प्रकृति के संकेतों को सुनें

आप के पथ पर, प्रकृति सदैव आप को कोई ना कोई संकेत देती है। उनकी ओर ध्यान देने से आप को लाभ हो सकता है। कैसे? जानने के लिए यह कथा पढ़ें।

हर कोई कुछ ना कुछ प्रतिभा लेकर जन्म धारण करता है। सामान्यत: जिस क्षेत्र में जिन की लगन होती है उस ही में उनकी प्रतिभा दिखाई देती है। परंतु अधिकतर लोगों की प्रतिभा दुर्भाग्यवश छिपी एवं अप्रयुक्त रह जाती है। यदि आप को कुछ करना अतिप्रिय लगता है तो उसमें स्वत: ही आप उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं। जैसे जैसे आप सफल होते जाते हैं वैसे वैसे आप में और अधिक एवं उत्तम प्रदर्शन करने की प्रेरणा अपने आप बढ़ती जाती है। आप जो भी प्रयत्न करते हैं वह कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। किसी एक क्षेत्र में आप की योग्यता आप को दूसरे क्षेत्र में भी लाभ पहुँचा सकती है, भले ही वह कितने ही भिन्न भिन्न क्षेत्र क्यों ना हो।

जब आप अपने जीवन से क्या चाहते हैं उस विषय में स्पष्ट हो जाते हैं तथा उसके लिए अनुशासित रूप से कार्यशील हो जाते हैं, तब प्रकृति आप के लिए संयोग की व्यवस्था करती है। वह आप को उचित समय पर उचित स्थान पर रख देती है। मुझे एक छोटी सी कथा याद आती है -

एक समय एक यात्री विशाल रेगिस्तान में अपना रास्ता भूल गया। यदि उसे कभी भी रास्ता नहीं मिला तो क्या होगा, इस विचार से वह एकदम घबरा गया और व्यग्रतापूर्वक पास के कोई नगर का रास्ता खोजने का प्रयास करने लगा। पूरा दिन व्यतीत हो गया, उसके पास जो भी खाद्य सामग्री थी समाप्त हो गई थी। संध्या हो गई और वह खुले आकाश के नीचे रेत पर सो गया। दूसरे दिन खुराक एवं जल रहित ही उसने अपनी यात्रा का पुन: आरंभ किया। रेगिस्तान में घूमते घूमते जब उसे कोई मार्ग दिखाई नहीं दिया वह बहुत भयभीत हो गया। उसके मन में हर प्रकार के विचार आने लगे।

शीघ्र ही सूरज चढ़ गया तथा कड़ी धूप पड़ने लगी। अधिकतम गरमी एवं थकान के कारण उसकी गति मंद हो गई। वह प्यासा और भूखा था, उसके होंठ सूख गये थे, मुँह शुष्क हो चूका था तथा शरीर थक चुका था। एक और दिन व्यतीत हो गया। वह आशा, शक्ति और समय सब खोने लगा था। अचानक थोड़ी दूरी पर उसे लगा कि उसे कुछ तंबू जैसा दिखाई दिया। उस को ऊर्जा की लहर का अनुभव हुआ। उसकी आँखों में चमक आ गई, परंतु वह घबराया हुआ ही रहा। वास्तव में वह तंबू ही था। एक अस्थाई दुकान। यद्यपि उसका शरीर थका हुआ था फिर भी उसके आनंद की कोई सीमा ना रही। उसने दुकानदार से जल माँगा। उस व्यक्ति ने कहा कि उसके पास जल तो नहीं था परंतु वह कूफ़िया विक्रण कर रहा था (एक अरबी साफ़ा, एक टोपी जैसा)। उसने साफ़ा विक्रण करने का प्रयास किया और सस्ते दाम में भी देना चाहा। तुम्हें आवश्यकता होगी, दुकानदार ने कहा। यात्री दुकानदार के धृष्ट एवं असंवेदनशील व्यवहार से उग्र हो गया और चीखते हुए कहने लगा की एक भूख और प्यास से मर रहे व्यक्ति को जल देने के बजाय वह उसे एक टोपी क्रय करने पर विवश कर रहा था।

