क्योंकि सब कुछ ठीक लग रहा है का यह अर्थ नहीं कि सब ठीक ही है। यह है मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) का सत्य। |
जीवन एक संघर्ष है जिस में दृढ़ परिश्रम की आवश्यकता है। मैं आप के बिल चुकाने, ऋण-मुक्त रहने, कठिन समय के लिए बचत करने, स्वस्थ बने रहने, आप की सेवानिवृत्ति की योजनाओं अथवा संबंधों के ठीक-ठाक बने रहने की बात नहीं कर रहा। यह सब तो कुछ भी नहीं (परिहास कर रहा हूँ!)। नि:संदेह, यह सब हमारे जीवन को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं, और संभवत: जीने लायक भी। मैं वास्तव में, एक अत्यंत सरल विषय की बात कर रहा हूँ - प्रसन्न रहना। हमारे द्वारा हर काम बहुत कठिनाई व ईमानदारी के साथ करने पर भी प्रसन्नता एक क्षण-भंगुर अनुभव ही बनी रहती है, एक मायावी भावना; एक धूप भरे दिन में उस अकेले बादल की भाँति - जो केवल छोटे से अंतराल के लिए दिखाई देता है व जब तक वहाँ होता है अपना रूप बदलता रहता है।
जीवन एक बहुत कठिन कार्य हो सकता है उस व्यक्ति के लिए जिसने अपने जीवन को जीने का उद्देश्य नहीं ढूंढा हो अथवा उस व्यक्ति के लिए जो अपने कार्य के प्रति उत्साहित नहीं हो। प्रसन्नता जैसी वस्तु तो हमारे लिए स्वाभाविक होनी चाहिए चूँकि हम आनंद-प्रद प्राणी हैं, हम प्रेम से ही उपजे हैं। और तो और, वह नाभि की नाल जो हमें ९ महीने तक पोषित करती है, वह महत्त्वपूर्ण वस्तु जो हमारे व हमारी माता के बीच की कड़ी होती है, उसे भी जन्म के समय ही काट दिया जाता है - हमारी स्वतंत्रता हेतु। संभवत: यह बताने के लिए कि कहीं कोई बंधन नहीं है। हम प्रसन्नता ही हैं। हम स्वतंत्र हैं। परंतु क्या वास्तव में हम इस का अहसास कर पाते हैं? प्रसन्नता हमारे लिए उतनी ही स्वाभाविक होनी चाहिए जैसे पर्वतों में शीतल पवन - मंद मंद और निरंतर - परंतु लगभग ऐसा प्रतीत होता है कि हमें निरंतर इसके लिए प्रयत्नशील रहना पड़ता है।
आप को पता है उदासी एक छुपी सी भावना है। जैसे यह मायने नहीं रखता कि आप अपने को कितना भी बढ़िया खिला पिला लो, कुछ ही घंटों में भूख फिर से आप के पेट में जागना आरंभ कर देती है; वैसे ही चाहे आप कितने भी प्रसन्न क्यों ना हों उदासी, अपने बंधु-बान्धवों (दु:ख, क्रोध, दोष-वृत्ति, अकेलापन, विद्वेष, भय, पश्चाताप) सहित या उनके बिना, चुपचाप आप को घेर लेती है। आप उल्लासित अनुभव करते हैं जब आप को पदोन्नति मिलती है; और अगले ही क्षण कार्य का दबाव प्रारंभ हो जाता है। आप परमसुख महसूस करते हैं जब आप एक बड़ा घर खरीदते हैं, और तब ऋण चुकाने की चिंता बीच में आ जाती है। क्या होगा यदि कल मेरे पास नौकरी न हुई, मैं अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करूँगा, मैं अपने बिल कैसे चुकता करूँगा? जैसे कि प्रसन्नता तो एक संदेशवाहक मात्र थी जो आई, अच्छा संदेश दिया, और चली गई। मैं ने सोचा था कि प्रसन्नता मेरी जीवन साथी है परंतु वह तो एक गणिका निकली।
