सहिष्णुता का अभ्यास

जब आप एक वृक्ष पर पत्थर फेंकते हैं, वह ना केवल पत्थर को अस्वीकार कर देता है, बदले में वह आप को एक फल भी देता है। भावनाओं के  ऐसे पत्थर मन में ना रखें।
पिछली पोस्ट में मैं ने संक्षेप में सहिष्णुता की कला के विषय में लिखा था। आज मैं सहिष्णुता के वास्तविक अभ्यास पर विस्तार रूप से लिख रहा हूँ। इन विधियों को अपना कर आप स्वयं को भावनात्मक रूप से परिवर्तित कर सकते हैं। जो व्यक्ति भावनात्मक बोझ तले दबा नहीं हो वह सरलता से आनंद एवं शांति की अवस्था में रह पाता है।

पहले मैं मूल सिद्धांत को दोहराना चाहूँगा। संसार में केवल दो प्रकार की भावनाएं हैं - सकारात्मक एवं नकारात्मक। सकारात्मक भावनाओं से आप प्रबल एवं प्रसन्न महसूस करते हैं, तथा नकारात्मक भावनाओं द्वारा आप को उसका विपरीत अहसास होता है। भावनाओं द्वारा आप को आप के भीतरी वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो सकता है। जब तक मन में विचार हों तब तक भावनाएं भी होंगीं। लक्ष्य अपनी सभी भावनाओं को त्यागना नहीं है। लक्ष्य यह है कि आप ऐसा बनें कि आप जब चाहें सकारात्मक भावना का चयन कर सकें। जैसे जैसे आप की मानसिक शक्ति बढ़ती जाएगी, आप भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से ऊपर उठते जाएंगे और अंत में सदा के लिए प्रेम एवं आनंद में स्थित हो जाएंगे।

यदि आप दृढ़तापूर्वक अभ्यास करें, तो आप अपनी भावनाओं को देख सकते हैं, उन्हें परख सकते हैं, बेहतर समझ सकते हैं, उन्हें परिवर्तित कर सकते हैं और नकारात्मक भावनाओं को त्याग सकते हैं।  इसका यह अर्थ नहीं कि आप को कभी बुरा नहीं लगेगा या कभी पीड़ा नहीं होगी। परंतु ऐसी भावनाएं केवल कुछ क्षण ही आप के मन में रहेंगी। सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं के विषय में आप को एक महत्वपूर्ण बात जाननी आवश्यक है। आप जितना अधिक उनके विषय में सोचते हैं और उन्हें अपने भीतर पकड़ कर रखते हैं, उनका प्रभाव उतना ही अधिक होगा। कल्पना करें कि एक गरम थाली है। आप केवल एक पल के लिए उसे स्पर्श करते हैं, तो केवल एक हलकी सी झुनझुनी होगी। परंतु यदि आप उसे हाथ में पकड़ कर रखें तो वह आप को जला देगी और एक अमिट छाप भी छोड़ सकती है। इसी प्रकार यदि आप अवांछनीय भावनाओं को पकड़ कर रखें तो वे आप के मन को गहरी क्षति पहुँचा सकती है। यदि आप सकारात्मक भावनाओं को सदैव मन में बसा कर रखें, तो वह आप को अजय बना सकती है।

सहिष्णुता का अभ्यास एक अद्भुत अभ्यास है। सहिष्णु होना और सहज हो जाता है यदि आप कृतज्ञता एवं सकारात्मकता का भी अभ्यास करें। विधि इस प्रकार है -

  1. एक निश्चित अवधि के साथ प्रारंभ करे, उदाहरणार्थ चालीस दिन, या यदि आप चाहें तो उस से भी कम।
  2. सहिष्णुता के अभ्यास के बारे में स्वयं के लिए एक अनुस्मारक लिखें और कम से कम दिन में दो बार उसे पढ़ें। 
  3. संकल्प करें कि चाहे कुछ भी हो जाए जैसे ही आप एक नकारात्मक भावना को उभरते हुए देखें  आप उस भावना को मन से दूर करने का हर प्रयास करेंगे। याद रखें मूल रूप से भावनाएं, इच्छाओं की तरह, केवल  अनियंत्रित विचार हैं।
  4.  अपने आप से वादा करें कि आप कभी दुर्वचन का जवाब दुर्वचन से, हिंसा का जवाब हिंसा से, घृणा का जवाब घृणा से, या किसी और नकारात्मक भावना का जवाब किसी भी अन्य नकारात्मक भावना से नहीं देंगे।
  5. भावनात्मक परिवर्तन एवं सहिष्णुता का अभ्यास करते समय, आप प्रतिक्रिया नहीं करेंगे और आत्म संयम रखने का पूर्ण प्रयास करेंगे।
इस अभ्यास को आप तब तक दोहरा सकते हैं जब तक यह एक प्रवृत्ति ना बन जाए।

