दयालुता का एक निरुद्देश्य कार्य

मेरी रोटी का प्रश्न एक भौतिक विषय है, परंतु मेरे पड़ोसी की रोटी का प्रश्न, एक आध्यात्मिक विषय है। ~निकोलाई बर्ड़यैव
निकोलाई बर्ड़यैव एक रूसी विचारक और अस्तित्ववादी थे। उन्होंने एक बार कहा - “मेरी रोटी का प्रश्न एक भौतिक प्रश्न है, किंतु मेरे पड़ोसी की रोटी का प्रश्न एक आध्यात्मिक प्रश्न है”। यह है दयालुता की संक्षिप्त परिभाषा। संभवतः करुणा केवल एक भावना तक सीमित हो सकती है तथा सहानुभूति का एक रूप अथवा एक प्रकार की स्वीकृति हो सकती है। परंतु यदि करुणा के साथ साथ भेंट करने का कार्य भी जुड़ जाए तो वह दया कहलाती है।

जब आप किसी व्यक्ति को (जो अजनबी भी हो सकता है) एक ऐसे समय पर उपहार देते हैं जब वह उसकी आशा भी नहीं कर रहा हो, तो वह दयालुता का एक निरुद्देश्य कार्य कहलाता है। आप ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि आप के ह्रदय में दया एवं करुणा की भावना बसी हुई है। हमारे ह्रदय की एक विचित्र विशेषता है -  यह दूसरों के प्रति खुल भी सकता है और चाहे तो बंद भी रह सकता है। एक खुला ह्रदय स्वाभाविक रूप से दयालु, करुणामय और प्रसन्न होता है। बंद ह्रदय सभी सकारात्मक भावनाओं का विरोध करता है। इस का यह अर्थ नहीं कि ऐसा व्यक्ति सदैव नकारात्मक या असफल ही होता है। इसके विपरीत, एक ऐसा व्यक्ति जिसका ह्रदय बंद हो वह हठी हो सकता है और वह अपने पेशे में सफल और भौतिक विकास के प्रति सकारात्मक हो सकता है। परंतु दूसरों के प्रति प्रेम व्यक्त करने और उनके दर्द को समझने के विषय में उसका ह्रदय सदैव बंद रहता है।

जब तक आप अन्य व्यक्ति के दर्द को नहीं समझते, तब तक आप के ह्रदय में दया की भावना नहीं जागेगी, और आप केवल स्वयं के विषय में ही सोचते रहते हैं। सर्वाधिक दुख की बात यह है कि जब आप के ह्रदय में दया की भावना उभरेगी उसके उपरांत ही आप को यह ज्ञात होगा कि कैसे पहले आप के ह्रदय में दया थी ही नहीं। ऐसे व्यक्ति दयालुता का कोई भी कार्य करने में असमर्थ होते हैं तथा उन्हें इसका ज्ञान नहीं होता कि उनके ह्रदय में दया नहीं है। ठीक उस प्रकार जैसे कुंए में रहने वाले मेंढक को यह पता नहीं कि बाहर एक विशाल समुद्र है। जब आप का ह्रदय खुलने लगता है तब आप शांति एवं आनंद की एक पूरी नई दुनिया का अनुभव करने लगते हैं। मैं ने कहीं पढ़ा था - “अपने ह्रदय के द्वार पर मैं ने लिख दिया ‘यहाँ प्रवेश करना मना है’। प्रेम भीतर आगया और बोला, ‘मैं हर जगह प्रवेश कर लेता हूँ।’”  जब प्रेम आता है, वह कभी अकेला नहीं आता - कईं गुणों को साथ लेकर आता है। यदि ह्रदय में प्रेम की भावना ना हो तो दयालु होना असंभव है - यदि आप में एक भावना है तो दूसरी भावना भी निश्चित रूप से होगी। 

