वर्तमान मानसिकता के साथ मुक्ति प्राप्त नहीं कर पायेंगे। कई बार उन्होंने अपने शिष्य में दया और विनम्रता को जाग्रत करने का प्रयास किया लेकिन शिष्य के अभिमान और हठ के कारण गुरु असफल रहे।

एक दिन गुरु ने हिमालय जाकर तीन महीनों की एक साधना करने का निर्णय किया। वह अपने शिष्य को भी अपने साथ ले गये। हिमालय के बर्फीले पहाड़, खूबसूरत झरने, लंबे पेड़ों के घने जंगल और जंगली जानवरों के बीच उन्हे एक गुफा मिली जहां वह दोनों आराम से रह सकते थे। गुफा से कुछ दूर ही एक नदी भी बहती  थी। उन्होंने अपनी गुफा में कुछ मूल वस्तुएँ और खाने-पीने का समान रख लिया। कुछ समय बाद एक दिन भारी बर्फ़ पड़ने लगी।

शिष्य नदी से पानी लाने के लिए गया। बर्फीली ज़मीन पर चलते समय वह फिसल कर नीचे गिर गया। बाल्टी लुढ़कती हुई नदी में गिर गई और दुर्भाग्यवश उसका दहिना हाथ बर्फ में छिपे हुए एक नोकीले पत्थर से टकरा गया। ठंड के कारण सुन्न हाथ पर चोट लगने से अत्याधिक पीड़ा हुई। दर्द से कराहता हुआ वह गुफा की ओर वापिस भागा। उसको कठोर मौसम पर अत्यन्त क्रोध आया और बाल्टी के खो जाने की चिन्ता भी सताने लगी (हालाँकि उनके पास एक अतिरिक्त बाल्टी थी)। दर्द के कारण वह चिढ़ हुआ था। गुफा में पहुँच कर उसने गुरु को दुर्घटना के बारे में बताया।

उन्होने शिष्य के घायल हाथ को जांचा और कहा, "यह घाव तो बहुत गहरा है। मैं इस पर थोड़ा गरम पानी डाल देता हूँ।"
जब पानी गरम हो रहा था, उन्होंने कहा, "ठंड में दर्द और अधिक महसूस होता है ना?"
"जी, गुरुजी।"
गुरु ने रक्त के बहाव और दर्द को कम करने के लिए शिष्य के हाथ पर गरम पानी डाला। "यह आरामदायक है - मुझे राहत मिल रही है", शिष्य ने कहा।
"सौहार्द अर्थात गर्मी तो स्वाभिक रूप से ही सुखदायी है, पुत्र।"

जब शिष्य का दर्द कुछ कम हुआ, तब उनके गुरु नदी के पास पड़ी बाल्टी को लेकर आये और लौट कर आने पर उन्होंने कहा:
"केवल धर्म या अनुष्ठान इत्यादि इस मृत बाल्टी के समान होते हैं। वे कभी एक जीवित प्राणी से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकते। यह बाल्टी मात्र एक साधन है जिस का प्रयोग एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है, बाल्टी अपने में स्वयं कोई लक्ष्य नहीं है। क्या तुम जानते हो तुम दूसरों से क्यों इतना चिढ़ जाते हो? क्योंकि तुम अंदर से बर्फ के समान ठंडे और सुन्न हो। ठंड में दर्द और अधिक महसूस होता है। अपने चारों ओर इस बर्फ को देखो। जब ठंडी हवा चलती है, यह बर्फ और सख्त हो जाती है। वैसे ही जब तुम कठोर बन जाते हो तब तुम अपने ह्रदय को सुन्न और सख्त बना देते हो। एक झटका लगते ही तुम टूट जाते हो! उपदेश कभी कभी बर्फ के समान सख्त हो सकता है, परंतु करुणा सदैव गुण-गुणे पानी के समान आरामदायक होती है। आज के हमारे विश्व को दयालु मनुष्यों की नितान्त आवश्यकता है। केवल ग्रंथों का अध्ययन करने या स्वयं के निर्वाण में ही अपना सारा समय व्यतीत करने से इस जगत का कल्याण कैसे होगा? जीवित प्राणियों के दर्द को समझना अधिक महत्वपूर्ण है या बेजान संपत्ति की चिंता करना? इसमें कोई संदेह नहीं कि ध्यान और साधना करना महत्वपूर्ण हैं, परंतु वे केवल आपके लक्ष्य को पाने का एक माध्यम है। उनका उद्देश्य आपको एक शांत और संतुलित अवस्था में लेकर आना है। किन्तु मन की शांति का यह अर्थ नहीं कि आप सुन्न और उदासीन हो जायें। वास्तव में इसका यह अर्थ है कि आप सदा दयालु और करुणामय हों। दूसरों के दु:ख और दर्द को महसूस करें और सदैव लोगों की सहायता करने का प्रयास करें। यही आत्म-बोध है।"

शिष्य को यह अहसास हुआ कि आखिरकार उसके गुरु एक सिद्ध महापुरुष क्यों माने जाते थे। वह समझ गया कि दया और करुणा ही साधना का मूल तथा लक्ष्य है। ये गुण किताबी ज्ञान से कई अधिक महत्वपूर्ण हैं, यही सिद्धि है। केवल ग्रंथों का ज्ञान पर्याप्त नहीं है और वह व्यक्ति के मुक्ति का सूचक नहीं है। अपने जीवन के दर्दनाक घटनाओं, लोगों और परिस्थितियों की एक सूची बनाओ, और फिर उस सूची को जला दो या फेंक दो। उन्हें अंदर रखोगे तो रख कर तुम कठोर और सुन्न हो जयोगे, छोटे से प्रहार से ही टूट जायोगे। याद रखें, करुणा आरामदायक होती है और जब ह्रदय सख्त और ठण्डा होता है तभी दर्द और अधिक महसूस होता है।

करुणामय और शांत रहने से आत्म साक्षात्कार का मार्ग अत्यन्त सुलभ हो जाता है।

शांति।
स्वामी
Print this post

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Share