सबसे स्वाभाविक मानव इच्छा

आप को जब यह अहसास होता है कि आप के प्रति किसी के मन में स्नेह है, वह अनुभव एक शांत समुद्र के निकट बैठने के समान है। आप स्वयं एक सागर बन जाते हैं और आप को एक प्रकार की संपूर्णता महसूस होने लगती है।
मानव की सबसे मूलभूत इच्छा क्या है? वह आकांक्षा जो मानवता का आधार है, मनुष्य की सबसे प्रमुख आवश्यकता, जिस से आप की मानसिक स्थिति पूर्ण रूप से बदल सकती है, वह एक भावना जिस के कारण आप या तो स्वयं को अनमोल महसूस कर सकते हैं अथवा मूल्यहीन?

पिछले कईं वर्षों में मैंने अनेक लोगों के साथ बातचीत की है। मेरे अनुभव के आधार पर मुझे यह ज्ञात हुआ है कि सभी प्रतिक्रियाओं एवं भावनाओं का मूल  तत्व एक प्रमुख इच्छा होती है। ऐसी इच्छा जो प्राथमिक तथा आधारभूत है। यह है दूसरों के स्नेह की इच्छा। यह इच्छा कि आप को कोई स्वीकार करे, आप की सराहना करे। वही लोग जिन को आप एक समय पर प्रेम किया करते थे उन्हीं से आप घृणा करने लग सकते हैं यदि आप को उनसे स्नेह की प्राप्ति नहीं हो रही हो। मनुष्य को सबसे अधिक पीड़ा उपेक्षा के कारण होती है। उपेक्षा का अर्थ केवल यह नहीं कि कोई व्यक्ति आप की उपेक्षा कर रहा है। यह तो केवल एक प्रकार की उपेक्षा है। जब आप को आप के व्यक्तित्व अथवा अवस्था के कारण आप का परिवार या समाज पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं करता, जब आप के योगदान की सराहना नहीं की जाती, जब आप को कोई प्रेम नहीं देता, वह भी उपेक्षा ही है। और उस से पीड़ा पहुँचती है। चलिए मैं आप को वास्तविक जीवन की कहानी सुनाता हूँ जो मेरे वकील ने मुझे तेरह साल पहले बतायी थी।

सन १९८५ की बात है। सर्बिया से एक सत्तर वर्ष के बूढ़े व्यक्ति ने ऑस्ट्रेलिया की ओर प्रवास किया। समझ लें उसका नाम पावले था। उसके तीन पुत्र दो दशकों से ऑस्ट्रेलिया में निवास कर रहे थे। परिवार-वीजा श्रेणी के तहत उसके पुत्र अपने पिता को ऑस्ट्रेलिया ले कर आये। पावले एक विधुर था। सर्बिया में हालात प्रतिकूल नहीं थे। वह एक कठिन जीवन व्यतीत कर रहा था, बहुत अकेला महसूस कर रहा था और अपने पुत्रों के साथ रहने के लिए अति उत्सुक था। उसके परिवार के सदस्य एक दूसरों को बहुत प्रेम करा करते थे और उस ने अपने स्थायी निवास प्राप्त करने के लिए छह साल से अधिक प्रतीक्षा की थी।

ऑस्ट्रेलिया में पहुँचते ही उसके तीन पुत्रों ने हवाई अड्डे पर उसका स्वागत किया। आरंभ में सब ठीक था, परंतु कुछ समय पश्चात उसके पुत्रों को यह प्रतीत हुआ कि वे अपने पिता को भोजन खिलाने अथवा उन्हें शरण देने का बोझ नहीं उठा सकते। पावले को केवल अपने पुत्रों के ह्रदय एवं घर में जगह की तथा एक समय के भोजन की आवश्यकता थी, परंतु उसके पुत्र उसे अब एक बोझ के रूप में देखने लगे। वे उस की उपेक्षा करने लगे। अगले दो वर्षों में उसे अपने पुत्रों से और अधिक अवांछितता, उदासीनता एवं घृणा मिलने लगी। वह अंग्रेज़ी नहीं बोल पाता था, इसलिए नगर के सड़कों अथवा बगीचों में भी वार्तालाप के लिए कोई ना मिला।

एक दिन पावले के व्यवहार में एक विचित्र परिवर्तन आया। पादचारी मोड़ के समीप खड़े होकर वह वाहनों की प्रतीक्षा करता और जैसे ही वाहन उसके निकट आते वह सड़क पार करने लगता, जिस के कारण सारा यातायात अचानक रुक जाता। आम तौर पर किसी भी वाहन को रुकने में कोई आपत्ति नहीं होती, क्योंकि वे पादचारी मोड़ के निकट होते। परंतु पावले प्रतिदिन सुबह-शाम यही करता रहता। सड़क की दूसरी ओर जाने के उपरांत वह उन वाहनों को जाने देता और फिर वही व्यवहार फिर दोहराता। इस से लोगों को बहुत असुविधा पहुँचने लगी। आखिरकार, पुलिस ने उसे दुराचार एवं यातायात में बाधा डालने के लिए जुरमाना लगाया। किंतु पावले ने उस को अनसुना कर दिया। एकाधिक टिकट मिलने के बाद, उसे आरोपों का सामना करने न्यायालय में उपस्थित होना पड़ा।