यह मेरी नई पुस्तक 'जब सब ठीक न हो' (When All is Not Well) का एक अंश है (अध्याय ५ में से)। किंतु यह पुस्तक 'प्रसन्न कैसे रहा जाए' के विषय में नहीं है। अपितु यह उदासी के विषय में है, वह भी गहन उदासी। उन लोगों के वास्तविक जीवन की घटनाओं को उजागर करते हुए, जिन के साथ मैं ने काम किया है, यह पुस्तक सभी रोगों में से सर्वाधिक रहस्यमय रोग के विषय में है। नहीं, मैं ध्यान, साक्षात्कार, अथवा विवाह का सन्दर्भ नहीं ले रहा (इन सब के लिए कोई स्थाई उपचार नहीं है - परिहास मात्र लें !)। मैं एक ऐसी व्याधि के विषय में बात कर रहा हूँ जो आप के मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक स्वास्थ्य पर एक साथ आक्रमण करती है। तीव्र व उग्र रूप से।
'जब सब ठीक न हो' (When All is Not Well) मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) व उदासी के योगिक दृष्टिकोण पर है। और यह दर्शाती है कि कैसे डिप्रेशन गहन उदासी नहीं है। गहन उदासी मन की एक स्थिति हो सकती है जबकि मानसिक अवसाद एक रोग है। मैं रूमी की लिखी एक सुंदर कविता उद्धत कर रहा हूँ (पुस्तक में उल्लेखित है) -
तुम दिनों दिन तक यहाँ बैठे कहते हो,
यह अजीबोगरीब कारोबार है।
तुम खुद अजीबोगरीब कारोबार हो।
तुम्हारे अंदर सूरज का तेज है,
पर तुम उसे रीढ़ के आख़िरी छोर पर
फँसाए रखते हो।
तुम कुछ अजीब से स्वर्ण हो
जो पिघल कर भी भट्टी में ही रहना चाहता है,
कि कहीं तुम्हे सिक्का न बनना पड़ जाए।
डिप्रेशन का रोगी ऐसा ही अनुभव करता है - पिघला हुआ सोना जो भट्टी में ही पड़ा रहना चाहता है।
मेरे विचार में मानसिक अवसाद हमारे समय की सबसे कम समझ आने वाली व सबसे अधिक अशक्त कर देने वाली अवस्थाओं में से एक है। यह किसी को भी, कभी भी, उनके जीवन की किसी भी अवस्था में, प्रभावित कर सकता है। आप की जीवन-शैली, आप की मानसिक बनावट या भावनात्मक रचना की परवाह किए बिना, कोई भी इस विकार से स्थाई रूप से प्रतिरक्षित नहीं है। जो बात डिप्रेशन के सन्दर्भ में विशेष रूप से परेशान करने वाली है वह है कि यह आप को हर उस विषय व व्यक्ति से दूर कर देता है जिस को आप जानते हों। आप अपने ही शरीर में, अपनी ही दुनिया में एक अजनबी सा महसूस करते हो। उससे भी बदतर यह कि डिप्रेशन के लिए कोई निश्चित उपचार नहीं है। मानसिक अवसाद दूर करने की दवाइयाँ बहुत सारे रोगियों पर तो काम करती हैं, वहीं बहुत से दूसरों की अवस्था में उनसे रत्ती मात्र भी परिवर्तन नहीं होता। कुछ व्यक्तियों को ध्यान व योग से सहायता मिलती है, वहीं बहुत से अन्य इससे कोई लाभ प्राप्त नहीं कर पाते। संज्ञानात्मक व्यवहारिक चिकित्सा कुछ रोगियों पर तो काम करती है, वहीं बहुत से इसे समय की बर्बादी पाते हैं। क्यों?
