नकारात्मकता से उपर उठें

आप को क्या दिख रहा है - एक क्रुद्ध वृद्ध जोड़ी या हँसते गाते युवा? या दोनो? आप किस पर ध्यान देना चाहते हैं? यह आप ही को चुनना है।
जीवन में कभी कभी ऐसा दौर आता है जब आप निराश होते हैं और आप को अनेक संघर्षों एवं तनावों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में लगता है कि आपने जीवन में व्यक्तिगत या व्यावसायिक रूप में जो भी उपलब्धि हासिल की है मानो वह सभी भाग्य की देन थी, और जीवन में सुख शांति कभी लौट के आयेगी ही नहीं। आप यह जान नहीं पाते हैं कि जीवन के इस प्रकाशहीन सुरंग में दिखने वाली रोशनी वास्तव में आशा की किरण है कि आपकी ओर तीव्र गती से आने वाली संकट की एक  रेलगाड़ी। जीवन सूखा लगने लगता है। आप अत्यन्त अकेलेपन का अनुभव करते हैं। ऐसा लगता है कि आप के आसपास जो लोग हैं उन्हे आपकी चिंता ही नहीं, और जो आपकी चिंता करते हैं वे चाह कर भी आपकी मदद करने में असमर्थ रहते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि जीवन के विभिन्न रंग होते हैं। लगभग सभी लोगों को जीवन में अनेक संघर्षों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आपकी आकांक्षा जितनी बड़ी हो, चुनौती उतनी ही कठिन होती है। जितना अधिक प्रतिरोध होगा, संघर्ष भी उतना ही कड़ा होगा। संघर्ष प्रतिरोध का ही परिणाम होता है, बाकी सब तो मात्र परिश्रम है। पानी के बहाव के साथ बह्ने में कोई संघर्ष नहीं, उसके विरुध तैरने में अत्याधिक बल चाहिये।  कठिन एक सापेक्ष और तुलनात्मक शब्द है जो मन की अवस्था पर निर्भर है। संघर्ष और चुनौती भी उसी प्रकार तुलनात्मक होते हैं। मन जितना प्रबल हो, कठिन स्थिति से जूझने की क्षमता उतनी ही अधिक बढ़ जाती है।

कुछ लोग में स्वाभाविक रूप से दूसरों की तुलना में अधिक शक्ति होती है। मैं विशेष रूप से मानसिक शक्ति की बात कर रहा हूँ। आपकी मानसिकता और आपकी मानसिक शक्ति दो महत्त्वपूर्ण लक्षण होते हैं, जिनकी सहायता से आप नकारात्मकता को दूर कर सकते हैं।नकारात्मकता आप को निरुत्साहित और दुर्बल बना देती है, तथा आपके सोचने की शक्ति को भी लगभग मिटा देती है। जब हालात प्रतिकूल हों, तो यह आप पर निर्भर है कि आप अपने मन में नकारात्मक विचार भरें या एक सकारात्मक मानसिकता अपनायें। इसका चुनाव आपको करना है। यदि आप नकारात्मकता को अपनी आदत बना दें, तो आप अधिकतर अपने आप को चिढ़े हुए और शिकायती पायेंगे।

एक संघर्षरत रिश्ते में, यदि आप किसी कारणवश अपने साथी के बिना नहीं रह सकते, तो प्रसन्न रहने के लिए आप अपना ध्यान अपने साथी के गुणों पर केंद्रित करें। यदि आपने एक व्यक्तिगत रिश्ते को तोड़ने का दृढ़ निश्चय कर लिया है, तो संभवतः आप में इतनी मानसिक शक्ति भी होगी कि आप उस रिश्ते को जोड़ भी सकते हैं। परंतु नकारात्मकता की भावना द्वारा आप इस कार्य की पूर्ति नहीं कर सकते। प्रतिकूल या अवांछनीय परिस्थिति आप को निरुत्साहित और निराश कर सकती है। ऐसे में आप जितना अधिक नकारात्मक बनने लगते हैं, स्थिति उतनी ही आपके वश से  बाहर जाने लगती है, जिस के कारण आप की भावनात्मक और मानसिक स्थिति को और अधिक हानि पहुँचती है। यह एक अद्भुत दुविधा है। या तो आप उस स्थिति से दूर भागें या फिर अपनी नकारात्मकता को दूर भगाएं। दोनों का एक ही परिणाम होगा। यहाँ आप के लिए कुछ सुझाव हैं। ये परस्पर अनन्य नहीं हैं। इनका परीक्षण करें और वह चुनें जिस से आप को सब से अधिक लाभ हो। आप एक से अधिक विधियों का भी प्रयोग कर सकते हैं।

1. सकारात्मक गुणों पर ध्यान दें

आप अपने मन को इस प्रकार प्रशिक्षित कर सकते हैं कि आपका ध्यान सदैव सकारात्मक पहलुओं पर केंद्रित रहे। स्थिति जितनी भी गंभीर क्यों ना हो, वह संपूर्ण रूप से नकारात्मक नहीं हो सकती। उदाहरणार्थ आप अपने रिश्ते से प्रसन्न नहीं हैं और आप इस बात को लेकर बहुत निराश हैं। ऐसे में अपने साथी और अपने वर्तमान जीवन के सभी सकारात्मक गुणों एवं विषयों की एक सूची बनायें। इस सूची को पढ़ें और उसकी समीक्षा करें। इस से आप के अंदर कृतज्ञता की भावना उत्पन्न होगी। और इस के फलस्वरूप सकारात्मकता अपने आप जागेगी। सकारात्मकता के बिना आभार और कृतज्ञता की भावना का होना असंभव है।