“यह एक असामान्य मुकदमा है,” न्यायाधीश ने कहा। “चिकित्सकों के अनुसार आप का स्वास्थ्य ठीक है परंतु फिर भी आप ने बार बार सड़क पर बुद्धिहीन एवं संकटपूर्ण व्यवहार दर्शाया। आप भी स्वयं को दोषी मान रहे हैं। मैं तो चकित हो गया हूँ। क्या आप कुछ कहना चाहते हैं?”
“मानव”, पावले ने उत्तर दिया, “मुझे मानव होने का अहसास हुआ।”
“मानव? न्यायालय के पास पहेली बुझाने का समय नहीं है। स्पष्ट रूप से उत्तर दें।”
एक अनुवादक के रूप में उसके पुत्र ने उसकी सहायता की, और पावले आगे यह बोला - “न्यायाधीश महोदय, मुझे ऐसा महसूस हुआ कि किसी को मेरे प्रति स्नेह है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि अंततः किसी ने मेरे साथ एक मानव जैसा व्यवहार किया। जब किसी ने मेरे लिए अपना वाहन रोका तो मुझे एक अद्भुत प्रकार की प्रसन्नता हुई। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं कोई अवांछित खरपतवार नहीं परंतु फसल का हिस्सा हूँ जो किसान को अत्यंत प्रिय है। पूरे जीवन मुझे जो गरिमा एवं सम्मान ना प्राप्त हो सका वह इन वाहनों के रुकने पर मुझे अनुभव हुआ। मुझे यह महसूस हुआ कि मैं किसी के लिए विशिष्ट हूँ। वह क्षण अनमोल था। मुझे इस बात का अपसोस है कि मेरे कारण लोगों को बहुत कष्ट हुआ। मैं वचन देता हूँ कि मैं इसे कभी नहीं दोहराउँगा।”

न्यायाधीश ने प्रेम भरे परंतु सशक्त स्वर में कहा “ऑस्ट्रेलिया एक स्वतंत्र राष्ट्र है जिस की मिट्टी पर  रहने वाले हर व्यक्ति को सम्मान का अधिकार है। आप को निर्देश दिया जाता है कि आप भविष्य में ऐसे कार्य ना करें ताकि इस देश में रहने वाले अन्य व्यक्ति भी इस अधिकार का आनंद ले सकें। यह न्यायालय आप को क्षमा प्रदान करता है।”

न्यायालय में पावले की बातें सुन कर उस का पुत्र फूट फूट कर रोने लगा। न्यायालय के बाहर उन दोनों ने एक दूसरों को गले लगाया और खुशी के आंसू बहाये। ऑस्ट्रेलियाई नागरिकता प्राप्त करने के पश्चात पावले को पेंशन मिलने लगा और वह अपनी अंतिम सांस तक वहीं रहा। इस प्रकार उस की कहानी का अंत सुखद रहा।

सभी पुत्रों को इस प्रकार अपनी भूल का अहसास नहीं होता, और कुछ को यह अहसास बहुत देर बाद ही होता है। पावले के समान हर व्यक्ति को इस प्रकार के दुख से मुक्ति नहीं मिलती। हर कहानी का अंत इस प्रकार आनन्ददायक नहीं होता। और वैसे भी कहानी का अंत उतना महत्वपूर्ण नहीं होता। इस का कोई महत्व नहीं कि मृत्यु के पश्चात आप को दफनाया जाता है या आप का दाह संस्कार किया जाता है अथवा आप को संसार भुला देता है या याद करता है। यदि कुछ महत्वपूर्ण है तो वह है केवल आप की यात्रा। क्योंकि आप की यात्रा की श्रेष्ठता ही आप को तथा आप के संगत में रहने वाले व्यक्तियों को स्पष्टतः प्रभावित करता है। यह लेख पुत्रों अथवा पिताओं के विषय में नहीं है, केवल मानव एवं मानवता के विषय में है।

आप के प्रति किसी के मन में प्रेम की भावना हो, यह कोई विशेषाधिकार नहीं केवल एक स्वाभाविक एवं मूलभूत मानव आवश्यकता है। दुर्भाग्य से वर्तमान में इस संसार में अधिकतर व्यक्ति प्रेम से वंचित हैं। स्नेह की खोज में भटकना अथवा किसी और से उसकी अपेक्षा करना निरर्थक है। इसलिए यदि किसी और से आप को स्नेह प्राप्त नहीं होता है तो स्वयं से प्रेम करना सीखें। अपने आप से नि:स्वार्थ प्रेम करने की अवस्था तक पहुँचने के लिए समय लगता है। तब तक दूसरों को अपना प्रेम दें - ऐसे लोगों को जो आप का स्नेह चाहते हैं। और फिर एक दिन आप पाएंगे कि आप आत्म परिवर्तन के मार्ग में बहुत आगे पहुँच गए हैं। आप स्वयं को आनंद के सागर में तैरता पाएंगे। आप के ह्रदय में करुणा एवं स्नेह उमड़ेगा जिस से जीवन के सारे दूख और दर्द बह कर दूर हो जाएंगे। जब आप जीवन में करुणा को अपनाते हैं तथा ईश्वर द्वारा रचित जीव की सेवा करते हैं, तो भगवान आप के जीवन में जिस का अभाव हो उस की पूर्ती की व्यवस्था करते हैं। हो सकता है यह वह अभाव नहीं जिस प्रकार आप उसे परिभाषित करते हैं, परंतु यह वह है जिस की आप को वास्तव में आवश्यकता है।

दूसरों के प्रति अपने स्नेह को दर्शायें। उन्हें यह अहसास दिलाएं कि वे आप के लिए विशिष्ट एवं अनमोल हैं। जब तक आप किसी और को यह अहसास ना दिलाएं आप स्वयं यह कभी नहीं समझ पाएंगे कि दूसरों के स्नेह के कारण विशिष्ट महसूस करने की भावना कैसी होती है।

शांति।
स्वामी



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