एक बहुत धनी व्यक्ति था जो भिखारियों का उपहास करता था। जब भी कोई भिखारी उसके पास भीख मांगने आता, वह उन पर क्रोधित हो जाता और कहता कि वे युवा हैं, शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और इसलिए उन्हें भीख मांगने के स्थान पर कोई नौकरी करनी चाहिए। ऐसा कुछ समय तक चलता रहा और एक दिन भगवान प्रकट हुए और बोले - “सुनो मूर्ख। यदि उनकी सहायता करने के लिए तुम्हारे ह्रदय में दया नहीं है तो ठीक है, परंतु कम से कम मैं ने उन्हें जो कुछ दिया है उसकी तो निंदा मत करो।”

किसी के प्रति निर्दयी नहीं बनें - दयालुता की यह एक और विधि है, सर्वोत्तम विधि नहीं फिर भी अच्छी विधि है। यदि आप कुछ नहीं दे सकते या किसी कारण देना नहीं चाहते तो ठीक है परंतु कम से कम दूसरों को रोकें तो नहीं अथवा इसके प्रति नकारात्मक हो कर अपने मन और अपनी बोली को अपवित्र तो ना करें। यह आवश्यक नहीं है कि दयालुता का एक निरुद्देश्य कार्य सदैव एक भौतिक दान हो। प्रोत्साहन अथवा प्रशंसा का एक शब्द या किसी का हाथ बटाना यह भी उतना ही प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण हो सकता है।

जब आप नियमित रूप से दयालुता के निरुद्देश्य कार्य करते रहें, तो एक दिन कुछ अद्भुत होता है। प्रकृति अपने दयालुता के कार्य के लिए आप को प्राप्तकर्ता चुनती है। इस प्रकार के कार्य सदैव इस संसार में लाखों लोगों के साथ हो रहे हैं। यहाँ तक ​​कि वर्षा, पवन, बर्फबारी, धूप, वनस्पति, पशु, उत्पत्ति, जीवन - यह सभी एक दिव्य लौकिक दयालुता के ही परिणाम हैं। 

एक व्यक्ति हर महीने एक भिखारी को बीस डॉलर दिया करता था। कईं वर्षों से वह ऐसा करता आया था। एक समय उसने भिखारी को पैसे नहीं दिए और उस से कहा कि उसे क्षमा करे क्योंकि उसे उन पैसों को अपनी पत्नी के लिए एक गुलदस्ता खरीदने के लिए उपयोग करना पड़ा। 
“क्या?” भिखारी ने कहा, “आप ने मेरे पैसे उस पर खर्च दिए?” 

केवल इसलिए कि कोई वस्तु हमारे पास है इस का यह अर्थ नहीं कि वह हमारी है।  हमारे ब्रह्मांड में कोई भी मालिक नहीं है, हर कोई एक माध्यम है, अधिक से अधिक एक संरक्षक। आप जो भी बांटते हैं, वह बढ़ता है - इस ब्रह्मांड का यही मौलिक नियम है। आप किसी पर क्रोध करते हैं, तो आप के भीतर क्रोध बढ़ता है। आप प्रेम देते हैं, तो आप में प्रेम बढ़ता है। आप किसी का अपमान ​​करते हैं, तो आप में घृणा बढ़ती है। आप ज्ञान बांटते हैं, तो आप में प्रज्ञा बढ़ती है। आप अपना समय किसी को देते हैं, तो आप में शांति बढ़ती है। आप के पास जो है वह सब आप बांटते हैं, तो पूर्ण रूप से आप के व्यक्तित्व का विकास होता है। 

नियमित रूप से दयालुता के निरुद्देश्य कार्य करें। प्रकृति अवश्य प्रतिदान करेगी। 

शांति।
स्वामी

Print this post

1 टिप्पणी:

anu ने कहा…

बिलकुल सच । Nature vastav Mein anant guns badha kar lauta deti hai sab kuch ......hari om

एक टिप्पणी भेजें

Share