2. स्थिति को स्वीकार करें

इस विधि की मदद से आप को मानसिक शांति का अहसास होगा। उदाहरणार्थ, आपका साथी आपकी देखभाल करता है और वह अत्यंत करुणामय एवं स्नेहमय व्यक्ति है। परंतु वह आपकी अधिक सराहना नहीं करता। यही उसका स्वभाव है। अपने साथी से अनेकों बार इस विषय पर चर्चा करने के पश्चात भी कुछ नहीं बदला। यदि प्रशंसा आप के लिए इतनी महत्वपूर्ण है, तब आपको रिश्ते को तोड़ने के विषय में विचार करना चाहिए। अन्यथा, यदि आप स्थिति को स्वीकार करते हैं, तो आप को शांति और सकारात्मकता का अनुभव होगा।

3. अपना दोष स्वीकार करें

इस से मेरा अर्थ यह है कि कभी कभी, यह हो सकता है कि आप एक नाकाम रिश्ते में फँस गये हैं। मेरी निजी राय यह है कि किसी भी हालात में आप को एक अपमानजनक साथी के साथ कभी भी संबंध नहीं रखना चाहिए। यदि हर प्रयत्न करने के बाद भी आपके अपमानजनक साथी का स्वभाव बदलता नहीं तब यह स्वीकार कर लें की इस संबंध को जोड़ कर आपने भूल की है। उस रिश्ते को तोड़ने का समय आ गया है। एक अपमानजनक संबंध आप को बहुत जल्द मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से नष्ट कर सकता है, और कभी कभी इतना की आप कभी संभल नहीं पायेंगे। बेहतर होगा कि आप उस रिश्ते को तोड़ दें।

4. कर्म पर ध्यान दें

चाहे आप एक तनावपूर्ण संबंध या प्रतिकूल स्थिति में फँसे हों , या आप एक व्यक्तिगत अशांति या पेशेवर संकट से गुजर रहे हों, कर्म के बिना परिवर्तन की आशा नहीं कर सकते हैं। आप अगर परिवर्तन देखना चाहते हैं तो आप को कर्म करना होगा। कर्म नकारात्मकता को दूर भगाता है। जब आप कर्म पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तो आपकी स्थिति में परिवर्तन अवश्य आयेगा।

5. चिंतन करें

यदि आप सहज भाव से जीवन के बीते हुए सुनहरे पल या उज्ज्वल भविष्य पर चिंतन करें तो कुछ ही मिनटों में आप एक सकारात्मक आनंद का अहसास कर सकते हैं। किसी भी ध्यान या चिंतन का प्रभाव उसकी प्रबलता, नियमितता और स्पष्टता पर निर्भर है।

नकारात्मकता सीधे आपकी चेतना, मन और आपके शरीर को प्रभावित करता है। वास्तव में, यह एक रोग है, एक मानसिक रोग। यदि आप नकारात्मक रहने का निर्णय करते हैं, तब आप अपने आप को सदैव तनावपूर्ण और अस्वस्थ पायेंगे, तथा अक्सर बीमार पड़ते रहेंगे। अन्य शारीरिक वेदनाओं के विपरीत यह रोग आप ही के वश में है। यदि आप सकारात्मक रहने का निर्णय करते हैं, तब आप को ऐसी कोई परेशानी नहीं हो सकती।
जब आप निराश होते हैं, वही समय है अपनी आंतरिक शक्ति को जगाने का। एक रबर बैंड की शक्ति का वास्तविक परीक्षण तब होता है जब उसे पूरी तरह खींचा जाये। उसी प्रकार जब जीवन बहुत तनावपूर्ण  एवं कठिन लगे, तब अपने मन को शांत रखिये। अपने आप को याद दिलाना कि यह कोई प्रलय नहीं है। जिस ईश्वर का हाथ सदैव आपके सर पर रहा है वह भविष्य में भी आपके साथ ही रहेगा। अपने आप को याद दिलायें कि आप के अंदर का भय वास्तव में आपके मन की अस्थिरता से ही उत्पन्न हुआ है।

चाहे जादूगर एक महिला के दो हिस्से कर दे या एक हाथी को हवा से उत्पन्न कर दे, यह सब एक बड़ा भ्रम है। आप का मन भी एक निपुण एवं असाधारण जादूगर है। परंतु अगर आप टिकट नहीं खरीदते हैं, तो कोई खेल ही नहीं होगा। ये याद रखिये कि दोष चाहे जिसका भी हो, यदि आप नकारात्मक रहते हैं तो उसका सबसे अधिक प्रभाव आप ही पर होगा। इसलिए अपने स्वयं की भलाई के लिए सकारात्मक रहें। उन विचारों को अस्वीकार करें जो आप को निर्बल बना देतें हैं। उन्हे मन में रखने का कोई हित नहीं। अपने जीवन का स्वयं निर्माण करें। नकारात्मक विचारों  से अपने आप को मुक्त करें।

शांति।
स्वामी
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