उस विक्रेता ने उत्तर दिशा की ओर संकेत किया और कहा, यहाँ से पाँच मील की दूरि पर एक सराई (धर्मशाला) है। यह कह कर वह अपने व्यापार में लग गया। वह यात्री किसी तरह बहुत कठिनाई से पाँच मील चल कर उस स्थान पर पहुँच गया। जैसा कि दुकानदार ने कहा था वहाँ एक आवास था, आप यहाँ भोजन भी परोसते हैं?  यात्री ने दरबान से पूछा।
“हाँ।”
“ईश्वर की कृपा है!” यात्री के आनंद की सीमा ना रही, “अभी मेरी मृत्यु का समय नहीं आया।” किंतु जैसे ही वह भीतर प्रवेश करने लगा, दरबान ने उसे रोक दिया।
“क्या समस्या है? मेरे पास पैसा है!” 
“में क्षमा चाहता हूँ किंतु बिना कूफ़िया के मैं आप को भीतर नहीं जाने दे सकता! यहाँ से पाँच मील की दूरी पर एक दुकानदार है उससे कूफ़िया खरीद कर आप पुन: यहाँ आ सकते हैं।”

क्या यहाँ आप को मेरे कहने का तात्पर्य समझ आया? बहुधा हमारे मार्ग पर, प्रकृति हमें संकेत देती रहती है। वह हमारे लिए वस्तुओं की व्यवस्था करती रहती है, किंतु बहुधा मनुष्य अपनी अपेक्षाओं से, भ्रम से एवं अनुपयुक्त भावनाओं से अंधा हो चुका होता है। आप को लक्ष्य पता होता है, आप को मार्ग भी पता हो सकता है, और यह भी हो सकता है कि आप पड़ाव से भी परिचित हों। तथापि यह संपूर्ण चित्र नहीं है। आप अपने मार्ग पर अन्य लोगों से भी मिलेंगे, आप का पथ कितना भी असामान्य क्यों ना हो। आप उन्हें अपने प्रतियोगी या सहयोगी मान सकते हैं। हो सकता है वे कुछ ऐसा बेच रहे हैं जो आप को इच्छित ना हो, हो सकता है वे आप को कुछ ऐसा दे रहे हैं जो आप को उचित ना लगे। सत्य यह है कि वे किसी कारणवश वहाँ है, प्रकृति ने युक्तिपूर्वक उन्हें स्थापित किया होता है।

प्रकृति चुपके से सिखाती है। वह हमारी भाषा नहीं बोलती। यदि आप ध्यान दें, तो उन संकेतों का अर्थ प्रकाशित होने लगेगा। जब आप भीतर से शांत हो जाएंगे, तब ये संकेत और अधिक सुनाई देंगे। प्रकृति के पास आप के लिए जो ज्ञान एवं अन्तर्दृष्टि है वे आप को विस्मित कर देगी। आप को मात्र ठहर कर सुनना है। प्रकृति को सुनने हेतु आप को स्वयं को सब से पहले सुनना होगा। आप के भीतर बहुत कर्कश आवाज़ होती है। जो आप विश्राम करें, जो आप चिंतन करें तो आंतरिक कोलाहल धीमे धीमे शांत हो जाएगा। नकारात्मकता की लहर नष्ट हो जाएगी। आप का वास्तविक स्वभाव प्रकाशित हो कर चमकने लगेगा। आप को एक अन्तर्दृष्टि, आंतरिक शक्ति एवं स्पष्टता प्राप्त होगी। आप प्रकृति को समझना आरंभ करेंगे।

अपने भीतर की आवाज़ को सुनें। पूर्ण रूप से मुक्त हो जाएं। निर्भय बन जाएं।

शांति। 

स्वामी



Print this post

1 टिप्पणी:

anu ने कहा…

प्रकृति चुपके से सिखाया करती है --------
कितनी गहरी बात है ------

हरी ओम

एक टिप्पणी भेजें

Share