तुम दिनों दिन तक यहाँ बैठे कहते हो,
यह अजीबोगरीब कारोबार है।
तुम खुद अजीबोगरीब कारोबार हो।
तुम्हारे अंदर सूरज का तेज है,
पर तुम उसे रीढ़ के आख़िरी छोर पर
फँसाए रखते हो।
तुम कुछ अजीब से स्वर्ण हो
जो पिघल कर भी भट्टी में ही रहना चाहता है,
कि कहीं तुम्हे सिक्का न बनना पड़ जाए।
डिप्रेशन का रोगी ऐसा ही अनुभव करता है - पिघला हुआ सोना जो भट्टी में ही पड़ा रहना चाहता है।
मेरे विचार में मानसिक अवसाद हमारे समय की सबसे कम समझ आने वाली व सबसे अधिक अशक्त कर देने वाली अवस्थाओं में से एक है। यह किसी को भी, कभी भी, उनके जीवन की किसी भी अवस्था में, प्रभावित कर सकता है। आप की जीवन-शैली, आप की मानसिक बनावट या भावनात्मक रचना की परवाह किए बिना, कोई भी इस विकार से स्थाई रूप से प्रतिरक्षित नहीं है। जो बात डिप्रेशन के सन्दर्भ में विशेष रूप से परेशान करने वाली है वह है कि यह आप को हर उस विषय व व्यक्ति से दूर कर देता है जिस को आप जानते हों। आप अपने ही शरीर में, अपनी ही दुनिया में एक अजनबी सा महसूस करते हो। उससे भी बदतर यह कि डिप्रेशन के लिए कोई निश्चित उपचार नहीं है। मानसिक अवसाद दूर करने की दवाइयाँ बहुत सारे रोगियों पर तो काम करती हैं, वहीं बहुत से दूसरों की अवस्था में उनसे रत्ती मात्र भी परिवर्तन नहीं होता। कुछ व्यक्तियों को ध्यान व योग से सहायता मिलती है, वहीं बहुत से अन्य इससे कोई लाभ प्राप्त नहीं कर पाते। संज्ञानात्मक व्यवहारिक चिकित्सा कुछ रोगियों पर तो काम करती है, वहीं बहुत से इसे समय की बर्बादी पाते हैं। क्यों?
सत्य यह है कि मानसिक अवसाद का उपचार पूर्ण रूप से आप के डिप्रेशन के स्वरूप पर निर्भर करता है। और, यदि आप मानसिक अवसाद से पीड़ित हैं तो अकेले आप ही अपने डिप्रेशन की गंभीरता का पता लगाने में सबसे सही स्थिति में हैं। नि:संदेह, एक विशेशग्य सही निदान बताने में आप का सहायक हो सकता है, किंतु, अंत में अपने मनोभावों के आप ही सही निर्णायक हैं। 'मनोभाव' शब्द का प्रयोग करके मैं यह संकेत नहीं दे रहा कि डिप्रेशन मात्र एक मानसिक विकार व मनोदशा है। अपितु यह एक बहुत वास्तविक स्थिति है और अन्य रोगों के समान ही, इसे भी डाक्टरी विचार-विमर्श व उपचार की आवश्यकता हो सकती है।
लगभग चार वर्ष पूर्व, मैं ने डिप्रेशन पर संक्षेप में लिखा था और तभी से मुझे इस विषय पर अपने विचार विस्तार से लिखने के लिए अनेकों बार कहा जाता रहा है। इस कारण मैं ने “जब सब ठीक न हो” पुस्तक लिखी और मुझे घोषित करते हुए हर्ष हो रहा है कि हार्पर कौलिंस इंडिया ने पुस्तक के प्रकाशन की सहमति दे दी है। भारत में यह पेपरबैक के रूप में फ़रवरी २०१६ में आएगी। किंतु यह केवल भारत उपमहाद्वीप के पाठकों के लिए है।
विश्व के अन्य पाठकों के लिए मेरे पास इससे भी सुखद समाचार है। अमेज़ॉन.कॉम पर मुद्रित व ई-बुक दोनों संस्करण अभी से उपलब्ध हैं। आप पुस्तक को यहाँ से मंगवा सकते हैं।
यदि आप इस समय अपने जीवन में गहरा विषाद अनुभव कर रहे हैं, या डिप्रेशन से जूझ रहे हैं, अथवा कभी अतीत में इसे भुगत चुके हों या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हों जो पीड़ित है, तो मैं यह अपेक्षा रखूँगा की आप इसे पढ़ें। ऐसा ना समझें कि आप ने जीवन में सब कुछ खो दिया है। अभी आशा है। और मैं यहाँ कहना चाहूँगा कि आशा ही मात्र एक संभालने लायक वस्तु है, जब बात डिप्रेशन की हो। क्योंकि, किसी भी दूसरी बात से पहले, डिप्रेशन रूपी राक्षस अपने शिकार में से आशा को निचोड़ बाहर करता है। ऐसा प्रतीत होने लगता है कि यह आप को कभी भी नहीं छोड़ेगा। किंतु, अभी आशा है। वास्तव में है। और इसी आशा के साथ ही मैं ने यह पुस्तक लिखी है।
शांति।
स्वामी
अनुलेख: मेरी पहली पुस्तकों “इफ़ ट्रूथ बी टोल्ड” (यहाँ) और “द वेलनेस सेन्स” (यहाँ) के पेपर-बैक संस्करण भी अब संपूर्ण विश्व में उपलब्ध हैं।
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