अपने आप को याद दिलाएं कि आप को बिना किसी अपेक्षा के सहनशील बनना है। यह कठिन अवश्य है किंतु असंभव नहीं। यदि आप यह आशा करते हैं कि आप की सहिष्णुता के कारण आप के साथ दयालु व्यवहार किया जाए तो यह अभ्यास को और अधिक कठिन कर देगा। हो सकता है कि दूसरे आप की सहिष्णुता को देखें भी ना। वास्तव में, आप की सहिष्णुता को लोग गलती से अक्षमता, कायरता या कुछ और भी समझ सकते हैं। ऐसे में आप याद रखें कि उनके विचार उन के व्यक्तित्व के मात्र प्रतिबिंब हैं।

मेरे साथ हाल ही में ऐसा ही हुआ। किसी ने मुझसे एक ऐसा प्रश्न किया जिसका उत्तर मैं नहीं देना चाहता था क्योंकि वह प्रश्न केवल बौद्धिक एवं अव्यावहारिक था और मुझे ऐसे विषयों पर लंबे वाद विवाद करने में दिलचस्पी नहीं। मैं उपयोगी अभ्यास में विश्वास रखता हूँ। किसी व्यक्ति ने इस का कुछ और अर्थ निकाला और अपने विचार प्रकट किए। मैं ने वापस उन्हें यह लिखा कि उन्हें उनकी राय प्रकट करने का अधिकार है। मेरी प्रतिक्रिया उन्हें पसंद नहीं आयी और उन्होंने और अधिक लिखा। मैं प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहता था इस लिए मैं ने उन्हें एक कहानी सुनाई। उन्होंने वह कहानी व्यर्थ पायी तथा और अधिक लिखा। मैं ने उत्तर दिया कि मैं ने तो केवल वह किया जो मुझे पसंद आया - और यह मेरा स्वयं का निर्णय है। यही महत्वपूर्ण बात है - स्वयं का विकल्प चुनना। इसका यह अर्थ नहीं कि वे एक बुरे व्यक्ति थे। वास्तव में, वे एक बुद्धिमान एवं श्रेष्ठ व्यक्ति थे। उनके उदेश्य एवं प्रश्न दोनों सही थे। उनके निष्कर्ष उनके स्वयं के अनुभवों एवं बुद्धि का एक उत्पाद थे। परंतु मैं ने निर्णय किया कि मुझे जो सही लगता है वही करूंगा।

आरंभ में दूसरों की प्रतिक्रियाओं का आप पर प्रभाव होगा, परंतु आप जैसे जैसे सकारात्मकता, जागरूकता एवं संकल्प के साथ यह अभ्यास जारी रखेंगे, यह प्रतिक्रियाएं आप को और कम प्रभावित करेंगीं। हो सकता है कि कुछ भावनाएं आप को नहीं छोड़ें। ऐसे में आप अपना विकल्प स्वयं चुनें। हमारे मनपसंद सूफी पात्र के जीवन की एक छोटी सी घटना का वर्णन करता हूँ -

मुल्ला की पत्नी उस पर क्रोधित थी और ऊँचे स्वर में उस पर चिल्ला रही थी। परंतु मुल्ला ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। वह एक कोने में बैठ कर चुप रहा। पत्नी और अधिक क्रोधित हो गयी तथा और दुर्वचन बोलने लगी ताकि मुल्ला से कुछ प्रतिक्रिया पैदा कर सके, परंतु मुल्ला मौन रहा।
लाचार और निराश हो कर मुल्ला की पत्नी ने कहा, “मैं ने तुम्हें कईं बार कहा है कि जब मैं क्रोधित होती हूँ तब मेरे साथ बहस मत करो।”
“मैं ने तो एक शब्द भी नहीं कहा!” मुल्ला बोला।
“हाँ, परंतु तुम बहुत आक्रामक ढंग से सुन रहे हो।”

जब अन्य व्यक्ति आप पर टूट पड़ें आप से दुर्व्यवहार करें, उस समय स्वयं को शांत रखना ही आप की  सबसे कठिन परीक्षा है। दूसरों को अपनी प्रतिक्रिया एवं भावनाओं को चुनने की स्वतंत्रता दें, तथा अपनी प्रतिक्रिया एवं भावना स्वयं चुनें। दृढ़ता के साथ यह अभ्यास करें और फिर आप स्वयं में परिवर्तन देख अति प्रसन्न हो जाएंगे।

शांति।
स्वामी


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