यदि सत्य कहा जाए (If Truth Be Told — A Monk’s Memoir) मेरा संस्मरण है जो हार्पर कॉलिन्स पब्लिशर द्वारा नवंबर २०१४ में प्रकाशित किया गया। यह मेरे जीवन की अब तक की यात्रा का कथन है। |
एक दिन सुबह मैं उठा, तैयार हुआ, अपने कार्यालय गया परंतु शाम को घर वापस लौट कर नहीं गया। इसके बजाय, मैं एक रेलगाड़ी में बैठ कर अपने सभी मित्रों, संबंधियों तथा अपनी संपत्ति से दूर चला गया। अपने परिवार को कोई चेतावनी अथवा संकेत भी दिए बिना मैं बस निकल गया, हालांकि मैं यह अच्छी तरह से जानता था कि वापसी की कोई संभावना ही नहीं थी।
ऐसा नहीं था कि मैंने उनकी भावनाओं के विषय में नहीं सोचा। मैंने सोचा था किंतु अनदेखा करने का निर्णय किया क्योंकि मैं अपने भीतर से आने वाली पुकार को और अनदेखा नहीं कर सकता था। मैं अब वही नहीं करना चाहता था जिसे सारा संसार सही या सामान्य मानता था - सुबह उठ कर, पूरे दिन काम करकर, शाम को घर आकर, रात को भोजन खा कर सोने जाना। वैसे भी क्या सामान्य है इसका निर्णय किस ने किया था? यदि मैं दूसरों के द्वारा निर्धारित नियमों से अपना जीवन जीता तो फिर मेरे जीवन का लक्ष्य क्या था, मेरा व्यक्तिगत प्रयोजन क्या था - यदि ऐसा कुछ था भी?
मेरे सामने पिछले दशक में बड़ी मेहनत से अर्जित किया गया मेरा धन था। परंतु अंततः वाहन, धन एवं सम्पत्ति तो केवल निर्जीव वस्तु थे। वे ऐसे ही थे और सदैव ही वे ऐसे ही रहेंगे। मैं इस संपत्ति के साथ पैदा तो नहीं हुआ था और मेरी मृत्यु के पश्चात निश्चित रूप से मैं इन्हें अपने साथ ले कर तो नहीं जाऊँगा। तो फिर जीवन के इस संघर्ष का कारण क्या था? और, इसका कारण जो कुछ भी था, क्या वह इतना महत्वपूर्ण था?
अनगिनत बार, मैं अपने आप को सांत्वना दे चुका था कि मुझे एक दिन अपने जीवन का उद्देश्य अवश्य मिल जाएगा, परंतु मेरा आत्म विश्वास दुर्बल होने लगा था और कईं प्रश्न ढोल की तरह मेरे सिर में बज रहे थे। इन प्रश्नों से मेरा सिर फटने लगा और अपनी चारों ओर की ध्वनि - पक्षियों का चहकना, वर्षा का बरसना, मेरे माता-पिता के नम्र शब्द - मैं कुछ भी नहीं सुन पा रहा था और ना उसका आनंद ले पा रहा था।
मैं ने जीवन में अर्जित की गई सभी सम्पत्ति एवं उपलब्धियों को त्याग दिया था और जिन सब को भी मैं जानता था उन सब को छोड़ दिया था। मैं अपने अतीत के प्रति उदासीन महसूस कर रहा था। एक उदासीन अजनबी के समान। जिस प्रकार प्रभात के आते ही रात का अस्तित्व मिट जाता है, उसी प्रकार भौतिक संसार से मेरे प्रस्थान ने जीवन को मैं जिस रूप में जानता था उसे सम्पूर्ण रूप से मिटा दिया।
एक इंटरनेट केफ़े से मैं ने अपने परिवार एवं प्रिय मित्रों को ईमेल भेजा, यह कहते हुए कि मैं दूर जा रहा था और मुझे यह नहीं पता था कि मैं कब लौट कर आऊँगा। मेरे ह्रदय में कोई भावनाएँ ही नहीं थीं जब मैं ने अपने ईमेल अकौंट को बंद किया, अपने सिम कार्ड को नष्ट किया, अपने फ़ोन का दान किया और तीन दशकों के मेरे भौतिक जीवन से नाता तोड़ दिया। पुत्र, भाई, मित्र, प्रमुख, एम.बी.ए., सहयोगी - मुझसे जुड़े इन सभी उपनामों का त्याग करते हुए मैं एक नए रूप में दुकान से बाहर निकला।
यह नया अस्तित्व सम्पूर्ण नग्नता का था - नहीं, भौतिक अथवा शारीरिक दृष्टि से नहीं, किंतु नग्न इसलिए क्योंकि इसमें मैं कुछ भी नहीं था, मेरा कुछ भी नहीं था - कुछ नहीं, ना कोई नाम ना कोई पहचान - एक सन्यासी का जीवन। केवल इसी शून्यता की अवस्था में मुझे वह प्राप्त हो सकता था जिसकी मुझे नितांत रूप से आवश्यकता थी - एक वास्तविक आत्मिक जीवन।
ऊपर लिखित कथन मेरी पुस्तक की प्रस्तावना है जो भारत के हार्पर कॉलिन्स पब्लिशर द्वारा नवंबर २०१४ में प्रकाशित हुई थी।
अभी यह केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही खरीदने के लिए उपलब्ध है। शीघ्र ही अमेज़ॉन (amazon.com) पर ई-पुस्तक के रूप में यह पूरी दुनिया के पाठकों के लिये उपलब्ध हो जाएगी। यदि आप इसे खरीदें तो मुझे प्रसन्नता होगी। और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह कि आप पुस्तक को पढ़ने के बाद फ़्लिपकार्ट एवं अमेज़ॉन पर एक निष्पक्ष समीक्षा लिखें।
दिसंबर २०१४ में अपनी पुस्तक के विषय में लोगों से बातचीत करने मैं निम्नलिखित शहरों का दौरा करूँगा -
दिल्ली - गुरुवार, दिसंबर ११ को पुस्तक लोकार्पण @ इंडिया इंटरनेश्नल सेंटर।
चेन्नई - शनिवार, दिसंबर १३ को पुस्तक हस्ताक्षर कार्यक्रम @ तत्वलोका सभागार।
बैंगलोर - गुरुवार, दिसंबर १८ को पुस्तक हस्ताक्षर कार्यक्रम @ उन्नति सेंटर।
मुम्बई - शनिवार, दिसंबर २० को पुस्तक हस्ताक्षर कार्यक्रम @ रूद्राक्ष सेंटर।
मुझसे मिलकर मेरी यात्रा के विषय में सुनने के लिए तथा पुस्तक पर हस्ताक्षर पाने के लिए आप का स्वागत है। स्थान और अन्य विवरण आप मेरे ब्लॉग में देख सकते हैं। आगे की घोषणायें हमारे फ़ेसबुक (Facebook) पेज पर होंगी। तब तक आप यहाँ एक कॉपी मंगवा सकते हैं।
शांति।
स्वामी
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